"तुम भी सिर्फ़ एक क़िताबी कीड़े ही हो! कभी तुमने अपनी सूरत आइने में देखी है? कभी किसी ने तुम्हारी सूरत पर कोई अच्छी सी टिप्पणी की है?"
"क्या मतलब?"
"मतलब यह कि न तो तुम्हारी सूरत देखकर मुझे ख़ुशी मिलती है, न ही तुम्हारी बातें सुनकर! तुम्हारे दिलो-दिमाग़ की सीमाएं नापी जा सकती हैं! तुम ज्ञानी ज़रूर हो, लेकिन तुम भी मेरे किसी काम के नहीं?"
"काम का कैसे नहीं हूं? बताओ क्या सुनना है मुझसे? कहानी, लघुकथा, कविता, इतिहास, नीति-शास्त्र, राजनीति या धर्म संबंधी?"
"वह सब तू…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on February 4, 2019 at 12:00am — 3 Comments
वह नंगा हो चुका था। फिर भी इतरा रहा था। घमंड का भूत अब भी सवार था।
"आयेगा.. वह आयेगा, मेरी ही छत्रछाया में!" विदेशी धरती, देशी राजनीति, देशी-विदेशी उद्योग-जगत और देशी-विदेशी ग्लैमर-जगत की छतरियां बारी-बारी से अपने अनुभव आधारित दावे पेश करने लगीं।
"तुम सबने इसे नंगा तो कर ही दिया है! न ईमान रहा इसके पास, न ही धर्म! तन अंदर से खोखला कर लिया है इसने और मन.. मन का धन कर रहा है इसका!" उसके तन को सहारा देती रीढ़ की हड्डी के ऊपरी यानि कंधों वाले भाग पर बोझिल गठरी ने…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on January 20, 2019 at 11:00pm — 6 Comments
एक तो पिछला कर्ज ही अभी तक माफ नहीं हुआ था उस पर इस बार फिर फसल के चौपट होने और साहूकार के ब्याज की दोहरी मार उसके लिए असहनीय थी, घर में सभी को कुपोषण और बीमारी ने घेर रखा था। इस बार ना तो मदद को सरकार थी, ना ही लोग।
आखिरकार उसने शहर जाकर मजदूरी या कुछ और कर कमाने का फैसला लिया और जब वह लगभग नग्न बदन, एक बोझ भरी गठरी जिसमें कुछ सुखी रोटी और प्याज थी, लेकर , शहर के चौराहे नुमा पुल पर पहुंचा तो उसने पाया की उसके लिए सभी रास्ते बंद हैं और अवसाद ग्रस्त होकर उसने उसी पुल से नीचे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 19, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
दो तीन बार सोमारू आवाज़ लगा चुका था, हर बार वह उसकी तरफ उचटती नजर से देखता और खाट पर लेटे लेटे सोचता रहा. अंदर से तो उसे भी लग रहा था कि उसको जाना चाहिए लेकिन फिर उसका मन उसे रोक देता. वैसे तो बात बहुत बड़ी भी नहीं थी, इस तरह की घटनाओं से उसको अक्सर दो चार होना ही पड़ता था. लेकिन अगर कोई बड़ी जात वाला यह सब कहता तो उसे तकलीफ नहीं होती थी.
"दद्दा, जल्दी चलो, सब लोग तुम्हरी राह देखत हैं", सोमारू ने इस बार थोड़ी तेज आवाज में कहा.
वह खटिया से उठा और बाहर निकलकर लोटे से मुंह धोने लगा. गमछी…
Added by विनय कुमार on January 14, 2019 at 6:00pm — 12 Comments
रेशमा की नजर फिर उस लड़की पर पड़ी जो कल ही यहाँ लायी गई थी. बेहद घबराई और लगातार रोती हुई वह लड़की देखने में तो किसी गरीब घर की ही लगती थी लेकिन पढ़ी लिखी भी लगती थी. उससे रहा नहीं गया तो वह उसकी तरफ बढ़ी और पास जाकर उसने पूछा "क्या नाम है रे तेरा और कहाँ से आयी है? यहाँ रोने धोने से कुछ नहीं होता, जितनी जल्दी सब मान लेगी, उतना बढ़िया. वर्ना तेरी दुर्गति ही होनी है यहां पर".
