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शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफा़म है : सलीम रज़ा रीवा ग़ज़ल

2122 2122 212
..
शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफा़म है
मिल गए तुम जाम का क्या काम है
.. 
ये वज़ीफा़ मेरा सुब्ह-ओ-शाम है
मेरे लब पे सिर्फ तेरा नाम है
..
तू मिला मुझको सभी कुछ मिल गया
ये मुक़द्दर का बड़ा इनआम है

तुम हो सांसों में तुम्ही धड़कन में हो
ज़िन्दगी मेरी  तुम्हारे  नाम  है
..
हम किसी से दुश्मनी करते नहीं
दोस्ती तो प्यार  का  पैग़ाम है 
..
मेरा घर खुशिओं से है फूला फला 
मेरे रब का ये  बड़ा  इनआम है
..
दोस्ती उससे  मुनासिब  है  नहीं 
शह्र की गलिओं में जो बदनाम है
..
आ गए हैं प्यार के हम शह्र में
अब  यहाँ आराम ही आराम है
..
पा के सुर्खी़ आपके रुख़सार की
ख़ूबसूरत आज कितनी शाम है
..
लोग कहते हैं बुरा कहते रहें
साफ़ गोई में''रज़ा''बदनाम है
..
मौलिक व अप्रकाशित
सलीम रज़ा रीवा

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on October 11, 2017 at 10:25pm
आ. सुशील जी.
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.
Comment by Sushil Sarna on October 11, 2017 at 7:57pm

पा के सुर्खी़ आपके रुख़सार की
ख़ूबसूरत आज कितनी शाम है
..
लोग कहते हैं बुरा कहते रहें
साफ़ गोई में''रज़ा''बदनाम है

बहुत खूब आदरणीय रज़ा साहिब .. बड़े ही खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने अपनी इस बेहतरीन ग़ज़ल में। हार्दिक बधाई स्वीकारें सर।

Comment by SALIM RAZA REWA on October 11, 2017 at 6:59pm
आ. नीलेश जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 11, 2017 at 1:43pm

आ. सलीम साहब ..
अच्छी ग़ज़ल हुई है .. शेर-दर-शेर बधाई स्वीकार करें 
सादर 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 11, 2017 at 10:50am
आली जनाब समर साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, आपकी इस नाचीज़ पर करम देखकर दिल बाग़ बाग़ हो गया, ख़ुदा आपको खुशहाल ज़िंदगी अता करे, और आपकी हम पर सरपरस्ती क़ायम रहे..
Comment by Samar kabeer on October 10, 2017 at 8:39pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,आपकी ग़ज़लें बहुत ख़ूबसूरत होती हैं,और उनमें रिवायत का रंग चार चाँद लगा देता है,बड़ी मिहनत से ग़ज़ल कहते हैं आप,और सबसे अच्छी बात ये कि अपनी ग़ज़लों में बहतर बदलाव के मुतलाशी भी रहते हैं ।
बहुत ख़ूब वाह, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 10, 2017 at 8:02am
आ. सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, अपकी मुहब्बत सलामत रहे....
Comment by नाथ सोनांचली on October 10, 2017 at 4:26am
.हम किसी से दुश्मनी करते नहीं
दोस्ती तो प्यार का पैग़ाम है || वाह सलीम भाई वाह
मेरा घर खुशिओं से है फूला फला
मेरे रब का ये बड़ा इनआम है .. काबिलेतारीफ

दोस्ती उससे मुनासिब है नहीं
शह्र की गलिओं में जो बदनाम है
उम्दा ख़याल
आद0 सलीम साहब सादर अभिवादन, बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 10, 2017 at 4:26am
.हम किसी से दुश्मनी करते नहीं
दोस्ती तो प्यार का पैग़ाम है || वाह सलीम भाई वाह
मेरा घर खुशिओं से है फूला फला
मेरे रब का ये बड़ा इनआम है .. काबिलेतारीफ

दोस्ती उससे मुनासिब है नहीं
शह्र की गलिओं में जो बदनाम है
उम्दा ख़याल
आद0 सलीम साहब सादर अभिवादन, बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 9, 2017 at 7:40pm
जनाब राज़ साहिब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया,

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