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All Blog Posts Tagged 'ग़ज़ल' (449)

हमने तुम्हारे वास्ते क्या क्या नहीं किया - सलीम रज़ा

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हमने तुम्हारे वास्ते क्या क्या नहीं किया

अफ़सोस तुमने हमपे भरोसा नहीं किया

oo

आया है जब से नाम तुम्‍हारा ज़बान पर 

होटों ने फिर किसी का भी चर्चा नहीं किया

oo

ज़ुल्मों सितम ज़माने के हंस हंस के सह लिए

लेकिन कभी ईमान का सौदा नहीं किया 

oo

अमनो अमां से हमने गुज़ारी है ज़िंदगी 

मज़हब के नाम पर कभी झगड़ा नहीं किया

oo

उम्मीद उस बशर से करें क्या वफ़ा की हम

जिसने किसी के साथ भी अच्छा नहीं किया…

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Added by SALIM RAZA REWA on February 6, 2018 at 10:30pm — 14 Comments

जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ - सलीम रज़ा रीवा

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जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ

ग़म भी लगे हुए हैं मगर ज़िन्दगी के  साथ

-  

नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ 

दिल में उतर  गया वो बड़ी सादगी के साथ

-  

आएगा मुश्किलों में भी जीने का फ़न तुझे

कुछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िन्दगी के साथ

-  

ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में

यूँ ही नहीं है प्यार हमें  शायरी के…

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Added by SALIM RAZA REWA on February 4, 2018 at 10:00am — 18 Comments

तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता - सलीम रज़ा रीवा

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तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता

दिल ये तुझपे फ़िदा नहीं होता   

-

इश्क़ तुमसे किया नहीं होता 

ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता

-

ज़िन्दगी तो  संवर गयी  होती 

ग़र वो मुझसे जुदा नहीं होता

-

उसकी चाहत ने कर दिया पागल 

प्यार  इतना  किया  नहीं  होता 

-

सबको दुनिया बुरा बनाती है

कोई इंसाँ बुरा नही होता

-

चोट खाएँ भी मुस्कुराएँ भी

अब रज़ा हौसला नहीं होता. …

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Added by SALIM RAZA REWA on January 13, 2018 at 10:30pm — 21 Comments

मुझसे ऐ जान-ए-जानाँ क्या हो गई ख़ता है -SALIM RAZA REWA

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मुझसे ऐ जान-ए-जानाँ क्या हो गई ख़ता है

जो यक-ब-यक ही मुझसे तू हो गया ख़फ़ा है

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कुछ भी नहीं है शिकवा कुछ भी नहीं शिकायत

क़िस्मत में जो है मेरे  वो मुझको मिल रहा है

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आंखों में नींद रुख़ पर गेसू बिखर रहे हैं

हिज्र-ए-सनम में शायद वो जागता रहा है

-

शाख़-ए-शजर हैं सूखी मुरझा गई हैं कलियाँ

गुलशन हुआ है वीरां कैसा ग़ज़ब हुआ है

-

इक पल में रूठ जाना इक पल में मान जाना 

उसकी इसी अदा ने दीवाना कर दिया है…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 10, 2018 at 11:30pm — 11 Comments

जो अपने माँ-बाप के - सलीम रज़ा

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जो अपने माँ-बाप के दिल को दुखाएगा

चैन-ओ- सुकूँ वो जीवन भर ना पाएगा

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हक़ बातें तू हरगिज़ ना कह पाएगा

अहसानों के तले  अगर दब जाएगा

-

उस दिन दुनिया ख़ुशिओं से भर जाएगी

जिस दिन प्रीतम लौट के घर को आएगा

-

भूँखा -प्यासा जब देखेगी बेटों को

माँ का दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा

-

उसकी मुरादें सब पूरी हो जाएंगी

दर पे उसके जो दामन फैलाएगा

-

मेरी…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 7, 2018 at 6:00pm — 12 Comments

वज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है - सलीम रज़ा

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बज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है

महकी सी फ़ज़ाएँ हैं कौन आने वाला है

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चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है

मेरे घर के आँगन में सुरमई उजाला है

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इतनी सी गुज़ारिश है नींद अब तू जल्दी आ 

आज मेरे सपने में यार आने वाला है

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जागना वो रातों को भूक प्यास दुख सहना

माँ ने अपने बच्चों को मुश्किलों से पाला है

-

उसके दस्त-ए-क़ुदरत में ही निज़ाम-ए-दुनिया है

इस जहान-ए-फ़ानी को जो बनाने वाला है

-…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 5:30pm — 28 Comments

मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते - सलीम रज़ा

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.

मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए

ग़ैर से क्या  हो गिला अपने  बेगाने हो गए

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चंद दिन के फ़ासले के बा'द हम जब भी मिले

यूँ लगा जैसे  मिले  हमको ज़माने  हो गए

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पतझड़ों  के साथ मेरे दिन गुज़रते थे कभी

आप के आने से मेरे  दिन  सुहाने हो  गए

-

मुस्कराहट उनकी  कैसे भूल पाएगें  कभी

इक नज़र देखा जिन्हें औ हम दिवाने हो गए

-

आँख में शर्म-ओ-हया, पाबंदियाँ, रुस्वाईयां

उनके न  आने  के  ये…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 2, 2018 at 9:00pm — 18 Comments

साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता- सलीम रज़ा रीवा

212 1222   212 1222

साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता

मेरे घर में खुशियों का सिलसिला नहीं होता 

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राह पर सदाक़त की गर चला नहीं  होता 

सच हमेशा कहने का  हौसला नहीं होता

-

कोशिशों से  देता  है  रास्ता समंदर भी

हौसला रहे क़यिम फिर तो क्या नहीं होता

-

कम खुशी नहीं होती मेरे घर के आँगन में 

दिल अगर नहीं बंटता, घर बंटा नहीं होता

-

थोड़े ग़म ख़ुशी थोड़ी,थोड़ी सिसकियाँ भी है

ज़िन्दगी से अब हमको कुछ गिला नहीं होता

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डूबती नहीं कश्ती पास…

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Added by SALIM RAZA REWA on December 27, 2017 at 9:00pm — 20 Comments

रंज -ओ-ग़म ज़िंदगी के भुलाते रहो - सलीम रज़ा रीवा

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रंज -ओ-ग़म ज़िंदगी के भुलाते रहो

गीत ख़ुशिओं के हर वक़्त गाते रहो

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मोतियों  की तरह जगमगाते रहो

बुल बुलों की तरह चहचहाते रहो

-

जब तलक आसमां में सितारें रहें

ज़िंदगी में  सदा  मुस्कुराते  रहो

-

इतनी खुशियां मिले ज़िंदगी में तुम्हे

दोनों हांथों से  उनको  लुटाते  रहो

-

सिर्फ़ कल की करो दोस्तों फिक़्र तुम

जो गया वक़्त उसको भुलाते रहो

-

हम भी तो आपके जां  निसारों में हैं

क़िस्सा- ए- दिल हमें भी सुनाते…

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Added by SALIM RAZA REWA on December 19, 2017 at 4:55pm — 21 Comments

तेरे प्यार में दिल को बेक़रार करते हैं - सलीम रज़ा रीवा

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तेरे प्यार में दिल को बेक़रार करते हैं

रात - रात भर तेरा इंतज़ार करते हैं

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तुमको प्यार करते थे तुमको प्यार करते हैं

जाँ निसार करते थे जाँ निसार करते हैं

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ख़ुश रहे हमेशा तू हर ख़ुशी मुबारक हो

ये दुआ खुदा से हम बार - बार करते हैं

-

उँगलियाँ उठाते हैं लोग दोस्तों पर भी

हम तो दुश्मनों पर भी ऐतबार करते हैं

-

वादा उसका सच्चा है लौट के वो आएगा

इस उमीद पर अब भी इंतज़ार करते…

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Added by SALIM RAZA REWA on November 22, 2017 at 8:30am — 6 Comments

नाराज़गी है कैसी भला ज़िन्दगी के  साथ - सलीम रज़ा रीवा

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नाराज़गी है कैसी भला ज़िन्दगी के  साथ.

रहते हैं ग़म हमेशा ही यारों खुशी के साथ

-

नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ.

दिल में उतर  गया वो बड़ी सादगी के साथ

-

माना कि लोग जीते हैं हर पल खुशी के साथ.

शामिल है जिंदगी में मगर ग़म सभी के साथ

-

आएगा मुश्किलों में भी जीने का फ़न तुझे.

कूछ दिन गुज़ार ले तू मेरी जिंदगी के साथ

-

ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में.

यूँ ही नहीं है  प्यार हमें   शायरी के…

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Added by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 3:30pm — 16 Comments

सबसे बड़ी रदीफ़ में ग़ज़ल का प्रयास, सिर्फ रदीफ़ और क़ाफ़िया में पूरी ग़ज़ल - सलीम रज़ा रीवा

1222 1222 1222 1222

.....

वतन की बात  करनी हो तो मेरे पास आ जाओ .

अमन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ …

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Added by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 12:30am — 29 Comments

दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं - सलीम रज़ा रीवा : ग़ज़ल

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..

दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं,

मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी ज़िन्दगी नही

..

ये और बात है कि वो मिलते  नहीं मगर,

किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं

..

तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे,

होता  जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं

..

वो क्या गया की रौनके महफ़िल चली गयी,

जल तो रही है शम्अ मगर रोशनी नहीं

..

ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल,

मेरे, सुख़न  का  रंग…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 10:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल : ज़रा  सोचिए दिल लगाने से पहले : SALIM RAZA REWA

122 122 122 122

....

महब्बत  की राहों  में जाने से पहले.