लड़की ने उसकी तरफ देखा, रेशमा की आँखों का सूनापन देखकर वह सिहर गयी. उसने रेशमा का हाथ पकड़ा और फफक पड़ी "मुझे यहाँ से बचा…
Added by विनय कुमार on January 8, 2019 at 5:52pm — 12 Comments
“अरे सुनो !”
“अभी अम्मा जाग रहीं है... चुप !”
“बक पगली, कुछ काम की बात है, इधर तो आओ !”
“हां , बोलो !”
अरे ये मूँगफली का ठेला अब बेकार हो गया है, कोई कमाई नहीं रही !”
“काहें, अब का हुआ?!”
अरे, ससुरे सब आतें हैं , थोडा सा कुछ खरीदतें हैं बाकी सब फोड़-फोड़ चबा जातें है, जानती…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 26, 2018 at 8:30pm — 3 Comments
आज उसके छह महीने पूरे हो रहे थे, कल से वह वापस अपनी खूबसूरत और आरामदायक दुनिया में जा सकता था. उसे याद आया, जब से सरकार ने नियम बनाया था कि हर डॉक्टर को छह महीने गांव में प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, उसके लिए यह करना सबसे कठिन था. पिताजी की अच्छी खासी दुनिया थी उस महानगर में, बड़ी हवेली, भरा पूरा परिवार और हर तरह की सुख सुविधा. एम बी बी एस करने के बाद सबने यही कहा था कि छह महीने तो फटाफट गुजर जायेंगे और उसके बाद पिताजी महानगर में ही सब इंतज़ाम करा देंगे.
गांव में जिसके घर वह रह रहा था,…
Added by विनय कुमार on December 25, 2018 at 1:12pm — 6 Comments
Added by विनय कुमार on December 24, 2018 at 12:07am — 4 Comments
'दूरदृष्टि'
"बच्चा ऑपरेशन से ही होगा, और कोई ऑप्शन नहीं है। यही कहा था न आपने! क्या सिर्फ कुछ ज्यादा रुपयों के चक्कर में?" उसकी आवाज में झलकता आवेश सहज ही महसूस हो रहा था। बीती रात ही डॉ. कामना ने नर्सिंग होम में भर्ती हुई कावेरी को उसकी नाजुक हालत के देखते ऑपरेशन की सलाह दी थी। लेकिन किसी आपात स्थिति के चलते उसे ख़ुद अपना चार्ज डॉ.अनु को देकर जाना पड़ा था। और अनु के चार्ज में बिना ऑपरेशन के ही सामान्य डिलीवरी का होना ही उसके आवेश में आने की के लिये पर्याप्त था। "देखिये, ये कोई बड़ी बात…
ContinueAdded by VIRENDER VEER MEHTA on December 12, 2018 at 9:29pm — 4 Comments
ट्रेन की बोगी में वह बालक न तो ख़ुश बैठा हुआ था और न ही दुखी। सजे-धजे किन्नरों से भरी बोगी में, पैसे गिनते हुए एक बुज़ुर्ग किन्नर को वह देख ही रहा था कि एक फेरी वाला मूंगफली बेचता हुआ वहां आया और दो-चार सवारियों को मूंगफलियां बेच कर,पैसे गिन कर उन्हें बाक़ी पैसे लौटाने लगा।
"अरे देखो, यह लंगड़ा और दोनों आंखों से अंधा है, फ़िर भी पैसों का सही हिसाब कर रहा है !" वह बालक बगल में बैठे उस किन्नर से बोल पड़ा, जो उसे समझा-बुझाकर उसके घर से अपने दल में शामिल करने के लिए लाया था उसके…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on December 3, 2018 at 4:00pm — 5 Comments
"हम तो अपनी सरकारी नौकरी से मज़े में हैं! तुम सुनाओ, कैसी चल रही है तुम्हारी प्राइवेट टीचरी?"
"बढ़िया! मेरे ख़्याल से तुमसे भी बेहतर चल रहा है सब कुछ!"
"वो कैसे?"
"तुम्हारी नौकरी में तुम केवल सरकार और जनता को उल्लू बनाते हो या चूना लगाते हो! ... हम तो अपनी नौकरी में मैनेजमेंट को और माता-पिता-पालकों को और छात्रों को भी, क्योंकि वे हमें उल्लू बनाते हैं या चूना लगाते हैं! 'टिट-फॉर-टेट' और 'टेक इट ईज़ी' का ज़माना है न!"
