221 2121 1221 212
पत्ता था, सब्ज़, टूटके खिड़की में आ गया
हस्ती शजर की बाकी है मुझको बता गया
माना हवाएँ तेज़ हैं मेरे खिलाफ़ भी
लेकिन जुनून लड़ने का इस दिल पे छा गया
खोने को पास कुछ भी नहीं था हयात में
किसकी तलाफ़ी हो अभी तक मेरा क्या गया
शायद ये दुनिया मेरे लिए थी नहीं कभी
फिर शिकवा क्यों करुँ कि खुदा फ़ैज़ उठा गया
ख़्वाबों को ज़िन्दा करके भी क्या होता, दोस्तो!
मेरा जो वक्त था…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 17, 2017 at 2:30pm — 9 Comments
221 2121 1221 212
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जो अपने ख्वाब के लिए जाँ से गुज़र गए
खुद ख़्वाब बनके सबके दिलों में उतर गए
थोड़ा असर था वक्त का थोड़ी मेरी शिकस्त
जो ज़ीस्त से जु़ड़े थे वो अहसास मर गए
रिश्तों पे चढ़ गया है मुलम्मा फ़रेब का
अब जाने रंग कुदरती सारे किधर गए
ये सोच ही रहा था कि मैं क्या नया लिखूँ
फिर से वही चराग़ वरक़ पर उभर गए
बिखरे हुए थे दर्द तुम्हारी किताब में
दिल से गुज़र के वो मेरी आँखों…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2017 at 10:30am — 8 Comments
212 1222 212 1222
वक्त मेरे हाथों से, यूँ फिसल गया चुपचाप
मेरी हर तमन्ना को, वो कुचल गया चुपचाप
चाक दिल, शिकस्ता पा, बेचराग़ गलियों से
भूल अपने ख्वाबों को, मैं निकल गया चुपचाप
एक आइना था…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 19, 2017 at 6:16pm — 7 Comments
221 2121 1221 212
सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं
हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं
अह्ल ए अदब जो चमके है औरों के ताब से
खुद को मगर वो लाल ए बदख़्शाँ समझते हैं
आमाल में हमारे ही कमियाँ न हों जनाब
शैतान को भी लोग मुसलमाँ समझते हैं
बातों से जब न बात बनी, सर झुका लिया
धोखे में हैं जो उसको पशेमाँ समझते हैं
फिरती है वो हलक में लिए जान, और आप
कुत्तों के बीच जीने को आसाँ समझते…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 11, 2017 at 11:40am — 12 Comments
2122 2122 2122 212
रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा
बेखुदी में तूने मेरे दोस्त ये क्या-क्या लिखा
वो तो सीधे रास्ते पर था मगर यह देखिये
नासमझ लोगो ने उसका हर क़दम उल्टा लिखा
एक मुद्दत से अदब में है सियासत का चलन
मैं अलग था नाम के आगे मेरे झूठा लिखा
जब तेरे दिल में कभी उभरा जो मंज़र शाम का
तूने काग़ज़ पर महज मय सागर-ओ-मीना लिखा
अब मुहब्बत पर अक़ीदत ही नहीं है लोगों को
इसलिए पाक़ीज़गी को ही…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:30pm — 20 Comments
221 2121 1221 212
किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले
फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले
दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं
हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले
नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2016 at 11:00am — 17 Comments
2122 2122 2122 212
मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है
वो लड़कपन खूब था अब ये जवानी और है
आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया
तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है
मैं छुपाता हूँ जहाँ से दर्द-ए-दिल ये बोलकर
हिज़्र की तासीर कुछ मेरी कहानी और है
वस्ल की बातें वो लमहे भूल भी जाऊँ मगर
मेरे दिल में इक मुहब्बत की निशानी और है
आबले हाथों के मुझसे कह रहे हैं फूटकर
कामयाबी और शय है जाँफ़िशानी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2016 at 5:54pm — 16 Comments
Added by shree suneel on October 3, 2016 at 11:45am — 3 Comments
संशोधित
2122 1122 1122 112/22
मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिले
यूँ अँधेरों की झलक दिन के उजालों में मिले
आपके ग़म से किसी को कोई निस्बत ही कहाँ
बेबसी दर्द हमेशा बुरे हालों में मिले
अब मेरे शहर में भी लोग खिलाड़ी हुए हैं
पैंतरे खूब हर इक शख़्स की चालों में मिले
चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल
ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिले
दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2016 at 2:30pm — 15 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2016 at 4:00pm — 17 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on June 12, 2016 at 9:07am — 2 Comments
Added by shree suneel on May 26, 2016 at 12:32am — 6 Comments
2122 1212 22
बेअसर हो गईं दवाएँ क्यूँ
काम आईं नहीं दुआएँ क्यूँ
हम ग़लत फ़हमियों में आएँ क्यूँ
दोस्त है वो तो आज़माएँ क्यूँ
आँख तक आँसुओं को लाएँ क्यूँ
ज़ब्त की एहमियत गिराएँ क्यूँ
साँस दर साँस एक ही सरगम
दूसरा गीत गुनगुनाएँ क्यूँ
जिसके सीने में दिल हो पत्थर का
उसकी चौखट पे गिडगिडाएँ क्यूँ
वक्त आने पे जान जाएगा
इश्क़ क्या है उसे बताएँ क्यूँ
हो गईं क्या समाअतें कमज़ोर
कोई सुनता नहीं सदाएँ…
Added by Rahul Dangi Panchal on May 16, 2016 at 12:00am — 12 Comments
2122 2122 2122 212
खोटा सिक्का हो गया है आज अय्यारों का फन
हर तरफ छाया हुआ है आज बाजारों का फन
कर रही है अब समर्थन पप्पुओं की भीड़ भी
क्या गजब ढाने लगा है आज गद्दारों का फन
हौसला देते जरा तो क्या गजब करती सुई
आजमाने में लगे सब किन्तु तलवारों का फन
पुल बने हैं कागजों पर कागजों पर ही नदी
क्या गजब यारो यहा आजाद सरकारों का फन
पास जाती नाव है जब साथ नाविक छोड़ता
आपने देखा न होगा यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 16, 2016 at 11:21am — No Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on March 18, 2016 at 8:10am — 3 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on March 13, 2016 at 9:00pm — 14 Comments
Added by shree suneel on March 5, 2016 at 5:51pm — 5 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on February 29, 2016 at 1:16pm — 8 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on February 27, 2016 at 3:39pm — 6 Comments
हर कोई लालायित कितना, कैसे भी हों कालजयी
इस चक्कर में ठेला-ठाली, धक्का-मुक्की मची रही
नदी वही है, लहर वही है, और खिवईया रहे वही
लेकिन अपनी नाव अकेली बीच भंवर में फंसी रही
बार-बार समझाते उनको हम भी हैं तुम जैसे ही
बार-बार उनके भेजे में बात हमारी नहीं घुसी
छोडो तंज़-मिजाज़ी बातें, आओ बैठो गीत बुनें
खींचा-तानी करते-करते बात वहीं पे रुकी रही
(अप्रकाशित मौलिक)
Added by anwar suhail on February 22, 2016 at 8:30pm — No Comments
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