For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२१२२  २१२२  २१२२  २१२२

**************************


गुनगुनाकर देखिएगा आप भी यह गीत मेरा ।।
दोपहर की धूप में आभास होगा नव सवेरा ।।
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,

तप्त सूरज शीश पर जब अग्नि वर्षा कर रहा हो,
ऊष्णता के हृदविदारक तीर तरकस भर रहा हो,
तब प्रभाती गीत की तुम छाँव में करना बसेरा ।।(1)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,

कोकिला के कण्ठ से माँ भारती का गान सुनना,
व्योम में प्रतिध्वनित होती सप्त सरगम तान सुनना,
भूलकर भी भूलना मत चित्र प्राची का उकेरा ।।(2)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,

भू धरा का भाल कोई स्वेद कण जब चूम लेगा,
मन भ्रमर श्रम भूल सारा सृष्टि पल में घूम लेगा,
स्नेह आतुर अलि कुसुम का द्वार झाँके ज्यों लुटेरा ।।(3)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,

चिलचिलाती धूप में मधुमक्खियों का शोर सुनकर,
नृत्य भी करनें लगें जब जंगलों में मोर सुनकर,
कण्ठ से स्वर नाद अनहद बीन का निकले सपेरा ।।(4)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,


"डॉ राज़ बुन्देली"
13/01/2017
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 615

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on January 16, 2017 at 9:19pm

वाह आदरणीय विरोधाभासों का भरपूर प्रयोग किया है आपने. विरोधाभासी कथ्य रचना का आकर्षण बढाते हैं बशर्ते उनमें सार्थकता हो. आख़िरी बंद की पहली दो पंक्तियों के अंत में 'सुनकर' शब्द के प्रयोग का उद्देश्य मुझे स्पष्ट न हो सका. कृपया मार्गदर्शन करने का कष्ट करें.

सादर! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 16, 2017 at 8:59pm

आदरणीय राज बुन्देली जी, आपने बहुत सुन्दर गीत लिखा है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. गीत का मुखड़ा बहुत आकर्षक है. पहला अन्तरा भी भाव स्तर पर प्रभावकारी है. पहला बंद पढ़ते हुए एक विचार आया कि सूर्य तो तप्त ही होता है. यही उसकी प्रकृति है. सूर्य कभी शीतल हो ही नहीं सकता अतः तप्त विशेषण सूर्य के साथ ही सम्मिलित है. इसलिए इसे //सूर्य सीधे शीश पर जब अग्नि वर्षा कर रहा हो// भी कहा जा सकता है. इसी बंद में "हृद-विदारक' शब्द का प्रयोग उचित नहीं लग रहा. सही शब्द "हृदय-विदारक" है और इसी रूप में प्रचलित भी है. फिर भी यदि विदारक शब्द पद को रखना ही है तो इसे 'हिय-विदारक' लिखा जाना चाहिए.

दूसरा अंतरा बहुत अच्छा बना है. तीसरे अंतरे में 'भू-धरा' जैसे समानार्थी शब्दों का प्रयोग उचित नहीं लग रहा है. क्या इस पंक्ति को ऐसे नहीं लिख सकते?- //जब धरा का भाल कोई स्वेद कण जब चूम लेगा//

चौथे अंतरे में //कण्ठ से स्वर नाद अनहद बीन का निकले सपेरा // इस पंक्ति का तात्पर्य नहीं समझ सका हूँ. मार्गदर्शन निवेदित है.

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2017 at 8:08pm

आदरनीय राज भाई , बढ़िया गीत रचा है आपने हार्दिक , बधाइयाँ ।

Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 11:13am
जनाब डॉ.राज़ बुन्देली जी आदाब,अच्छा लगा आपका गीत,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on January 15, 2017 at 5:18pm
आदरणीय राज बुंदेलीजी, सुंदर गीत के लिए बधाई ।
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 14, 2017 at 8:52pm

आदरणीय़,,,,

राम सहाय जी सादर आभार,,,,,,,

Comment by Ram Ashery on January 14, 2017 at 12:12pm

very nice sir 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service