"कुछ समझ में नहीं आया! हमने तो सुना है कि प्राइवेट…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 30, 2018 at 12:30am — No Comments
"देखो, हम सेलिब्रिटीज़ की ज़िन्दगी के साथ मीडिया ऐसे ही बर्ताव करता रहता है! टेंशन मत लो!"
"सब कुछ मेंशन हो चुका है! तुम तो सिर्फ़ यह बता दो कि मैं तुम्हारा पहला चांद हूं या दूसरा या फिर तीसरे नंबर का?"
"क्या मतलब?"
"देखो अर्थ! अब ज़्यादा मत इतराओ! मैंने भी तुम्हारी उन दोनों लैलाओं के बयान सुन लिए हैं टेलीविज़न पर!"
"देखो शशि! मुझ पर और तुम स्वयं पर विश्वास रखो! तुम्हीं मेरा पहला और आख़री चांद हो, तुम्हीं इंदु, विधु और तुम्हीं मेरी चंदा हो डार्लिंग!"
"फ़िर वे दोनों…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 8, 2018 at 9:00am — 4 Comments
"आज न छोड़ेंगे, सोते हुओं को चेतायेंगे!"
"घोर अन्धकार है महाराज! सुझावों, चेतावनियों, प्रतिबंधों और घोषणाओं को चुनौती देकर पटाखों, आतिशबाज़ियों और वैद्युत-सजावटों से ही इनका राष्ट्र दहक रहा है, चमक रहा है! इतना तो आपके दहन-आयोजन के आडंबर मेंं भी नहीं होता!"
"...'आडंबर'..! मत कहो मेरे नई सदी के 'सक्रीय अस्तित्व' और 'सांकेतिक स्मरण' को 'आडंबर'..! मेरे दशानन की बदलती भूमिकाएं नहीं मालूम क्या तुम्हें?" नई सदी के नवीन दस मुखौटों वाले विशाल शरीर में अपनी आत्मा लिए दीपावली पर भारत-भ्रमण…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 7, 2018 at 9:30am — 1 Comment
"हमने कई थी न कि देर है अंधेर नईं! सबके साथ सबके दिन फिर रये! सो अपने भी दिन फिरहें!" नदी किनारे बैठे हुए एक बाबा ने दूसरे साथी बाबाओं से किया अपना दावा दोहराते-सिद्ध करते हुए कहा - "अपने कित्ते बाबा अंतर्राष्ट्रीय हो गये, ध्यान और योग से उद्योग जम गओ, ... एक और बाबा हाईटेक हो गओ!"
"हओ! मंत्री बनत-बनत रह गये; लेकिन अब रस्ता खुल गओ अपने लाने! धंधा-पानी भी संग-संग चलो करहे अब राम-नाम जपने के साथ! दुनिया खों आयुर्वेद को भेद बहुतई अच्छी तरा समझ में आ गओ!"
"लेकिन गुरु, धरम-करम और…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2018 at 12:11am — 2 Comments
"देख, अब भी समय है! संभाल ले, अनुशासित कर ले अपने आप को!"
"अपनी थ्योरी अपने ही पास रख! ... देख, रुक जा! ठहर जा! रोक ले समय को भी! उसे और तुझे मेरे हिसाब से ही चलना होगा!"
"तो तू मुझे अपनी मनचाही दिशा में धकेलेगा! अपनी मनचाही दशा बनायेगा! 'देश' और 'काल' की गाड़ी की मनचाही 'स्टीअरिंग' करेगा!
