For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कवि - राज बुन्दॆली's Blog (94)

हास्य-व्यंग्य (गीत)

हास्य-व्यंग्य गीत,

==============



बड़ॆ गज़ब का झॊल, रॆ भैया,,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,

बड़ॆ गज़ब का झॊल, रॆ भैया,,,बड़ॆ गज़ब का झॊल !!



बन्दर डण्डॆ लियॆ हाँथ मॆं,अब शॆरॊं कॊ हाँकॆं,

भूखी प्यासी गाय बँधी हैं, गधॆ पँजीरी फाँकॆं,

कॊयल कॊ अब कौन पूछता,कौवॆ हैं अनमॊल !! रॆ भैया,,,,

बड़ॆ गज़ब का झॊल,

बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,



साँप नॆवलॆ मिल कर खॆलॆं, दॆखॊ आज कबड्डी,

पटक पटक कर गीदड़ तॊड़ी,आज बाघ की हड्डी,

ताक-झाँक मॆं लगी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 2:00pm — 21 Comments

राधॆश्यामी छन्द:(मत्त सवैया)

राधॆश्यामी छन्द:(मत्त सवैया)

=====================

रूपवती मृग-नयन सुन्दरी,कञ्चन काया भी पाई थी !!

दिल बार बार यॆ कहता था, वह इन्द्रलॊक सॆ आई थी !!

गर्दन ऊँची तनी हुई थी,त्रिभुवन जीत लिया हॊ जैसॆ !!

या त्रिलॊक सुंदरी का उसकॊ,रब वरदान दिया हॊ जैसॆ !!



तालाब किनारॆ बैठी थी वॊ,अधलॆटी सी कुछ सॊई थी !!

ऊहा-फॊह मची थी भीतर,अपनी ही धुन मॆं खॊई थी !!

मतवाली नार नवॆली वॊ,स्वयं स्वयं सॆ कुछ बात करॆ !!

ठहरॆ ठहरॆ गहरॆ जल मॆं, चुन चुन कंकड़ आघात करॆ !!…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2015 at 2:30am — 9 Comments

राधॆश्यामी छन्द :

राधॆश्यामी छन्द :

=====================



भारत की यह पावन धरती,प्रगटॆ कितनॆं भगवान यहाँ !!

समय समय पर महापुरुष भी,दॆनॆ आयॆ सद्ज्ञान यहाँ !!



वॆद,ऋचायॆं लिखकर जिसनॆ,जीवन शैली सिखला दी है !!

एक शून्य मॆं सारी दुनियाँ,जॊड़,घटा कर दिखला दी है !!



इतिहास यहाँ का भरा पड़ा, वलिदानों की गाथाऒं सॆ !!

गूँज रहा है शौर्य आज भी, वीरॊं की अमर चिताऒं सॆ !!



शौर्य-शिरॊमणि यॆ भारत है,सत्य,अहिंसा की है डॊरी !!

एक दृष्टि सॆ पूर्ण पुरुष है,एक…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 31, 2015 at 12:30am — 8 Comments

ताटंक छन्द

एक लघु प्रयास (ताटंक छन्द) *****************************



राष्ट्र-वन्दना के स्वर फिर से,वीणाओं में गूँजेंगे ।।

शीश चढ़ाकर अगणित बॆटॆ,भारत माँ को पूजेंगे ।।

षड़यंत्रों नें बाँध रखा है, आज हिन्द को घेरे में ।।

मानवता का दीप जलायें, आऒ सभी अँधेरे में ।।



अपने अपने धर्म दॆवता, लगते सबकॊ प्यारे हैं ।।

जितने प्यारे प्राण…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 29, 2015 at 3:33am — 8 Comments

एक रचना,,,,,

एक रचना,,,,,

(कुकुभ छंद और लावणी छंद का संधिक प्रयॊग)

**********************************

चॊर लुटॆरॆ निपट उचक्कॆ, चढ़ उच्चासन पर बैठॆ !

काली करतूतॊं सॆ अपनॆ, मुँह कॊ काला कर बैठॆ !!

राम भरॊसॆ प्रजातन्त्र की, अब भारत मॆं रखवाली !

जिसकॊ माली चुना दॆश नॆं,है काट रहा वह डाली !!

चीख रही हैं आज दिशायॆं,नैतिकता का क्षरण हुआ !!

चारॊ ऒर कपट कॊलाहल, सूरज का अपहरण हुआ !!१!!

