For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Mirza Hafiz Baig's Blog (9)

प्लेन उड़ाती लडकियां

प्लेन उड़ाती लडकियां

(लघुकथा)

एयरोनॉटिकल शो। किस्म किस्म के हवाई जहाज़ आसमान में करतब दिखाते उड़े जाते हैं। अधिकतर प्लेन लड़कियां उड़ा रही हैं।

"पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी...।" एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है।

लड़कियां आसमान में प्लेन उड़ा रही हैं। लड़कियां आसमान छू रही हैं। लड़कियों का आत्मविश्वास आसमान पर है और एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है, "पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी।"

लोग कहते हैं, “लड़कियों को पंख लग गये…

Continue

Added by Mirza Hafiz Baig on March 9, 2019 at 7:58pm — 8 Comments

बैसाखियाँ (लघुकथा)

बैसाखियाँ

 

वे अचानक आसमान से टपके या ज़मीन से निकले, पता ही न चला। देश के उन वीर सपूतों के नारे यदि देश के दुश्मन सुन लें तो हमारी ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत ही न करें। लेकिन इस वक्त उनकी बहादुरी और देशभक्ति का शिकार था वह जो, राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं हुआ था। उसे उसकी सज़ा तो मिलनी ही थी।

उसे जब होश आया तो वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा मुश्किल से सांस ले रहा था। उसका एक हाथ हथकड़ी के सहारे पलंग से जकड़ा हुआ था, और बाहर एक पुलिस का सिपाही पहरे पर था कि देश का मुजरिम…

Continue

Added by Mirza Hafiz Baig on October 31, 2018 at 11:23pm — 5 Comments

सुबह का इंतज़ार (लघुकथा)

बहुत अंधेरा है। सुबह बहुत दूर है अभी। अमेरिका से अभी चली हो शायद...

नींद नहीं आती। आये भी कैसे? पेट खाली नहीं, भविष्य तो खाली है। खाली पेट नींद भले आ जाये; लेकिन भविष्य की सुरक्षा की चिंता कब सोने देती है? माँ बाप के लाखों फूंक कर, रात और दिन की तपस्या से व्यवसायिक डिग्री हासिल करने के बाद भी यह साल दो साल के एग्रीमेंट? इससे तो बेहतर था पकोड़े तलता। लेकिन वहां भी पहले से जमे लोग आपका स्वागत नहीं करते... “यहां नहीं, यहां नहीं। हम इतने बरसों से यहां झक मार रहे हैं क्या?”

“एक तो…

Continue

Added by Mirza Hafiz Baig on September 14, 2018 at 11:00am — 6 Comments

दर्द (लघुकथा)

दर्द फिर उठा है। दर्द बहुत तेज़ है। कहते हैं, दर्द का हद से गुज़र जाना दवा है। ऐ दर्द गुज़र जा आज अपनी हदों से तू। ज़रा मैं भी तो देखूँ तेरा दवा हो जाना।

दर्द सचमुच बड़ा बेदर्द है। वह सचमुच बढ़ता जाता है; अपनी हदों को पार करता हुआ। अब नही, अब नही.......। अब बर्दाश्त नही होता। लेकिन दर्द तो बेदर्द है। बढ़ता ही जा रहा है; बर्दाश्त की हदों को पार करता हुआ। अब लगता है, जैसे सिमट आया है एक ही जगह।

दिल!

आह, दर्द-ए-दिल। सिमट आता है एक ही मुकाम पर। लगता है जैसे दिल किसी शिकंजे में कसा…

Continue

Added by Mirza Hafiz Baig on July 23, 2018 at 1:00pm — 7 Comments

युद्ध और साम्राज्य 2

पुराने ज़माने की बात है ।

        दो पङोसी देशों मे आपस सहयोग बढने लगा था । कहते हैं कि जब सहयोग बढता है तो परस्पर विश्वास जनम लेता है और विश्वास से प्रेम । प्रेम से मेल जोल बढता है और मेलजोल से खुशहाली आती है । लेकिन खुशहाल प्रजा भलीभांति शासित नही होती । क्योंकि खुशहाल व्यक्ति सम्पन्न होता है और समपन्न ही शक्तिशाली । फिर शक्तिशाली तो शासन ही करता है , उसे शासित नही किया जा सकता । गडरिया तो भेड़ों  के झुंड को ही चराता है , कभी शेरों के झुंड को चराते किसी को देखा गया है क्या ?…

