कभी यूं भी हुआ ,
मैं हारा ,
कोई गम नहीं।
हौसला कितनों का टूटा ,
किसी ने गिना नहीं।
--------
लोग दंग थे ,
जो जीता ,
उसे भी ,
कुछ मिला नहीं ।
--------
मैं हार कर भी खुश था ,
कुछ गया नहीं।
वो जीत कर भी ,
रोया , हाय , कुछ ,
कुछ भी , मिला नहीं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on May 26, 2016 at 11:00am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2016 at 9:44am — 4 Comments
अतुकांत कविता : व्यवस्था
गर्मी से तपती धरती
चहुँ ओर मचा हाहाकार
बादल को दया आयी
चारो तरफ नज़र दौड़ाई
जाति देखी, धर्म देखा
सगे-सम्बन्धी, पैरवीकार देखा
खुद को सिमित करके
खूब बरसा, जमकर बरसा
कही बाढ़ तो कही सूखा
पुनः मचा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 7, 2016 at 10:30am — 9 Comments
अदभुत अकथनीय वातावरण
आज भगवान स्वयं घर पधारे हैं ,
चारों –ओर खुशियाँ ही खुशियाँ लाये है
भगवान् या देवी जो भी हों
घर को खुशियों से भर दिया है
आज अम्बर भी ,देव वियोग में आसूं बहा रहा है
हवायें भी व्याकुल हो
प्रभु को ढूढने चली आ रही हैं
इससे अनभिज्ञ ,अंजान हैं
हमारे छोटे भगवान् जी
घरवालों के प्रान जी
पर क्या इनकी पूजा होगी ?
क्या इनकी किलकारियां ,नटखट अदाएं यूँ ही रहेंगी ?
ऐसा प्रश्न क्यूँ आया
आना…
ContinueAdded by maharshi tripathi on April 12, 2016 at 10:39am — 2 Comments
ऊँची, नीची, मैदानी, पठारी,
उथली, गहरी...
दूर तक विस्तृत
उपजाऊ जमीन.
यहाँ नहीं उपजते
गेहूँ, धान
फल, फूल,
न उगायी जाती हैं साग, सब्जियाँ
किन्तु,
जो उपजता हैं
उससे....
करोड़ों कमाती हैं
बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ
तय होतें हैं
सियासी समीकरण
बनती बिगड़ती हैं
सरकारें
पैदा होता है
विकास
आते हैं
अच्छे…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2016 at 9:00am — 16 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2016 at 9:43am — 7 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2016 at 8:00am — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2016 at 9:18am — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 7, 2016 at 12:23pm — 6 Comments
शहर और बस्तियाँ घुस आई हैं
जंगल के भीतर
और जंगली बंदर निकल आए हैं
जंगल से शहर में, बस्तियों में....
बंदरों को अब नहीं भाते
जंगल के खट्टे- मीठे, कच्चे-पके फल
उनके जी चढ़ गया है
चिप्स, समोसे, कचोरियों का स्वाद
आदमियों के हाथों से,
दुकानों से , घरों से छिन कर खाने लगे हैं
वे अपने पसंदीदा व्यंजन
इन्सानो को देख जंगल में छुप जाने वाले
शर्मीले बंदर
अब किटकिटाते हैं दाँत
कभी कभी गड़ा भी देते हैं
भंभोड़ लेते हैं अपने पैने दांतों से…
Added by Neeraj Neer on February 4, 2016 at 10:24pm — 14 Comments
मैं राजपथ हूँ
भारी बूटों की ठक ठक
बच्चों की टोली की लक दक
अपने सीने पर महसूसने को
हूँ फिर से आतुरI
सर्द सुबह को जब
जोश का सैलाब
उमड़ता है मेरे आस पास
सुर ताल में चलती टोलियाँ
रोंद्ती हैं मेरे सीने को
कितना आराम पाता हूँ
सच कहूं ,तभी आती है साँस में साँस
इतराता हूँ अपने आप पर I
पर आज कुछ डरा हुआ हूँ
भविष्य को लेकर चिंतित भी
शायद बूढा हो रहा हूँ…
ContinueAdded by pratibha pande on January 25, 2016 at 4:52pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2016 at 9:51am — 8 Comments
एक कुआं था
बहुत बड़ा कुआं
शीतल जल से पूर्ण
वहाँ रहते थे अनेकों मेढक
कुएं के मालिक ने कुएं में
डाल दिये कुछेक साँप
एवं फूंका मंत्र
जिससे उस कुएं में कायम हो गया लोकतन्त्र
एक मोटा मेढक बना उसका प्रधान
उसने कराया कुएं में सर्वे