अमर शहीदॊं  कॆ अब  सपनॆं, सारॆ चकनाचूर हुयॆ ! …

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 10, 2015 at 2:30am — 7 Comments

एक गज़ल ( कवि - "राज बुन्दॆली")

एक गज़ल



(मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन)



कहीं सूरत नहीं मिलती,कहीं सीरत नहीं मिलती ॥

वफ़ा करकॆ मुनासिब सी,हमॆं कीमत नहीं मिलती ॥१॥



लियॆ उल्फ़त फिरॆ दर-दर,वफ़ाऒं का भरम पालॆ,

ज़हां मॆं प्यार की हमकॊ,खरी दौलत नहीं मिलती ॥२॥



मिटा दीं आज हमनॆ सब, लकीरॆं हाँथ की अपनॆ,

मिटा दूँ नाम इक तॆरा,  यही ताक़त नहीं मिलती ॥३॥



सुनॆं हैं प्यार कॆ किस्सॆ, ज़मानॆ कॊ बहुत कहतॆ,

किताबॊं मॆं लिखा तॊ है,मगर चाहत नहीं मिलती ॥४॥



दिलॆ -…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 21, 2014 at 2:30am — 9 Comments

दॊहा छन्द (श्रंगार-रस)

दॊहा छन्द (श्रंगार-रस)

===================



उठत गिरत झपकत पलक, दुपहरि साँझ प्रभात !!

चितवत चकित चकॊर-दृग,मुख-मयंक दुति गात !!१!!



नाभि नासिका कर्ण कुच, त्रि-बली उदर लकीर !!

ग्रीवा चिबुक कपॊल कटि,निरखत भयउँ अधीर !!२!!



हँसि हॆरति फॆरति नयन, मन्द मन्द मुस्काति !!

दन्त-पंक्ति ज्यूँ दामिनी, बिन गरजॆ चमकाति !!३!!



चॊटी  मानहुँ  कॊबरा, लटि नागिन  की जात !!

कॆश समुच्चय  कर रहा, नाग लॊक  की बात !!४!!



भरीं भुजा दॊनहुँ  सबल,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 8, 2014 at 12:00pm — 27 Comments

चौपई छन्द = प्रसंग,,श्री रामचरित मानस ( पुष्प-वाटिका )

चौपई छन्द = प्रसंग,,श्री रामचरित मानस ( पुष्प-वाटिका )

शिल्प = प्रत्यॆक चरण मॆं १५ मात्रायॆं तुकान्त गुरु+लघु कॆ साथ,

=========================================



भॊर भयॆ प्रभु लक्ष्मण संग !! उड़त गगन महुँ विविध विहंग !!

कहुँ कहुँ भ्रमर करहिँ गुँन्जार !! नाचहिँ कहुँ कहुँ झूमि पुछार !!



मन्द पवन सुचि शीत बयार !! मानहुँ गावत मंगलचार !!

लॆन प्रसून गयॆ फ़ुलवारि !! बंधु लखन सँग राम खरारि !!



पहुँचॆ पुष्प-वाटिका जाइ !! स्वागत करत सुमन मुस्काइ !!…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2014 at 7:30pm — 28 Comments

शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मत्तगयंद सवैया :-

शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मंगलाचरण कॆ कुछ छन्द

====================================

शिल्प विधान = सात भगण + दॊ गुरु वर्णॊं सहित प्रत्यॆक चरण मॆं कुल २३ वर्ण,,,,,,,,,



मत्तगयंद सवैया छन्द (१)

================

पूजत है प्रथमॆ जग जाकहुँ, कीर्ति त्रिलॊकहुँ छाइ रही है !!

सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!

रिद्धि बसै दहिनॆ अरु बामहिँ,सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!

हॆ इक दन्त कृपा करियॊ अब, मॊरि मती बउराइ रही है…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 2, 2014 at 12:30pm — 11 Comments

अनंग शॆखर छन्द

अनंग शॆखर छन्द =

===============

कभी डरॆ नहीं कभी मरॆ नहीं सपूत वॊ, प्रचंड  वृष्टि बर्फ और ताप मॆं खड़ॆ रहॆ ॥

हिमाद्रि-तुंग बैठ शीत संग तंग हाल मॆं, सपूत एकता अखण्डता लियॆ अड़ॆ रहॆ ॥

प्रहार रॊज झॆलतॆ अशांति कॆ कुचाल कॆ, सदा निशंक काल-भाल वक्ष पै चढ़ॆ रहॆ ॥

अखंड भारती सुहासिनीं सुभाषिणीं कहॆ, सभी अघॊष युद्ध वीर शान सॆ लड़ॆ रहॆ ॥

 

