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Krish mishra 'jaan' gorakhpuri's Blog (45)

जला न दे...''जान'' गोरखपुरी

112 212 221 212

बस कर ये सितम के,अब सजा न दे

हय! लम्बी उम्र की तू दुआ न दे।

अपनी सनम थोड़ी सी वफ़ा न दे

मुझको बेवफ़ाई की अदा न दे।

गुजरा वख्त लौटा है कभी क्या?

सुबहो शाम उसको तू सदा न दे।

कलमा नाम का तेरे पढ़ा करूँ

गरतू मोहब्बतों में दगा न दे।

इनसानियत को जो ना समझ सके

मुझको धर्म वो मेरे खुदा न दे।

रखके रू लिफ़ाफे में इश्क़ डुबो

ख़त मै वो जिसे साकी पता न…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 10, 2015 at 4:35pm — 25 Comments

बला-ए-इश्क़ ‘’जान गोरखपुरी’’

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

कुम्हलाए हम तो जैसे सजर से पात झड़ जायें

यु दिल वीरां कि बिन तेरे चमन कोई उजड़ जायें

मिरी आव़ाज में है अब चहक उसके आ जाने की

सितारों आ गले लूँ लगा कि हम तुम अब बिछड़ जायें

कि बरसों बाद मिलके आज छोड़ो शर्म एहतियात

लबों से कह यु दो के अब लबों से आ के लड़ जायें

न मारे मौत ना जींस्त उबारे या ख़ुदा खैराँ

बला-ए-इश्क़ पीछे जिस किसी के हाय पड़ जायें

बना डाला…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 8, 2015 at 5:30pm — 26 Comments

'जिन्दगी'

१२१ २२ १२२

अजीब है ये जिन्दगी

सलीब है ये जिन्दगी

न जान तू किस खता की

नसीब है ये जिन्दगी

इश्क जिसे है,उसी की

रकीब है ये जिन्दगी

गिने जु सांसे, बहुत ही

गरीब है ये जिन्दगी

निकाह मौत तुझसे औ

हबीब है ये जिन्दगी

‘मौलिक व अप्रकाशित’

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2015 at 11:00am — 14 Comments

''साल दंगों का''

लुट रही है फसल-ए-बहार दंगो में..

आराम फरमा रहे हैं वो जंगों में...

दिया किसने ये हक़ इन्हें ए-ख़ुदा

ख़ुदी है सो रही खिश्त-ओ-संगों में..

किसने बनाये हैं ये सनमकदे...

ख़ुदा भी बंट गया बन्दों में...

मेरी इन्ही आँखों ने,नजर में तेरी ए-सनम

देखा है खुद को कई रंगों में..

है किसे तौफ़ीक जो गैरों के चाक सिले?

मै भी नंगा हो गया नंगों में....

‘’मौलिक व अप्रकाशित’’

२०१४ में उ.प्र. में फैले दंगों के…

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 9:00pm — 2 Comments

''कलमा''

तू मेहरबां है के खफा है मुझे पता तो लगे..

गुलशन में बातें सुलग रहीं है..जरा हवा तो लगे..

मोहब्बतों में ऐसा जलना भी क्या?बुझना भी क्या?

जले तो आंच न आये,बुझे तो न धुँआ लगे..

अजब हो गया है अब तो चलन मुहब्बतों का..

मै वफ़ा करूँ तो है उसको बुरा लगे...

वो चाहता है के मै उसके जैसा बन जाऊ...

है जो हमारे दरमियाँ न किसी को पता लगे..

इस साल भी बेटी न ब्याही जाएगी...

गन्ने/गल्ले का दाम देख किसान थका-थका सा…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 8:00pm — 14 Comments

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