For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मित्रॊ,,,,
मॆरा यह किसी बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास
आप सबकॆ चरणॊं मॆं समर्पित है,ख़ामियां बतानॆ की कृपा करॆं,,,
================================
मुफ़ाईलुन (हजज़)
वज्न = १२२२, १२२२, १२२२, १२२२
================================

कहीं हमनॆ सुना था इस, ज़मानॆ मॆं हिफ़ाज़त है !!
यहाँ हर एक कॆ दिल मॆं, अदावत ही अदावत है !!१!!

उठा रक्खा चराग़ॊं नॆं, कभी सॆ आसमां सर पर,
सुना है आँधियॊं सॆ चल, रही उनकी बग़ावत है !!२!!

अदा कॆ साथ दॆतॆ हैं, दुहाई वॊ सदाक़त की,
बड़ॆ कम-ज़र्फ़ हैं दॆखॊ, यही उनकी लियाक़त है !!३!!

कभी बदला नहीं करती,लकीरॊं सॆ लुटी किस्मत,
मिला है नाम भी सब कॊ, जिसॆ जैसी महारत है !!४!!

फ़ना हॊकॆ रहूँगा मैं, दिलॊं कॆ दरमियां सुन लॊ,
भुलावॊगॆ मुझॆ कैसॆ, खरी मॆरी इबादत है !!५!!

बुला लॆना कभी मुझकॊ, सदां दॆकॆ चला आऊँ,
भुला दॊगॆ अग़र दिलसॆ,नहीं तुमसॆ शिकायत है !!६!!

लियॆ हूँ याद उनकी यॆ, निसानी है मुहब्बत की,
कभी तॊ काम आयॆगी, मुझॆ इसकी ज़रूरत है !!७!!

सफ़ीना बीच मॆं है तॊ, अभी दम-ख़म नहीं टूटा,
समंदर सॆ जरा कह दॊ, हमॆं तूफ़ां कि आदत है !!८!!

कहा था आपनॆ कह दॊ,हक़ीक़त आज सारी तुम,
हमारी बात सॆ इतनी,किसी कॊ क्यूँ ख़िलाफ़त है !!९!!

हमीं नॆं "राज" खॊलॆ हैं, मुखौटॊं सॆ हटा चॊंगा,
कई बाज़ार दॆखॆ हैं, जहाँ बिकती शराफ़त है !!१०!!

कवि - "राज बुन्दॆली"
१६/०६/२०१३
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 11:06pm

अरुन शर्मा 'अनन्त' जी भाई साहब,,,,इतने दिनो से आप सभी को पढ़ रहा था लेकि ये शिल्प पल्ले नही पड़ रहा था,, तब मैने इसी मंच पर ,,,,,गज़ल की कक्षा,,,,,को पढ़ा,,,उसमे से इस बह्र को चुना जो मुझे आसान लगी ,,,,और मेरा यह प्रथम प्रयास आप सभी को समर्पित किया है मैने,,,,आप के स्नेह को नमन करता हूं,,,,,,,,,

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 19, 2013 at 8:52pm

आदरणीय राज साहब आपने तो कह दिया की बहर पर लिखने का प्रथम प्रयास है किन्तु मेरा दिल नहीं मानता, सभी के सभी अशआर इतने सुन्दर और हृदयस्पर्शी हुए हैं कि बस दिल से भर भर के ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:27pm

विजय मिश्र जी ,,भाई साहब,,,,दिल से आभार

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:26pm

Jitendra Pastariya जी,,, प्रणाम करता हूं आपके स्नेह को,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:25pm

coontee mukerji जी,,,,बहुत बहुत आभार आपका

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:23pm

Kewal Prasad जी भाई साहब हृदय की गहराइयो से आभार,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:22pm
vijay nikore जी आदरणीय,,,,इस स्नेह हेतु नमन,,,आपको,,,,
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:21pm

vijay nikore जी आदरणीय,,,,इस स्नेह हेतु नमन,,,आपको,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 19, 2013 at 8:20pm
वीनस केसरी जी भाई साहब,,,,आप सब के सानिध्य मे सीखने का प्रयास कर रहा हूं,,,आपने बड़ा हौसला दिया है,,,आप सबके मार्ग दर्शन की एवं स्नेह की हमेशा मुझे जरूरत है,,,,आपका हौसला आफ़जाई हेतु दिल से आभार,,,,,
Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 10:16am

// बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास... //

राज बुन्देली साहब, मैं तो इस वाक्यांश पर हे मुग्ध हो गया .....

आगे बस यही कहना है कि ग़ज़ल भाव कहन और शिल्प के आधार पर ऐसी सधी हुई है कि मानना मुश्किल है कि यह बहर पर कहने का प्रथम प्रयास है  

और अगर है ही,,, तो निः संदेह सफल प्रयास है 

निवेदन यही है कि इसे ज़ारी रखिये 

एक एक शेर शानदार है ... मैं और क्या कहूँ ,,, बस मुग्ध हूँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service