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खुल कर जातिवाद करो यार !!

(जातिगत जनगणना को लेकर लिए गए फैसले के ऊपर )



अरे यार !!

कान में मत फुस्फुसाओ

खुलकर जाती पूछो ।

सरकारी लाइसेन्स ही मिल गया ..

.संसद के अन्दर

नेताओ की मुहर लग गयी यार ...

जातिगत जनगणना को लेकर ॥



अब इंटरवेऊ में

नहीं पूछा जाएगा

आपके रिसर्च का ज्ञान

भोतिक और रसायन विज्ञानं ॥

आपसे पूछा जाएगा ....

आपके जातिगत पेशे

कैसे दुहते हो गाय

कैसे कराते हो पूजा

कैसे बनाते हो जूता ...

पुनः लौटो यार

मनुवाद की ओर… Continue

Added by baban pandey on June 7, 2010 at 8:01am — 3 Comments

दंभ से बचो , मेरे दोस्त !!

आसमान को

कौन छुना नहीं चाहता , मेरे दोस्त !!

तारे तोड़ने की ईच्छा

किसे नहीं होती ॥



परन्तु , आसमान छुने पर

दंभ मत भरना , मेरे दोस्त !!



हिमालय भी दंभ भरता था

अपनी ऊँचाई का .....

न जाने कितनी बार

तोड़ा गया उसका दंभ ॥



पहाड़ के शिखरों पर रखे

पथ्थरो की बिसात ही क्या

किसी भी दिन

कुचल दिए जायेगे

सडकों के नीचे

बड़े -बड़े मशीनों द्वारा ॥



और अंत में ....

यह भी याद रखना , मेरे दोस्त

दरखतो की उपरी… Continue

Added by baban pandey on June 6, 2010 at 9:54pm — 4 Comments

खेत खाय गधा, मार खाय जुलहा

ब्लॉग के शीर्षक से आपको लगता होगा कि यह कहानी कोई खाने - खिलाने से सम्बंधित है ..मगर नहीं ..यह कहानी ..न्याय से सम्बंधित है ..यह कहानी मुझे पटना विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर ने सुनाया था ..

प्रोफ़ेसर साहब एक बार भ्रमण के लिए रूस गए थे ... वहां उन्होंने नयायालय में हो रहे प्रकिरिया को देखना चाहा... वे एक न्यायलय में गए . एक नौकर ने अपने मालिक के घर से ४०० रुब्बल कि चोरी कर ली .थी . मालिक ने उस पर केश दर्ज करबा दिया था ..

जज ने नौकर से पूछा.." तुमने चोरी क्यों की"

नौकर ने कहा "… Continue

Added by baban pandey on June 6, 2010 at 12:18pm — 6 Comments

आओ, एक पुल बनाएं

पुल .....

अर्थात ...मिलन

दो गांवों का /दो देशों का

और

नदियों को लांघने का एक संरचना ॥



रिश्तों का पुल बनता है

जब दो परिवार

शादी के बंधन में बंधते है ।



कुछ दिनों पहले पढ़ा था

एक तलाक शुदा दंपत्ति के

१२ वर्षीय पुत्र ने

माता -पिता के दिलो को जोड़ा

पुल बनकर ॥





प्रजातंत्र में भी

पुल बनाया जाता है

नेताओ और वोटरों के बीच

भाषणों का / आश्वासनों का

जो तुरंत ही ढह जाता है ॥



दरअसल… Continue

Added by baban pandey on June 6, 2010 at 11:50am — 5 Comments

Ghazal-7

गुमाँ का बोझ हटा तो संभल गया हूँ मैं
इसी यक़ीन के नीचे कुचल गया हूँ मैं

ये क्या कि मोम कि सूरत पिघल गया हूँ मैं
तेरे क़रीब की हर शय में ढल गया हूँ मैं

इस अंधकार की सीमा तलाशने के लिए
एक आफताब से आगे निकल गया हूँ मैं

अज़ीज़ दोस्त के चेहरे की अजनबी आँखें
बता रहीं हैं कि कितना बदल गया हूँ मैं

मेरा वजूद समंदर की रेत जैसा है
ख़याल छाओं का आते ही जल गया हूँ मैं

Added by fauzan on June 4, 2010 at 5:32pm — 7 Comments

Takdeer

तकदीर
गर रोने सी ही
बदल सकती तकदीर
यह ज़मीन बस सैलाब होती
गर अश्क बहाने सी होती
हर गम की तदबीर
यह नम आंखें
कभी बेआब न होती

