For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

युद्ध और साम्राज्य

एक राजा के राज्य मे जब प्रजा का असंतोष चरम पर पहुंच गया और साम्राज्य की रक्षा करना असंभव लगने लगा तो वह जंगल मे महात्मा की शरण मे जा पहुंचा ।
       "महात्मा ! विकट परिस्थिति है । उपाय बताएं ।" राजा ने हाथ जोङकर महात्मा से विनती की ।
       "उपाय तो आसान है राजन ।" महात्मा ने कहा "तेरे राज्य की कौनसी सीमा सबसे ज्यादा अशांत है ?"
       "कोई नही ! मेरे तो सभी पङोसी राजाओं से मधुर संबंध है । इससे बाहरी आक्रमण से देश सुरक्षित रहता है ।" राजा ने उत्तर दिया ।
       "तू मूर्ख है राजन ! पङोसी देशों से संबंध मधुर हों तो देश सुरक्षित रहता है । देश की जनता सुरक्षित रहती है । लेकिन जब देश की जनता सुरक्षित रहती है, तो राजा सुरक्षित नहीं रहता । खूब अच्छी तरह समझ ले राजन यदि देश के सामने कोई समस्या नहीं होगी तो देश तेरे शासन को क्यों बर्दाश्त करेगा । इसलिए हर महान शासक लगातार युद्ध करता रहता है । इससे देश की जनता पर बोझ ज़रूर बढ़ता है लेकिन राजा का साम्राज्य सुरक्षित रहता है । सत्ता सुरक्षित रहती है ।"
       "मै समझ गया महाराज ।" राजा ने कहा ।
       दूसरे दिन देश की एक सीमा पर स्थित खेतों में पङोसी देश की सेना ने आग लगा दी और कई सैनिक छावनियो को भी जला दिया । देश की जनता क्रुद्ध हो उठी और सबसे ज्यादा क्रुद्ध राजा हुआ । युद्ध छिङ गया । प्रजा मे अद्भुत उत्साह अद्भुत देशप्रेम देखने मिला । सेना ने बढ़ चढ़कर युद्ध में भाग लिया । प्रजा ने अपनी सम्पत्ति, अपनी श्रेष्ठ संताने युद्ध को समर्पित कर दी । सेना ने अपने श्रेष्ठ वीर सैनिक गंवाए । किसानो की कीमती उपजाऊ जमीन  बंजर हो गई । लेकिन राजा को प्रजा का अभूतपूर्व समर्थन प्राप्त हुआ । देश की हानि अवश्य हुई किंतु राजा का साम्राज्य  सुरक्षित हो गया ।
       ". . . तो भक्तों ! जिस शासक को अपनी सत्ता सुरक्षित रखनी हो, उसे चाहिये देश को युद्ध मे झोंकता रहे. . ." इतना कहके महात्मा ने अपना प्रवचन पूरा किया ।

 

 

***

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Lalbahadur Yadav on July 28, 2018 at 8:28pm

युद्ध और साम्राज्य
kahani bahut achchi lagi

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2018 at 10:47am

हार्दिक बधाई..

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2018 at 6:03am

जनाब मिर्जा हाफ़िज़ साहिब सादर अभिवादन। उम्दा लघुकथा लिखी आपने। बहुत बढ़िया लगा। बहुत बहुत बधाई आपको। सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 21, 2018 at 9:03pm

जनाब मिर्ज़ा हाफ़िज़ साहिब ,उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by Ajay Tiwari on March 21, 2018 at 5:14pm

आदरणीय हफ़ीज़ साहब, इस सशक्त लघुकथा के लिए. हार्दिक बधाई.

किस्सागोई की शैली ने इसे अतिरिक्त धार और खूबसूरती दी है.

सादर  

Comment by Samar kabeer on March 20, 2018 at 11:19pm

जनाब मिर्ज़ा हफ़ीज़ बैग साहिब आदाब,बहुत अर्से बाद आपकी रचना के दर्शन हुए,कहाँ थे भाई?

बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

मंच पर अपनी सक्रियता बनाये रखें ।

Comment by somesh kumar on March 20, 2018 at 11:09pm
  1. SAAMYIK rajniti pr achch ktaksh hai pr jnta me ashntosh एवं surksha dono का होना विरोधाभास lgta hai.
  2. PRVCHNATMK shaili khani ka prbhav km krti hai 
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 20, 2018 at 8:14pm

बहुत ख़ूब.... शुक्र है महत्मा ने भक्तो कहा... मितरों sssss नहीं ;)
सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 20, 2018 at 3:38pm

वर्तमान देश के कईयों चुप्पी साधे बुद्धिजीवियों के दिल का दर्द और मन की बात आपने बेहतरीन कथा में शाब्दिक किया है‌‌  कड़वा सच। सदियों से चली आ रही परम्परा। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मिर्ज़ा हाफ़िज़ बेग़ साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
40 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service