For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बैसाखियाँ (लघुकथा)

बैसाखियाँ

 

वे अचानक आसमान से टपके या ज़मीन से निकले, पता ही न चला। देश के उन वीर सपूतों के नारे यदि देश के दुश्मन सुन लें तो हमारी ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत ही न करें। लेकिन इस वक्त उनकी बहादुरी और देशभक्ति का शिकार था वह जो, राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं हुआ था। उसे उसकी सज़ा तो मिलनी ही थी।

उसे जब होश आया तो वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा मुश्किल से सांस ले रहा था। उसका एक हाथ हथकड़ी के सहारे पलंग से जकड़ा हुआ था, और बाहर एक पुलिस का सिपाही पहरे पर था कि देश का मुजरिम कहीं भाग न जाये। देशद्रोह का इल्ज़ाम कोई मामूली नहीं होता। और जब ऊपर से ही प्रेशर हो तो पुलिस कोई लापरवाही नहीं बरतती।

एक इंस्पेक्टर उससे पूछ ताछ कर रहा था, “तुम्हारे खिलाफ एफ आई आर है। तुमने राष्ट्रगान का अपमान किया है। लेकिन इस देश मे कानून का राज है और कानून तुम्हे भी उन पीटने वालों के खिलाफ शिकायत का मौका देता है। क्या तुम भी उनके खिलाफ एफ. आई. आर. दर्ज कराना चाहते हो? उन्हें पहचान लोगे?”

“मैं उन्हें किस तरह पहचान सकता हूँ? भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता।“ उसने कहा।

अपनी कार्रवाही पूरी करके इंस्पेक्टर जाने लगा तो पीछे से आवाज़ देकर उसने पूछा, “सर, वहां से मेरी बैसाखियां मिली क्या? या उन्होने मेरी हड्डियों के साथ साथ उसे भी तोड़-फोड़ दिया। मैं गरीब आदमी, दूसरी बैसाखियां नहीं खरीद सकता। और उनके बिना खड़ा भी नहीं हो सकता।“

इंस्पेक्टर ने अनभिज्ञता के भाव से सिर हिलाया और चला गया।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on November 5, 2018 at 4:00pm

आदरणीय मिर्ज़ा हाफिज बेग जी, अच्छी  लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Mohammed Arif on November 4, 2018 at 8:10am

आदरणीय मिर्ज़ा हाफिज़ बेग जी आदाब,

                          बहुत भी कटाक्षपूर्ण रचना । बाक़ी गुणीजन कह ही चुके हैं , संज्ञान लें । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mirza Hafiz Baig on November 2, 2018 at 9:04pm

शुक्रिया, मोहतरम जनाब समर कबीर साहब। आपकी हौसला अफजाई का हमेशा मुन्तज़िर रहता हूं। 

भाई तेजवीर सिंह जी आपकी कीमती सलाह के लिए शुक्रगुज़ार हूं। मुझे लगता है कि अंतिम पंक्ति, कमज़ोर लोगों के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता को अभिव्यक्त करती है; जो दर्शाना मेरा उद्देश्य था। यदि ऐसा नहीं हो सका तो यह मेरी असफलता है। मेरी इच्छा है, कि इस पंक्ति को प्रभावशाली बनाने हेतु सुझाव दें। धन्यवाद।

Comment by Samar kabeer on November 2, 2018 at 3:22pm

जनाब मिर्ज़ा हफ़ीज़ बैग साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 2, 2018 at 10:28am

हार्दिक बधाई आदरणीय मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग जी। बेहतरीन कटाक्ष पूर्ण लघुकथा।मेरी निजी राय है कि इसमें अंतिम पंक्ति अनावश्यक लग रही है। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
8 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service