 

कवि-"राज बुन्दॆली"

17/12/2013

पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित रचना,,,,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 17, 2013 at 4:30pm — 16 Comments

पञ्च चामर छन्द=

पञ्च चामर छन्द = की विधा मॆं मॆरा

प्रथम प्रयास आप सबकॆ श्री चरणॊं मॆं

==========================

 रुदान्त कंठ मातृ-भूमि वॆदना पुकारती,

प्रकॊप-दग्ध दॆश-भक्ति भावना हुँकारती,

वही सपूत धन्य भारती पुकारती जिसॆ,

अखंड सत्य-धर्म साधना सँवारती जिसॆ,



करॊ पुनीत कर्म ज़िन्दगी सँवारतॆ चलॊ ॥

सुहासिनीं सुभाषिणीं सदा पुकारतॆ चलॊ ॥१॥



खड़ा रहा अड़ा रहा डरा नहीं कु-काल सॆ,

डटा रहा नहीं हटा हिमाद्रि तुंग भाल…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 16, 2013 at 4:30pm — 14 Comments

अथ श्री मुर्गा-पुराण,,,

अथ श्री मुर्गा-पुराण,,,

================

हमारॆ शिक्षा काल मॆं छात्रॊं की बड़ी व्यथा थी,

उन दिनॊं स्कूलॊं मॆं मुर्गा बनानॆ की प्रथा थी,

अध्यापक महॊदय कक्षा मॆं शान सॆ आतॆ थॆ,

और तुरंत छात्रॊं पर प्रश्नॊं कॆ तीर चलातॆ…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on October 8, 2013 at 3:00pm — 41 Comments

कहानी और भी है,,,,,

कहानी और भी है,,,,,

=================

फ़ायलातुन  फ़ायलातुन   फ़ायलातुन  फ़ायलातुन

==================================

मौज़-मस्ती इश्क़-उल्फ़त मॆं रुमानी और भी है ॥

डूब कर सुनना अभी आगॆ कहानी और भी है ॥१॥



सिर मुँड़ातॆ ही पड़ॆ ऒलॆ हमारी किस्मत रही,

हाल-खस्ता जॆब खाली कुछ निशानी और भी है ॥२॥



ख्वाब,आँसू,सिसकियां हैं,आज सारॆ यार अपनॆ,

कह रहॆ हैं लॆ मजा लॆ ज़िन्दगानी और भी है ॥३॥



आँसुऒं की बाढ़ आई है अभी सॆ राम जानॆं,

लॊग कहतॆ हैं अभी यॆ रुत सुहानी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on September 17, 2013 at 10:01pm — 34 Comments

हास्य कॆ,,,,, दॊहॆ :-

हास्य कॆ,,,,,दॊहॆ :- ---------------------

=======================

करियॆ साजन आज सॆ, सब्जी लाना बन्द ।

दिन-दिन दुर्लभ हॊ रहीं, जैसॆ मात्रिक छंद ॥१॥

परवल पीली पड़ गई, मिर्ची गई  सुखाय ।

बहुमत पाया प्याज नॆं,शासन रही चलाय ॥२॥

शपथ ग्रहण मॆंथी करॆ, मंत्री पद की आज ।

आलू कॆ सहयॊग सॆ, सिद्ध हुयॆ सब काज ॥३॥

लौकी कॊ तॊ चाहियॆ, रॆल प्रशासन हाँथ ।

कुँदरू गाजर घॆवड़ा, बावन संसद साथ ॥४॥

पालक खड़ी विपक्ष…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on September 4, 2013 at 3:30pm — 22 Comments

एक गज़ल =

एक गज़ल =

============

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

१२२२     १२२२    १२२२   १२२२

===============================

वही नग्मॆं वही रातॆं, वही ख़त और आँसू भी ॥

सतातॆ हैं हमॆं मिलकॆ, मुहब्बत और आँसू भी ॥१॥



कभी हँसना कभी रॊना,कभी खॊना कभी पाना,

सदा रुख़ मॊड़ लॆतॆ हैं,तिज़ारत और आँसू भी ॥२॥



हमारॆ नाम का चरचा, जहाँ दॆखॊ वहाँ हाज़िर,

नहीं जीनॆ  हमॆं दॆतॆ, शिकायत और आँसू भी ॥३॥



हमॆं इल्ज़ाम दॆता है, ज़माना बॆ-वफ़ा कह कॆ,

नहीं अब…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on August 5, 2013 at 7:00pm — 26 Comments

