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All Blog Posts Tagged 'ग़ज़ल' (449)


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पत्ता था, सब्ज़, टूटके खिड़की में आ गया

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पत्ता था, सब्ज़, टूटके खिड़की में आ गया

हस्ती शजर की बाकी है मुझको बता गया

 

माना हवाएँ तेज़ हैं मेरे खिलाफ़ भी

लेकिन जुनून लड़ने का इस दिल पे छा गया

 

खोने को पास कुछ भी नहीं था हयात में

किसकी तलाफ़ी हो अभी तक मेरा क्या गया

 

शायद ये दुनिया मेरे लिए थी नहीं कभी

फिर शिकवा क्यों करुँ कि खुदा फ़ैज़ उठा गया

 

ख़्वाबों को ज़िन्दा करके भी क्या होता, दोस्तो!

मेरा जो वक्त था…

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Added by शिज्जु "शकूर" on March 17, 2017 at 2:30pm — 9 Comments


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जो अपने ख्वाब के लिए जाँ से गुज़र गए

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जो अपने ख्वाब के लिए जाँ से गुज़र गए

खुद ख़्वाब बनके सबके दिलों में उतर गए

 

थोड़ा असर था वक्त का थोड़ी मेरी शिकस्त

जो ज़ीस्त से जु़ड़े थे वो अहसास मर गए

 

रिश्तों पे चढ़ गया है मुलम्मा फ़रेब का

अब जाने रंग कुदरती सारे किधर गए

 

ये सोच ही रहा था कि मैं क्या नया लिखूँ

फिर से वही चराग़ वरक़ पर उभर गए

 

बिखरे हुए थे दर्द तुम्हारी किताब में

दिल से गुज़र के वो मेरी आँखों…

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Added by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2017 at 10:30am — 8 Comments


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वक्त मेरे हाथों से, यूँ फिसल गया चुपचाप

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वक्त मेरे हाथों से, यूँ फिसल गया चुपचाप

मेरी हर तमन्ना को, वो कुचल गया चुपचाप

 

चाक दिल, शिकस्ता पा, बेचराग़ गलियों से

भूल अपने ख्वाबों को, मैं निकल गया चुपचाप

 

एक आइना था…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 19, 2017 at 6:16pm — 7 Comments


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सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं

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सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं

हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं

 

अह्ल ए अदब जो चमके है औरों के ताब से

खुद को मगर वो लाल ए बदख़्शाँ समझते हैं

 

आमाल में हमारे ही कमियाँ न हों जनाब

शैतान को भी लोग मुसलमाँ समझते हैं

 

बातों से जब न बात बनी, सर झुका लिया

धोखे में हैं जो उसको पशेमाँ समझते हैं

 

फिरती है वो हलक में लिए जान, और आप

कुत्तों के बीच जीने को आसाँ समझते…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 11, 2017 at 11:40am — 12 Comments


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रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा - ग़ज़ल

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रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा

बेखुदी में तूने मेरे दोस्त ये क्या-क्या लिखा

 

वो तो सीधे रास्ते पर था मगर यह देखिये

नासमझ लोगो ने उसका हर क़दम उल्टा लिखा

 

एक मुद्दत से अदब में है सियासत का चलन

मैं अलग था नाम के आगे मेरे झूठा लिखा

 

जब तेरे दिल में कभी उभरा जो मंज़र शाम का

तूने काग़ज़ पर महज मय सागर-ओ-मीना लिखा

 

अब मुहब्बत पर अक़ीदत ही नहीं है लोगों को

इसलिए पाक़ीज़गी को ही…

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Added by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:30pm — 20 Comments


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किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले

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किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले

फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले

 

दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं

हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले

 

नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का…

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Added by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2016 at 11:00am — 17 Comments


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मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है- शिज्जु शकूर

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मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है

वो लड़कपन खूब था अब ये  जवानी और है

 

आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया

तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है

 

मैं छुपाता हूँ जहाँ से दर्द-ए-दिल ये बोलकर

हिज़्र की तासीर कुछ मेरी कहानी और है

 

वस्ल की बातें वो लमहे भूल भी जाऊँ मगर

मेरे दिल में इक मुहब्बत की निशानी और है

 

आबले हाथों के मुझसे कह रहे हैं फूटकर

कामयाबी और शय है जाँफ़िशानी…

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Added by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2016 at 5:54pm — 16 Comments

त़रह़ी ग़ज़ल..

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तेरे औ' मेरे नामों पर सियासत और हो जाती

निहाँ होता नहीं सब कुछ तो आफ़त और हो जाती.



ह़दों से आगे जा कर ये ग़मे फ़ुर्क़त असर करता

अगर मुझको तेरी स़ुह़्बत की आ़दत और हो जाती.



ये रोने धोने का आ़लम, फ़िराक़े यार का मौसम

ए क़िस्मत! हैं अभी ये कम, अज़ीयत और हो जाती!