ज़रा  सोचिए  दिल  लगाने से पहले.

.

बहारों का इक शामियाना  बना  दो.

ख़िज़ाओं को गुलशन में आने से पहले.

.

गिरेबान में  झांक  कर अपने देखो.

किसी पर भी उंगली उठाने से पहले.

.

ग़रीबों की आहों से बचना है मुश्क़िल.

ये तुम सोच लो दिल दुखाने से पहले.

.

कभी चल के शोलों पे देखो रज़ा तुम.

महब्बत  की  बस्ती  जलाने से पहले.…

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Added by SALIM RAZA REWA on October 13, 2017 at 3:00pm — 17 Comments

शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफा़म है : सलीम रज़ा रीवा ग़ज़ल

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..

शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफा़म है

मिल गए तुम जाम का क्या काम है

.. 

ये वज़ीफा़ मेरा सुब्ह-ओ-शाम है

मेरे लब पे सिर्फ तेरा नाम है

..

तू मिला मुझको सभी कुछ मिल गया

ये मुक़द्दर का बड़ा इनआम है



तुम हो सांसों में तुम्ही धड़कन में हो

ज़िन्दगी मेरी  तुम्हारे  नाम  है

..

हम किसी से दुश्मनी करते नहीं

दोस्ती तो प्यार  का  पैग़ाम है 

..

मेरा घर खुशिओं से है फूला फला 

मेरे रब का ये  बड़ा  इनआम… Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 9, 2017 at 3:30pm — 13 Comments

ग़ज़ल : उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा - सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 2

.....

जो बनकर के जीता है  इंसान सदा,

उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा

..

क्या अफसोस कि शाख़ से पत्ते टूटे हैं,

गुलशन में तो आते हैं तूफ़ान सदा

..

हक़ पे चलने वाले हक़ पे चलते हैं,

माना  की बहकाता है शैतान सदा 

..

धीरे - धीरे शेर मेरे भी चमके गें,

पढ़ता हूँ मै ग़ालिब का दीवान सदा

..

रिज़्क मे उसके बरकत हरदम होती है,

जिसके घर में आते हैं मेहमान सदा

..

भेद भाव से दूर "रज़ा" जो रहता है,

महफ़िल… Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 12:00pm — 30 Comments

उनकी नज़र से पीना कोई मयकशी नहीं - सलीम रज़ा रीवा

221 2121 1221 212

........

नश्शा नहीं सुरूर नहीं बे खुदी नहीं.

उनकी नज़र से पीना कोई मयकशी नहीं.

.

गुलशन में फूल तो है मगर ताज़गी नहीं.…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 2, 2017 at 7:30pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ख़्वाब तूने कोई बुना होगा

2122 1212 22/112

ख़्वाब तूने कोई बुना होगा

तब तेरा रतजगा हुआ होगा

 

सर यक़ीनन मेरा झुकेगा जनाब

आपसे जब भी सामना होगा

 

मुद्दतों बाद मेरी याद आई

मुश्किलों से कहीं घिरा होगा

 

मुझको मेहनत लगी थी लिखने में

उसको एहसास इसका क्या होगा

 

शहर में होना आरज़ी है मगर

तज़्किरा मेरा बारहा होगा

 

आरज़ी – थोड़े समय के लिए, तज़्किरा – जिक्र

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2017 at 11:24am — 6 Comments

ग़ज़ल --ईद (ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो )

ग़ज़ल --ईद (ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो )

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(बह्र हिन्दी --मुत्क़ारिब ,मुसम्मन ,मुज़ायफ )

रस्म गले मिलने की निभा कर हाथ मिलाएंगे यारो |

ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो |

ख़ुद ही निकल जाएगी पुरानी सारी कड़वाहट दिल की

आज सिवैयाँ घर पे तुम्हें हम इतनी खिलाएंगे यारो |

सदक़ा और फितरे से ही यह अपनी ईद मनाते हैं

ईद के इस अहसान को मुफ़लिस कैसेभुलाएंगे यारो…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 27, 2017 at 3:58pm — 14 Comments

दमकते फिर रहे हैं झुग्गियों में (ग़ज़ल) - ज़हीर क़ुरेशी

1222-1222-122

 

वो ये भी कह रही है सिसकियों में,

बहुत जल बह चुका है नद्दियों में !

 

युवा फूलों पे मँडराने को लेकर,

मची है होड़ क्वाँरी तितलियों में.

 

धुँए को चीरकर घुसने लगी है,

चिता की आग गीली लकड़ियों में.

 

नदी के साथ मीठी मछलियाँ भी,

पहुँच जाती हैं खारी मछलियों में !

 

कई महलों में रहने योग्य हीरे,

दमकते फिर रहे हैं झुग्गियों में.

 

ये ‘एस.एम.एस.’ करने वाली…

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Added by जहीर कुरैशी on May 12, 2017 at 7:22pm — 7 Comments

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