और पाया कि साँपों की संख्या वहाँ है कम
मोटा मेढक और उसके चमचे हुए बहुत हैरान
उन्होने बनाया एक नियम
जिससे हो सके साँपो का उत्थान
सभी साँपो को मिले एक मेढक खाने को रोज
ऐसा हुआ प्रावधान
कहा गया बहुत…
Added by Neeraj Neer on January 20, 2016 at 8:13pm — 10 Comments
उसे कुछ दिखाई नहीं देता
सिवा
अपने आप के
अपनी आँखों के सामने
उसने रखा है
आईना
वह रहता है आत्ममुग्ध
समझता है स्वयं को ही
सबसे सुंदर
सर्वश्रेष्ठ
उसने देखा नहीं है
कोई और चेहरा
उसे कुछ सुनाई भी नहीं देता
बंद कर रखे हैं
उसने अपने कान
वह सुनता है
सिर्फ अपने आप को ही
गूँजती है उसके कान में
अपनी ही आवाज
मानता है अपनी बात को ही
एक मात्र सत्य
चाहता है समूची दुनियाँ को
बनाना अपने जैसा
आँखों…
Added by Neeraj Neer on December 28, 2015 at 8:34pm — 3 Comments
कैच जिसके उछाला गया है , उसे लेने दो भाई
*****************************************
बाल , नो बाल थी
इसलिये पूरे दम से मारा था शाट
मेरे बल्ले का शाट
थर्ड मैन सीमा रेखा के पार जाने के लिये था
अगर बाल लपक न ली जाती तो
अफसोस इस बात का नहीं है बाल लपक ली गई
दुख इस बात का है, कि
मेरे बहुत करीब खड़े , स्लिप और गली के फिल्डर दौड़ पड़े
ये जानते हुये भी , ये कैच उनका नही है
आपस मे टकराये , गिरे पड़े , घायल…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 7, 2015 at 7:30am — 8 Comments
नीम तले ही खेलें
*****************
कहाँ छाया खोजते हो तुम भी
बबूलों के जंगलों में
केवल कांटे ही बिछे होंगे ,
नुकीले , धारदार
सारी ज़मीन में
काट डालें
जला ड़ालें उसे
उनके पास है भी क्या देने के लिये
सिवाय कांटों के
चुभन और दर्द के
कुछ अनचाही परेशानियों के
होंगी कुछ खासियतें ,
बबूलों में भी
पर इतनी भी नहीं कि लगायें जायें
बबूलों के जंगल
नीम में उससे भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2015 at 8:00pm — 3 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 5, 2015 at 10:42am — 11 Comments
मैं सड़क हूँ
मुझे तैयार किया गया है
रोड रोलरों से कुचल कर.
मुझे रोज रौंदते हैं
लाखों वाहन
अक्सर....
विरोध प्रदर्शन का दंश
झेलती हूँ
अपने कलेजे पर
होता रहता हैं
पुतला दहन भी
मेरे ही सीने पर
विपरीत परिस्थितियों में
मैं ही बन जाती हूँ
आश्रय स्थल
कई कई बार तो
प्राकृतिक बुलावे का निपटान भी
हो जाता है
मेरी ही गोद में
फिर भी.....
मैं सहिष्णु…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 29, 2015 at 1:00pm — 32 Comments
आस्तीन मे छुपे सांप
*****************
किसी हद तक सच भी है
आपका कहना
चलो मान लिया
आस्तीन मे छुपे सांप
हमारी रक्षा के लिये होते हैं
और हमे काट के या डस के अभ्यास करते हैं
ताकि हमारा कोई दुश्मन हमपे वार करें
तो ,
हमें ही काट के किया गया अभ्यास काम आये
अब सोचिये न
क्या दुशमनी हो सकती है हमारे से ?
उस चूहे की
जो हमारे ही घर मे रह के
हमारे ही अन्न जल मे पलके बड़ा होता है …
Added by गिरिराज भंडारी on November 28, 2015 at 10:22am — 5 Comments
सच है
कि, प्रकृति स्वयं जीवों के विकास के क्रम में
जीवों की शारिरिक और मानससिक बनावट में
आवश्यकता अनुसार , कुछ परिवर्तन स्वयं करती है
चाहे ये परिवर्तन करोड़ों वर्षों में हो
इसी क्रम में हम बनमानुष से मानुष बने …..
लेकिन ये भी सच है कि,
मानव कुछ परिवर्तन स्वयँ भी कर सकते हैं
अगर चाहें तो
और फिर हमारा देश तो आस्था और विश्वास का देश है
जहाँ यूँ ही कुछ चमत्कार घट जाना मामूली बात है
मै तो इसे मानता हूँ ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 25, 2015 at 7:00am — 7 Comments
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