ख़िरद पर ग़र यकीं करते नहीं फिर जाने क्या होता

जो सुनते दिल की, दुनिया से अ़दावत और हो जाती.



चलो अच्छा हुआ दो टूक तुमने कह दिया… Continue

Added by shree suneel on October 3, 2016 at 11:45am — 3 Comments


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मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिलें

संशोधित

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मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिले

यूँ अँधेरों की झलक दिन के उजालों में मिले

 

आपके ग़म से किसी को कोई निस्बत ही कहाँ

बेबसी दर्द हमेशा बुरे हालों में मिले

 

अब मेरे शहर में भी लोग खिलाड़ी हुए हैं

पैंतरे खूब हर इक शख़्स की चालों में मिले

 

चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल

ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिले

 

दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर…

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Added by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2016 at 2:30pm — 15 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल- शिज्जु शकूर

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वो बहुत खुश है ‘उल्लू’ बनाकर मुझे

और तस्कीं है अहसाँ जताकर मुझे



करते हो फल की उम्मीद ऐ जान तुम*

रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे



कोयले की दहकती हुई आँच पर

रख दिया काँटों में से उठाकर मुझे



अपने अह्सान के बोझ को लादकर

मार तो डाला आखिर बचाकर मुझे



रोज़ बेचैनियाँ ही मिलीं रू-ब-रू

खुद को सारे जहाँ से छुपाकर मुझे



तस्कीं- संतोष



*फल की उम्मीद करते हो नादान तुम

साथ इच्छाओं के यूँ दबाकर… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2016 at 4:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल- दर्द की क्या कहूँ ये धडकन है

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दर्द की क्या कहूँ ये धडकन है।
दिल में घर है जिगर में आँगन है।

तुम न समझो तो क्या करे कोई।
मेरे मन में तुम्हारी उलझन है।

तुम जमाने की सुन के मत रूठो।
ये जमाना तो सिर्फ दुश्मन है।

क्या अजब रोग है मुहब्बत भी।
दिल की राहत ही दिल की तडपन है।

इसमें उसकी खता नहीं ' राहुल' ।
मेरी किस्मत की मुझसे अनबन है।

मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by Rahul Dangi Panchal on June 12, 2016 at 9:07am — 2 Comments

ग़ज़ल :शिकस्ता दिल है...

1222×4



शिकस्ता दिल है, रंजोग़म से ये क्योंकर उबर जाए

जज़ा ये है अब आँखों में ज़रा ख़ूँ भी उतर जाए.



हम एेसे सच्चे दिल का हैं ख़तावार आज ऐ यारो

कि चलने भी न संगे राह दे, तल्वीम कर जाए.



कहाँ कुछ बदले हैं हालात मेरे चंद सालों में

लकीरे दस्त पे कोई मेरे भीतर विफर जाए.



कदम इन कुर्सियों पे बैठ कर बस धुन हीं लेता हूँ

ये पा ए पीर क्या निकले भी घर से और घर जाए.



बहुत दिन एक से हालात में गुज़री ह़यात,अब तो

कोई लम्हा तसल्ली… Continue

Added by shree suneel on May 26, 2016 at 12:32am — 6 Comments

ग़ज़ल- काम आईँ नही दवाएँ क्यूँ

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बेअसर हो गईं दवाएँ क्यूँ

काम आईं नहीं दुआएँ क्यूँ



हम ग़लत फ़हमियों में आएँ क्यूँ

दोस्त है वो तो आज़माएँ क्यूँ



आँख तक आँसुओं को लाएँ क्यूँ

ज़ब्त की एहमियत गिराएँ क्यूँ



साँस दर साँस एक ही सरगम

दूसरा गीत गुनगुनाएँ क्यूँ



जिसके सीने में दिल हो पत्थर का

उसकी चौखट पे गिडगिडाएँ क्यूँ



वक्त आने पे जान जाएगा

इश्क़ क्या है उसे बताएँ क्यूँ



हो गईं क्या समाअतें कमज़ोर

कोई सुनता नहीं सदाएँ…

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Added by Rahul Dangi Panchal on May 16, 2016 at 12:00am — 12 Comments

पुल बने हैं कागजों पर कागजों पर ही नदी -ग़ज़ल

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खोटा सिक्का हो गया है आज अय्यारों का फन

हर तरफ  छाया  हुआ है  आज बाजारों का फन

कर रही है अब समर्थन पप्पुओं की भीड़ भी

क्या गजब ढाने लगा है आज गद्दारों का फन

हौसला  देते  जरा  तो  क्या  गजब  करती  सुई

आजमाने में लगे सब किन्तु तलवारों का फन

पुल  बने  हैं  कागजों  पर  कागजों पर ही नदी

क्या गजब यारो यहा आजाद सरकारों का फन

पास जाती नाव है जब साथ नाविक छोड़ता

आपने देखा न होगा यार…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 16, 2016 at 11:21am — No Comments