कब तक

कब तक =

===============================

इस जीवन कॆ नख़रॆ, नाँज़ उठाऊँ कब तक ॥

नागफ़नी कॊ सीनॆ, सॆ चिपकाऊँ कब तक ॥१॥



कुछ कठिन सवालॊं कॆ, उत्तर खॊज रहा हूँ,

मन की घायल मैना, कॊ भरमाऊँ कब तक ॥२॥



राम बचा लॊ मुझकॊ, इस झूँठी  दुनिया सॆ,

सबकी हाँ मॆं हाँ मैं, और मिलाऊँ कब तक ॥३॥



पागल समझ रही है, दुनिया सच ही हॊगा,

पागल बनकर मैं यॆ, रॊग छुपाऊँ कब तक ॥४॥



पागल बन कर मैनॆं, खूब सुनीं हैं गाली,

राग पुराना बॊलॊ, मैं दुहराऊँ कब तक…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 10, 2013 at 3:30pm — 6 Comments

*** कुण्डलिया छन्द ***

*** कुण्डलिया छन्द ***

==================

सच्चाई कॊ प्रॆम सॆ, कर लॊ तुम स्वीकार !

सदा दम्भ कॆ शीश पर, करतॆ रहॊ प्रहार !!

करतॆ रहॊ प्रहार, पनपनॆ कभी न पायॆ !

सुन्दर सहज विचार, सभी वॆदॊं नॆं गायॆ !!

कहॆं "राज"कविराज,करॊ जग मॆं अच्छाई !

नाम अमर हॊ जाय, निभायॆ जॊ सच्चाई !!१!!



ताना मारॆ तान कर, निन्दक मिलॆ पुनीत !

जीत गयॆ तॊ जीत है, हार गयॆ भी जीत !!

हार गयॆ भी जीत, भला अपना ही हॊता !

बिन साबुन औ नीर, चरित्र यही है धॊता !!

कहॆं… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 6, 2013 at 6:19pm — 14 Comments

आज प्रलय हुंकार करूँ,,,,,,

आज प्रलय हुंकार करूँ,,,,,,

=================

सच ! तू ही अब सब कुछ बतला,मैं क्यॊं ्न तुझसॆ प्यार करूँ ॥



तॆरी कटुता कॊ जग मॆं, कॊई शमन नहीं कर पाता,

तॆरी ग्रीवा मॆं बाहॆं डाल, कॊई भ्रमण नहीं कर पाता,

भाग रहा जग दूर दूर, क्यॊं तुझसॆ कुछ तॊ बतला,

दुविधा का विषय यही, है जग बदला या तू बदला,



दुत्कार रहा सारा जग तुझकॊ,मैं क्यॊं न जग सॆ ्तक़रार करूँ ॥१॥

सच, तू ही अब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



फिर तॆरॆ हॊतॆ जग मॆं, कैसॆ असत्य का राज्य…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 1, 2013 at 9:00pm — 18 Comments

एक लॊकगीत

एक लॊकगीत,,,,

=================

चूल्हा चौंका झाड़ू बरतन,

गगरी पनघट औ पानी रॆ !!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,

अम्मा  बाबू  कॆ बदना  की,

मैं किलकारी थी अँगना की,

तुलसी छॊड़ भई सजना की,

रॊटी जलॆ तवा कॆ ऊपर,

ऎसहिँ जलॆ जवानी रॆ !!१!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,

,

वॊ बचपन की सखी-सहॆलीं,

साथ साथ मॆरॆ सब…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 16, 2013 at 9:00pm — 11 Comments

गजल

मित्रॊ,,,,

मॆरा यह किसी बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास

आप सबकॆ चरणॊं मॆं समर्पित है,ख़ामियां बतानॆ की कृपा करॆं,,,

================================

मुफ़ाईलुन (हजज़)

वज्न = १२२२, १२२२, १२२२, १२२२

================================



कहीं हमनॆ सुना था इस, ज़मानॆ मॆं हिफ़ाज़त है !!

यहाँ हर एक कॆ दिल मॆं, अदावत ही अदावत है !!१!!



उठा रक्खा चराग़ॊं नॆं, कभी सॆ आसमां सर पर,

सुना है आँधियॊं सॆ चल, रही उनकी बग़ावत है !!२!!



अदा कॆ साथ दॆतॆ…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 16, 2013 at 5:30pm — 19 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service