For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो न सोचा था कभी............'जान' गोरखपुरी

२१२२ २१२२ २१२१२

जो न सोचा था कभी,वो भी किया किये

हम सनम तेरे लिये,मर-मर जिया किये

***

तेरी आँखों से पी के आई जवानियाँ

दम निकलता गो रहा पर हम पिया किये

***

आँख हरपल राह तकतीं ही रही सनम..

फर्श पलकों को किये,दिल को दिया किये

***

आदतन हम कुछ किसी से मांग ना सके

और हिस्से जो लगा वो भी दिया किये

***

जख्म को अपने कभी मरहम न मिल सका

गैर के जख्मों को हम तो बस सिया किये

******************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी

******************************************

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:42pm

आ० जितेन्द्र सर! आपकी सराहना से बल मिला,बहुत बहुत शुक्रिया!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:41pm

आदरणीय nilesh Shevgaonkar सर!जब लगन लगा दी है,लगाने वाले ने तो रुकने,छुटने की बात ही कहाँ आती है??,बस आप जैसे अग्रजों का पावन सानिध्य और मार्गदर्शन मिलता रहे!रचना पर आपका मार्गदर्शन पाकर अभिभूत हूँ!बहुत बहुत आभार!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:35pm

आ० मिथिलेश सर आपकी उपस्थिति सदा मूल्यवान रहती है,जी बिल्कुल मै आप सभी अग्रजों की बातों को सूत्र मानकर स्वध्याय कर रहा हूँ!आभार!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:32pm

आ० गोपाल सर मेरी रचनाओ पर आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलना मेरा सौभाग्य है,आपके स्नेह से मै अभिभूत हूँ!
जो लाज्तमा -ए-जुज्ब- ए -रदीफैंन दोष दोष आ रहा है,वह जानकार ही किया है,क्युकी सर कोई और तरह से शब्द रखने से मै संतुष्ट नही हो पा रहा था!इसके लिए क्षमा चाहूँगा!सर यह रचना मैंने २००६ में लिखी थी,इसे बहर में रखकर मैंने यहाँ प्रस्तुत करने की कोशिश की है!मूल तरनुनुम गायन का रूप न बिगड़े,इसलिये कहन में दोष आ जा रहा है.ये मेरा विकार है कि मै कहन के मामले में अभी कच्चा हूँ!धीरे-धीरे सुधार कर रहा हूँ!आशीर्वाद बनाये रक्खे आदरणीय!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:18pm

आ० विजय सरजी हैस्लाफजई के लिए बहुत बहुत आभार!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:18pm

आ० हरिप्रकाश सरजी! रचना के अनुमोदन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:16pm
आ० sushil sarna जी आभार!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2015 at 9:44am

आदतन हम कुछ किसी से मांग ना सके

और हिस्से जो लगा वो भी दिया किये.......बहुत सुंदर. इस अशआर पर विशेष बधाई स्वीकारें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 2:22pm

और हाँ सिया किये भी ठीक नहीं है .. सिला किये प्रयुक्त होना चाहिए शायद 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 2:19pm

आ. अच्छा प्रयास हुआ है.
कहन अपूर्ण है. जहाँ तक काफिये का सवाल है उसे ठीक से निभाया है आपने पर कहन के अधूरे पन ने बात संप्रेषित नहीं होने दी है.
आ. डॉ श्रीवास्तव साहब की बात को आगे बढाते हुए ये कहूँगा कि एक दिया तो देने वाला लगा और एक दिया असल में दीया (दीपक) है. दीये को दिया लिखना जायज़ है लेकिन काफ़िये में मात्रापतन अपने आप में एक दोष है.
काफिये के आसपास ग़ज़ल बुनी जारी है और वहीँ यदि मात्रा गिरानी पड़े तो गड़बड़ हो जाती है.
आपके प्रयास के लिए आपको बधाई. चल पड़े हैं तो मंज़िल मिल ही जाएगी. रुकियेगा मत.
सादर          

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service