For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22 (112)

मुझको तू गर मिला नहीं होता
इश्क़ है क्या पता नहीं होता।

               **

एक पल को जुदा नहीं होता.
ग़म तेरा बेवफ़ा नहीं होता।

                 **

रोज इक ख़त मैं लिखता हूँ तुझको
और तेरा 'पता' नहीं होता।

                

                  **

दो जहाँ हमने एक कर डाले
दर्द बढ़कर दवा नहीं होता।

                   **

इश्क़ है गर तो सोचता है क्या?
इश्क़ होता है या नहीं होता।

                   **

मैं किसी और का न हो पाया
और कभी वो मेरा नहीं होता।

                   **

वख़्त होता है अच्छा और बुरा
शख्स अच्छा बुरा नहीं होता।

                   **

इश्क़ था इश्क़! ज़िद नहीं वर्ना
तू किसी और का नहीं होता।

                    **

चाहतों की अज़ब हैं दूरियाँ भी..
फ़ासिला फ़ासिला नहीं होता।

                    **

***********************

    मौलिक व अप्रकाशित

***********************

Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 19, 2021 at 7:43pm

हार्दिक आभार भाई बृजेश कुमार जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 9:56pm

बढ़िया भावपूर्ण भाई.. हार्दिक बधाई

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 16, 2021 at 1:22pm

आ. अमीरुद्दीन अमीर सर आदाब! आपकी मुक्तकंठ से प्रशंसा पाकर दिल को बहुत सुकून मिला, तकाबुले रदीफ़ पर आपके समर्थन से आश्वस्त हुआ।अंतिम शेर के लिए सुझाया गया मिसरा निश्चित रूप से लयात्मकता की दृष्टि से बेहतर है लेकिन शेर के कथ्य के प्रभाविकता को पूरे तौर पे स्पस्ट नहीं कर पा रहा देखिएगा सर।

सादर। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 16, 2021 at 1:09pm

आदरणीय सुशील सरन जी बहुत बहुत शुक्रिया हौसलाफजाई के लिए।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 16, 2021 at 1:07pm

आ. भाई गुमनाम पिथौरागढ़ी जी लंबे समय बाद आपको obo में अपनी रचना पर पाकर खुशी हुई।हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 16, 2021 at 1:04pm

आ.समर सर सादर प्रणाम!

लंबे समय बाद कमेंट पोस्ट न होने की समस्या आखिरकार एडमिन जी को मेल करने पर दूर हो गयी।

//'तू किसी भी तरह मेरा न हुआ
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता'

ये शैर किसी शाइर से हू ब हू टकरा रहा है,इसे हटा देना उचित होगा:-//

कमाल है ग़ज़ब का हादसा हो गया!! खुशी भी है और ग़म भी के मोमिन खाँ मोमिन की इतनी मक़बूल ग़ज़ल का शे'र मेरे जेहन का हिस्सा बना और मुझे पता न चला।मोमिन साहब की ये ग़ज़ल शायद 6-7 वर्ष पूर्व मैंने पढ़ी होगी।बहरहाल ग़ज़ल से ये शे'र हटा रहा हूँ।

अन्य शे'रों में आदरणीय आपने तकाबुल-ए-रदीफ़ के लिए कहा है इस दोष को इस तौर पे ग़ज़ल में रख रहा हूँ कि ये स्वरान्त के रूप में हो रहा है और फ़ेरबदल करने पर शे'र में वो बात नहीं बन पाएगी जो है,अगर बेहतरी होती तो अवश्य करता।

आदरणीय अपना आशीर्वाद बनाये रक्खें एक दिन जरूर मेरे ग़ज़ल का प्रयास ग़ज़ल में तब्दील हो जाएगा। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 10, 2021 at 11:49pm

जनाब कृष मिश्रा 'जान' साहिब आदाब, इन्सानी जज़्बात से लबरेज़ शानदार ग़ज़ल कही है आपने कई अशआर तक़ाबुल-ए-रदीफ़ के बावजूद इतने उम्दा हुए हैं कि तक़ाबुल-ए-रदीफ़ को नज़र-अंदाज़ किया जा सकता है जैसे कि

''इश्क़ था इश्क़! ज़िद नहीं वर्ना

  तू किसी और का नहीं होता।'' वाह... और हासिल-ए-ग़ज़ल ये वाला-

''एक पल को जुदा नहीं होता.

  ग़म तेरा बेवफ़ा नहीं होता।   लाजवाब। मगर, आख़िरी शे'र में 'दूरियाँ' की वजह से लय बाधित हो रही है, चाहें तो यूँ कर सकते हैं -

''जान' चाहत में दूर होकर भी.. 

 फ़ासिला फ़ासिला नहीं होता।''  सादर। 

Comment by Sushil Sarna on February 10, 2021 at 8:28pm

आदरणीय बहुत सुंदर भावों की ग़ज़ल. हार्दिक बधाई सर

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 10, 2021 at 7:18pm

वाह अच्छी गज़ल हुइ है ...

Comment by Samar kabeer on February 10, 2021 at 3:23pm

जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

                

'तू किसी भी तरह मेरा न हुआ
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता'

ये शैर किसी शाइर से हू ब हू टकरा रहा है,इसे हटा देना उचित होगा:-

'तुम हमारे किसी तरह न हुए

वरना दुनिया में क्या नहीं होता'

ये शैर लिख कर गूगल पर सर्च करेंगे तो शाइर का नाम भी मालूम हो जाएगा ।

'इश्क़ है गर तो सोचता है क्या?
इश्क़ होता है या नहीं होता'

इस शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ दोष है,देखें ।

                

'मैं किसी और का न हो पाया

 अर कभी वो मेरा नहीं होता

इस शैर में भी तक़ाबुल-ए-रदीफ़ दोष देखें,और सानी में 'अर' को "और लिखें ।

     

वख़्त होता है अच्छा और बुरा
शख्स अच्छा बुरा नहीं होता।

                   **

इश्क़ था इश्क़! ज़िद नहीं वर्ना
तू किसी और का नहीं होता।

  इन अशआर में भी तक़ाबुल-ए-रदीफ़ देखें ।   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service