"बिल्कुल! ड्राइवर, कंडक्टर, सब कुछ मैं ही हूं और हम में से ही हैं हमारे देश की गाड़ी चलाने वाले! तुम.. और समय .. तुम दोनों तो बस क़िताबी हो; बड़ी ज़िल्द वाली बड़ी-बड़ी क़िताबों में रहकर…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 3, 2018 at 12:29am — 5 Comments
सुदूर पहाड़ी पर एक प्रसिध्द ‘माँ दुर्गा’ का एक मन्दिर था, जिसका संचालन एक ट्रस्ट के हाथ में था। उसमे पुजारी, आरती करने वाला, प्रसाद वितरण करने वाला, मंदिर की सफाई करने वाला, मंदिर की आरती के समय घंटी बजाने वाला आदि सभी लोग ट्रस्ट द्वारा दी जाने वाली दक्षिणा एवम भोजन पर रखे गए थे।
आरती खत्म हो जाने के बाद जहाँ अन्य लोग चढ़ावे को इक्कठा कर कोष में जमा कराने में तत्पर रहते थे वही घंटी बजाने वाला ‘घनश्याम’ आरती के समय भाव के साथ इतना भावविभोर हो जाता था कि होश में ही नही…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on November 1, 2018 at 10:09pm — 3 Comments
बैसाखियाँ
वे अचानक आसमान से टपके या ज़मीन से निकले, पता ही न चला। देश के उन वीर सपूतों के नारे यदि देश के दुश्मन सुन लें तो हमारी ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत ही न करें। लेकिन इस वक्त उनकी बहादुरी और देशभक्ति का शिकार था वह जो, राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं हुआ था। उसे उसकी सज़ा तो मिलनी ही थी।
उसे जब होश आया तो वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा मुश्किल से सांस ले रहा था। उसका एक हाथ हथकड़ी के सहारे पलंग से जकड़ा हुआ था, और बाहर एक पुलिस का सिपाही पहरे पर था कि देश का मुजरिम…
ContinueAdded by Mirza Hafiz Baig on October 31, 2018 at 11:23pm — 5 Comments
"सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु । ... सर्वेषां शान्तिर्भवतु । ... सर्वेषां पूर्नं भवतु । ... सर्वेषां मड्गलं भवतु ॥" इस 'वैश्विक-प्रार्थना' के स्वर जब उसने सुने तो उसकी आंखों में आंसू आ गए।
"तुम कौन हो? इतने भव्य मुकाम पर चमकते हुए भी यूं क्यूं रो रहे हो" उसके कंधे पर स्वयं को संतुलित करते हुए 'प्रार्थना' गाने वाले 'शान्ति' के प्रतीक ने कहा।
"मैं... मैं हूं विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति.. सुनहरी मूर्ति.. सरदारों की सरदार! .. पर तुम अपने काम छोड़कर यहां कैसे?" आंखों से कुछ और अश्रु लुढ़काते…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 31, 2018 at 6:30am — 5 Comments
"जब ओज़ोन परत में छेद हो सकता है; ब्रह्मांड में ब्लैक होल हो सकते हैं! तो जबरन बनायी और थोपी गई मच्छरदानी में हम छेद कर, सेंध लगाकर फिर से इन सब का ख़ून क्यों नहीं चूस सकते, मित्रों!"
"बिल्कुल साहिब! नींद के शौक़ीन इन आरामपसंद नागरिकों ने हर तरह से तुष्टिकरण करवा के देख लिया! अब तो इनकी खटमलविहीन हाइटेक आरामगाह में हमें भी खटमल-नीतियों से सेंधमारी करनी चाहिए या बिच्छू-डंक-प्रहार-शैली से!"
"नहीं मित्रो, न तो हमें खटमल माफ़िक बनना है और न ही बिच्छू जैसा! इनके पास और भी…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2018 at 1:07am — 5 Comments
"आज फिर नींद नहीं आ रही है आपको, भूलने की कोशिश कीजिये उसे", रश्मि ने बेचैनी से करवट बदलते हुए राजन से कहा और उठकर बैठ गयी. कुछ देर तक तो वह अँधेरे में ही राजन का सर सहलाते रही, फिर उसने कमरे की बत्ती जला दी.
"लाइट बंद कर दो रश्मि, अँधेरे में फिर भी थोड़ा ठीक लगता है. उजाला तो अब बर्दास्त नहीं होता, काश उस दिन मैं नहीं रहा होता", राजन ने रश्मि की गोद में सर छुपा लिया.
धीरे धीरे रश्मि ने अब अपने आप को संभाल लिया था लेकिन अभी भी जब वह बाहर निकलती, उसे लगता जैसे लोगों की निगाहें उससे…
Added by विनय कुमार on October 26, 2018 at 12:24pm — 14 Comments
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