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साथ मेरे कभी रहो भी मियाँ

2122 1212 22/112

साथ मेरे कभी रहो भी मियाँ
कुछ सुनाओ तो कुछ सुनो भी मियाँ.

चाँद बन जाओ या सितारे तुम
पर कभी तो फ़लक बनो भी मियाँ.

क्या है तुझमें,नहीं है क्या तुझमें
ये कभी ख़ुद से पूछ लो भी मियाँ.

तुम बहुत बोलते हो बढ़ चढ़कर
ये कमी दूर तुम करो भी मियाँ.

अब ये दारोमदार है तुम पर
तुम जहाँ हो वहाँ टिको भी मियाँ.

राय क़ाइम न दूर से करते
पहले सबसे मिलो जुलो भी मियाँ.

ज़िंदगी में कहाँ सुकून कभी
ठीक हीं है,चलो! है जो भी मियाँ.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by amita tiwari on March 7, 2016 at 6:31pm

बहुत बढ़िया।बहुत  सुंदर।

Comment by shree suneel on March 7, 2016 at 11:38am
ग़ज़ल में शिर्कत और इसकी सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कांता राॅय जी. सादर
Comment by shree suneel on March 7, 2016 at 11:36am
ग़ज़ल में शिर्कत व सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर सर जी. सादर.
Comment by kanta roy on March 6, 2016 at 8:37pm

राय क़ाइम न दूर से करते
पहले सबसे मिलो जुलो भी मियाँ.------वाह ! बहुत गहरी बात कही है आपने आदरणीय श्री सुनील जी इस ग़ज़ल में।  बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on March 6, 2016 at 2:47pm
जनाब श्री सुनील जी आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।

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