Added by rajni chhabra on June 4, 2010 at 8:50am — 9 Comments

Ghazal-6

रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए

सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए

उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए

धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए

ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए

Added by fauzan on June 3, 2010 at 9:47pm — 8 Comments

नेट पे होती है बाते ,

नेट पे होती है बाते ,

फिर होती है मुलाकाते ,

यारो दिल की सुनो ,

कहता हु दोस्ती के नाते,

ये तो सुनहरा मौका ,

देता हैं (ओ बी ओ )

प्यार से मिलो और ,

प्यार में ही जिओ ,

गुरु के संग गणेश जी ,

और सतीश जी ,

पावन स्थल पटना,

मंदिर महाबीर की ,

तीनो जो हम मिले ,

दोस्ती दिल के खिले ,

लगता नहीं था यारो ,

पहली बार हम मिले ,

बरसो की दोस्ती हो ,

हो बरसो से मिलते रहे ,

दिल में बहुत हैं बाते ,

और मैं क्या कहू… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 4:00pm — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के कुछ सदस्यो का मिलन पटना के पवित्र महावीर मंदिर के प्रांगण मे,

आज दिनांक 02/06/2010 को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के कुछ सदस्यो का मिलन पटना के पवित्र महावीर मंदिर के प्रांगण मे हुआ, जिसका चित्र यहाँ देखा जा सकता है |

पटना के पवित्र महावीर मंदिर



रवि कुमार "गुरु" और सतीश मापतपुरी जी



गनेश जी "बागी", रवि कुमार "गुरु" और सतीश मापतपुरी जी…



Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2010 at 10:32pm — 6 Comments

फूलिश

सीना नहीं बना पाए तो क्या ..पेट तो फुला लिया .. अपराध मिटा न सके तो क्या .. अवरोधक तो बना लिया ....

पेट में जो चर्बी है सब आम जनता की अमानत है ..वापस लेना है की नहीं..
. इतनी चर्बी से ना जाने कितने घुप्प घरो के दिए रोशन हुए होते ..



Added by Anand Vats on June 2, 2010 at 12:09pm — 8 Comments

kaash!

काश!


काश!अपना कह देने भर से ही

गैर अपने होते

तो अनजान शहर में भी

अजनबी लोगों से घिरे

खुशनमा सपने होते

मगर हकीकत तो यह की

अपने ही शहर में अपने

बेगानों सा मिला करते हैं

क्यों खफा रहते हैं आप हम से

इस पर यह गिला करते हैं



रजनी छाबरा

Added by rajni chhabra on June 2, 2010 at 9:00am — 7 Comments

MERE BACHPAN ke khel and kuch mastiaa

kya bachpan hota hai yar ab bachpan ki kimat samajh aati hai us waqt lagta tha ki jaldi se bara ho jaun to koi padhne ke liye nahi kahega khele aur ghumne ki puri aajadi hogi. result nikalne se 1 din pehle ye manata tha ki bhagwan is par kisi tarah pass kar do next class me man laga ke padhenge. kya ajib sab khel humlog khelte the



1. budhiya kabaddi

2. kabbadi

3. noon tha

4 Gilli danda

5. Goli

6. Lakri choo

7. cricket jisme wicket 9-10 bricks se bante… Continue

Added by Ajit kumar sinha on June 1, 2010 at 8:22pm — 6 Comments

खुटे की गाय और प्रजातंत्र

वैसे तो
खुटे से बंधी चरती गाय
और प्रजातंत्र में
कोई समानता नहीं दिखती ॥
मगर
थोडा गौर फरमायें
तीन महत्वपूर्ण बिंदु ....
खूंटा , गाय और रस्सी ॥

खूंटा मतलब संबिधान
अपनी जगह स्थिर
गाय मतलब नेता
चारों ओर चरने वाला
और रस्सी यानी वोटर


इस रस्सी को जब चाहो
तोड़ दो , मोड़ दो , काट दो
है ना समानता ॥

क्या हम सब रस्सी
आपस में मिलकर .....
गाय को नियंत्रित नहीं कर सकते ॥

Added by baban pandey on June 1, 2010 at 8:03pm — 6 Comments

बचपन

मैं कोई लेखक नहीं हु लेकिन मेरे अंदर कीड़ा मचला है अब ..शब्दों को पिरोना संजोना नहीं अत्ता है .. लेकिंग जो बातें हैं कही अनकही बस लिख देना है



