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मित्रॊ,,,,
मॆरा यह किसी बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास
आप सबकॆ चरणॊं मॆं समर्पित है,ख़ामियां बतानॆ की कृपा करॆं,,,
================================
मुफ़ाईलुन (हजज़)
वज्न = १२२२, १२२२, १२२२, १२२२
================================

कहीं हमनॆ सुना था इस, ज़मानॆ मॆं हिफ़ाज़त है !!
यहाँ हर एक कॆ दिल मॆं, अदावत ही अदावत है !!१!!

उठा रक्खा चराग़ॊं नॆं, कभी सॆ आसमां सर पर,
सुना है आँधियॊं सॆ चल, रही उनकी बग़ावत है !!२!!

अदा कॆ साथ दॆतॆ हैं, दुहाई वॊ सदाक़त की,
बड़ॆ कम-ज़र्फ़ हैं दॆखॊ, यही उनकी लियाक़त है !!३!!

कभी बदला नहीं करती,लकीरॊं सॆ लुटी किस्मत,
मिला है नाम भी सब कॊ, जिसॆ जैसी महारत है !!४!!

फ़ना हॊकॆ रहूँगा मैं, दिलॊं कॆ दरमियां सुन लॊ,
भुलावॊगॆ मुझॆ कैसॆ, खरी मॆरी इबादत है !!५!!

बुला लॆना कभी मुझकॊ, सदां दॆकॆ चला आऊँ,
भुला दॊगॆ अग़र दिलसॆ,नहीं तुमसॆ शिकायत है !!६!!

लियॆ हूँ याद उनकी यॆ, निसानी है मुहब्बत की,
कभी तॊ काम आयॆगी, मुझॆ इसकी ज़रूरत है !!७!!

सफ़ीना बीच मॆं है तॊ, अभी दम-ख़म नहीं टूटा,
समंदर सॆ जरा कह दॊ, हमॆं तूफ़ां कि आदत है !!८!!

कहा था आपनॆ कह दॊ,हक़ीक़त आज सारी तुम,
हमारी बात सॆ इतनी,किसी कॊ क्यूँ ख़िलाफ़त है !!९!!

हमीं नॆं "राज" खॊलॆ हैं, मुखौटॊं सॆ हटा चॊंगा,
कई बाज़ार दॆखॆ हैं, जहाँ बिकती शराफ़त है !!१०!!

कवि - "राज बुन्दॆली"
१६/०६/२०१३
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 11:06pm

अरुन शर्मा 'अनन्त' जी भाई साहब,,,,इतने दिनो से आप सभी को पढ़ रहा था लेकि ये शिल्प पल्ले नही पड़ रहा था,, तब मैने इसी मंच पर ,,,,,गज़ल की कक्षा,,,,,को पढ़ा,,,उसमे से इस बह्र को चुना जो मुझे आसान लगी ,,,,और मेरा यह प्रथम प्रयास आप सभी को समर्पित किया है मैने,,,,आप के स्नेह को नमन करता हूं,,,,,,,,,

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 19, 2013 at 8:52pm

आदरणीय राज साहब आपने तो कह दिया की बहर पर लिखने का प्रथम प्रयास है किन्तु मेरा दिल नहीं मानता, सभी के सभी अशआर इतने सुन्दर और हृदयस्पर्शी हुए हैं कि बस दिल से भर भर के ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:27pm

विजय मिश्र जी ,,भाई साहब,,,,दिल से आभार

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:26pm

Jitendra Pastariya जी,,, प्रणाम करता हूं आपके स्नेह को,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:25pm

coontee mukerji जी,,,,बहुत बहुत आभार आपका

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:23pm

Kewal Prasad जी भाई साहब हृदय की गहराइयो से आभार,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:22pm
vijay nikore जी आदरणीय,,,,इस स्नेह हेतु नमन,,,आपको,,,,
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:21pm

vijay nikore जी आदरणीय,,,,इस स्नेह हेतु नमन,,,आपको,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:20pm
वीनस केसरी जी भाई साहब,,,,आप सब के सानिध्य मे सीखने का प्रयास कर रहा हूं,,,आपने बड़ा हौसला दिया है,,,आप सबके मार्ग दर्शन की एवं स्नेह की हमेशा मुझे जरूरत है,,,,आपका हौसला आफ़जाई हेतु दिल से आभार,,,,,
Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 10:16am

// बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास... //

राज बुन्देली साहब, मैं तो इस वाक्यांश पर हे मुग्ध हो गया .....

आगे बस यही कहना है कि ग़ज़ल भाव कहन और शिल्प के आधार पर ऐसी सधी हुई है कि मानना मुश्किल है कि यह बहर पर कहने का प्रथम प्रयास है  

और अगर है ही,,, तो निः संदेह सफल प्रयास है 

निवेदन यही है कि इसे ज़ारी रखिये 

एक एक शेर शानदार है ... मैं और क्या कहूँ ,,, बस मुग्ध हूँ 

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