Continue

Added by Mirza Hafiz Baig on March 20, 2018 at 1:00pm — 6 Comments

युद्ध और साम्राज्य

एक राजा के राज्य मे जब प्रजा का असंतोष चरम पर पहुंच गया और साम्राज्य की रक्षा करना असंभव लगने लगा तो वह जंगल मे महात्मा की शरण मे जा पहुंचा ।

       "महात्मा ! विकट परिस्थिति है । उपाय बताएं ।" राजा ने हाथ जोङकर महात्मा से विनती की ।

       "उपाय तो आसान है राजन ।" महात्मा ने कहा "तेरे राज्य की कौनसी सीमा सबसे ज्यादा अशांत है ?"

       "कोई नही ! मेरे तो सभी पङोसी राजाओं से मधुर संबंध है । इससे बाहरी आक्रमण से देश सुरक्षित रहता है ।" राजा ने उत्तर दिया ।

      …

Continue

Added by Mirza Hafiz Baig on March 20, 2018 at 1:00pm — 9 Comments

उल्टी गंगा

ट्राफ़िक पुलिस को देख उसे आईडिया आया । उसने झट अपनी बाईक किनारे लगाई, हेलमेट सिर से उतारकर बाईक के पीछे लटकाया । उस नोट बंदी के मारे ने, धड़धड़ाते हुये बाईक लेजाकर इन्स्पेक्टर के सामने रोकी ।

“सर, मेरा चालान काटिये मै हेल्मेट नही पहना हूं ।“ वह बोला ।

इन्स्पेक्टर ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा । पूछा – “दो सौ रुपये छुट्टे है ?”

उसने इन्कार मे सर हिलाया ।

“ठीक है, जब छुट्टे होंगे तब आना ।“ इन्स्पेक्टर ने कहा ।

“सर, आज ही …”

“ऐसा है बेटा । अपना हेल्मेट सिर पे…

Continue

Added by Mirza Hafiz Baig on November 21, 2016 at 1:09am — 5 Comments

बकरे की अम्मा

बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती ।

आखिर वे लोग आ पहुंचे तो बकरे की अम्मा रोने लगी “देखिये आराम से … ज़्यादा तकलीफ़ तो नहीं होगी न … बड़े प्यार से पाला है …”

“आप चिंता न करें हमारे कसाई हाई स्किल्ड हैं …” वे बोले ।

“फ़िर भी …” वह विनती करने लगी ।

“देखिये ! हम किसी पर अत्याचार नहीं करते । हमारी व्यवस्था भी लोकतांत्रिक है । हम हर एक बकरे को वोट का अधिकार देते हैं । हमारे बकरे अपना कसाई खुद चुनते हैं …”

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Mirza Hafiz Baig on November 19, 2016 at 9:06am — 8 Comments

शर्म हमको मगर नही आती

“शर्म नहीं आती ?”

“शर्म क्यों आयेगी… ?” वह बोला- “अपने पैसे से पीता हूं । भीख नहीं मांगता । मुझे क्यों शर्म आयेगी ?“

मैने भिखारी से कहा- “हट्टे कट्टे होकर भीख मांगते हो शर्म नहीं आती ?”

“शर्म क्यों आयेगी भीख मांगता हूं , कोयी चोरी तो नही करता । शर्म तो चोर को आनी चाहिये ।“

मै चोर के पास गया ।

“शर्म नहीं आती ?” मैने कहा ।

“क्यों भाई ? मुझे शर्म क्यों आयेगी ? कोई मुफ़्त मे करता हूं… निछावर देना पड़ता है । कहां से दूंगा ? धंधा है भाई , कमाऊंगा नही तो…

Continue

Added by Mirza Hafiz Baig on November 14, 2016 at 11:28am — 3 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service