गर्मी भीषण हो रही है दिल्ली में मगर बचपना याद दिला रही है..झारखण्ड में एक जगह है , साहिबगंज . वह एक तरफ झरने वाली पहाड़ी है दूसरी तरफ उत्तर वाहिनी गंगा ..चिलचिलाती धुप में कभी झरने में नहा के सुकून लेते थे केकड़ो को पकड़ पकड़ कर हमलोग उसके शल्य चिकित्सा किया करते थे . रोज़ स्कूल से भाग के गंगा नहाने जाते थे सारा दिन मस्ती शाम को आंखे लाल होती… Continue

Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 1:03pm — 9 Comments

अन्दर की चिंगारी को खोजो

मैं

समुद्र की उन लहरों की तरह नहीं

जो बार -बार गिरती है / उठती है

और

किनारे तक आते - आते

दम तोड़ देती है ॥



मैं

उन घोड़ो की तरह भी नहीं

जिसे

चश्मा लगा देने पर

सुखी घास भी

हरी दूब समझ खा लेते हैं ॥





मैं

उन दिहाड़ी मजदूरों की तरह भी नहीं

जो १०० रुपया और एक पेट खाना पर

बुला लिए जाते है ....

राजनेताओ की रैलियो में

भीड़ जुटाने के लिए ॥



मैं तो चिंगारी हु मेरे दोस्त !!

सबके दिल में रहता… Continue

Added by baban pandey on June 1, 2010 at 12:49pm — 7 Comments

हरी

माँ की सुनायी प्रयाय्वाची पे आधारित कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी है ....

हरी गए हरी से मिलने , हरी बैठे हरी पास
ये हरी वोह हरी मिल गए , ये हरी भये उदास |

हरी अर्थात (साप , मेढक . नदी )

Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 12:06pm — 1 Comment

क्षमा कीजिये मुझे मैं हाथ जोड़ता हू|

मैं तत्काल प्रभाव से मेरे सारे कार्यों से त्यागपत्र दे रहा हूँ -- मेरे इस्तीफे के लिए कारण है कि मैं आज सुबह काम पर जाने से पहले मुझे एहसास हुआ की बाल मजदूरी आपराध है|| आपसे शिकायत है की आप मुझे एहसास न दिला पाए .

Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 11:50am — 6 Comments

बाल श्रमिक

बाल श्रमिक

वह जा रहा है बाल श्रमिक

अधनंगे बदन पर लू के थपेड़े सहते

तपती,सुलगती दुपहरी मैं,सर पर उठाये

ईंटों से भरी तगारी

सिर्फ तगारी का बोझ नहीं

मृत आकांक्षाओं की अर्थी

सर पर उठाये

नन्हे श्रमिक के बोझिल कदम डगमगाए

तन मन की व्यथा किसे सुनाये

याद आ रहा है उसे

मां जब मजदूरी पर जाती और रखती

अपने सर पर ईंटों से भरी तगारी

साथ ही रख देती दो ईंटें उसके सर पर भी

जिन हालात मैं खुद जे रही थी

ढाल दिया उसी मैं बालक को भी

माँ के… Continue

Added by rajni chhabra on June 1, 2010 at 1:33am — 7 Comments

इसी जद्दोज़हद में

इसी जद्दोज़हद में
ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं
हर्फ़ हर्फ़ जोड़ कर ज्यों
सफे भर रहे हैं

अधूरी है रदीफ़
काफिया नहीं है पूरा
तुकबंदी मिलाने की बस
जुगत कर रहे हैं

ज़िन्दगी गो कि
इक ग़ज़ल है
रूठा हुआ हमसे
अभी ये शगल है
अशआरों की तरह
उमड़ते हैं
चेहरे कई लेकिन
'मीटर' जो बैठ जाए
वही भर पन्नो पर
उतर रहे हैं
दुष्यंत .............

Added by दुष्यंत सेवक on May 31, 2010 at 4:31pm — 9 Comments

थमते कदम आ जाइये

चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.

सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.

नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.

जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.

प्यासी नज़रों को हसीं, चेहरा दिखा तो जाइये.

कल्पना मेरी बिलखती, वेदना सुन जाइये.

सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.

कब तलक मैं यूँ अकेला, इस तरह जी पाउँगा.

इस निशा- नागिन के विष को, किस तरह पी पाउँगा.

इस जहर में अधर का, मधु रस मिला तो जाइये

याद जो हरदम रहे, वो बात तो कर जाइये

सज… Continue

Added by satish mapatpuri on May 31, 2010 at 2:17pm — 8 Comments

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