ग़ज़ल--क्यूं कभी मेरी किसी से या खुदा बनती नहीं।

२१२२ २१२२ २१२२ २१२



क्यूं कभी मेरी किसी से या खुदा बनती नहीं।

आपने मेरे लिए कोई खुशी सोची नहीं ।



लोग जो अच्छे है मुझको सोच लेते हैं बुरा।

क्या मेरी नादानियों की आदतें अच्छी नहीं ।



मैंने उनसे सिर्फ अपनी भावनाएँ बाँटी थी।

बेवजह गुस्सा ये उनका क्या गलतफहमी नहीं।



मान ली मैंने चलो मुझसे खता कुछ हो गयी।

हो गयी अनजाने में अब क्या मुझे माफी नहीं।



सीख में आकर जमाने की किया है फैसला।

बात की दहलीज तक तो आप पहुँचे भी… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on March 18, 2016 at 8:10am — 3 Comments

ग़ज़ल-आह उफ कर ले रू ब रू न आए।

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क्यूं मुझे मौत की ये बू न आये।
तेरी याद आए और तू न आये।

जख्म दर जख्म चींख,दर्द,आह,उफ।
हाल-ए-दिल,शे'र हू-ब-हू न आये।

रोज देखे किसी को छुप के हम।
आह उफ कर ले रू ब रू न आए।

रोज आए नजर से लब तक हम।
पर लबों तक ये आरजू न आये।

वो ग़ज़ल क्या ग़ज़ल जिसे सुनकर।
दर्द की आँख में लहू न आये।

होंठ पर फूल और दिल काला।
मुझको ये इल्मे गुफ्तगू न आये।

मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by Rahul Dangi Panchal on March 13, 2016 at 9:00pm — 14 Comments

साथ मेरे कभी रहो भी मियाँ

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साथ मेरे कभी रहो भी मियाँ

कुछ सुनाओ तो कुछ सुनो भी मियाँ.



चाँद बन जाओ या सितारे तुम

पर कभी तो फ़लक बनो भी मियाँ.



क्या है तुझमें,नहीं है क्या तुझमें

ये कभी ख़ुद से पूछ लो भी मियाँ.



तुम बहुत बोलते हो बढ़ चढ़कर

ये कमी दूर तुम करो भी मियाँ.



अब ये दारोमदार है तुम पर

तुम जहाँ हो वहाँ टिको भी मियाँ.



राय क़ाइम न दूर से करते

पहले सबसे मिलो जुलो भी मियाँ.



ज़िंदगी में कहाँ सुकून… Continue

Added by shree suneel on March 5, 2016 at 5:51pm — 5 Comments

ग़ज़ल-आश फिर भी न बाज आती है।

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वक्त बेवक्त याद आती है।
बेहया रात दिन रुलाती है।

तेरे खत से महक चुराता हूँ।
तब कहीं एक साँस आती है।

रोज किस्मत मेरी मुहब्बत में।
दर पे आ आ के लौट जाती है।

साफ कह बेवफा सनम तू अब।
मेरी गुरबत से हिचकिचाती है।

जिन्दगी कोसती रही दिल को।
आश फिर भी न बाज आती है।

दिल के हर इक गली मुहल्ले में।
रात भर हिज्र खूं बहाती है।

मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by Rahul Dangi Panchal on February 29, 2016 at 1:16pm — 8 Comments

ग़ज़ल- वक्त को मौत का इनाम आए।

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तेरे हक में खुशी तमाम आए।
मेरा हिस्सा भी तेरे नाम आए।

तेरी पलके कभी न हो गीली।
और मुस्कान सुब्हो शाम आए।

बेरहम वक्त ने किया है जो।
वक्त को मौत का इनाम आए।

तुझे लवकुश कि इतनी राहत दे ।
याद तुझको कभी न राम आए।

दिल जिगर रूह राह देखे है।
कौन पहले तुम्हारे काम आए।

अपना मतलब तो सिर्फ इतना है।
तेरे लब पर मेरा कलाम आए।

मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by Rahul Dangi Panchal on February 27, 2016 at 3:39pm — 6 Comments

ग़ज़ल

हर कोई लालायित कितना, कैसे भी हों कालजयी

इस चक्कर में ठेला-ठाली, धक्का-मुक्की मची रही

नदी वही है, लहर वही है, और खिवईया रहे वही

लेकिन अपनी नाव अकेली बीच भंवर में फंसी रही

बार-बार समझाते उनको हम भी हैं तुम जैसे ही

बार-बार उनके भेजे में बात हमारी नहीं घुसी

छोडो तंज़-मिजाज़ी बातें, आओ बैठो गीत बुनें

खींचा-तानी करते-करते बात वहीं पे रुकी रही

(अप्रकाशित मौलिक) 

Added by anwar suhail on February 22, 2016 at 8:30pm — No Comments

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