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(मित्रो , मैं लगातार मानव -मूल्यों में हो हरास के ऊपर लिखते जा रहा हू , प्रेम सम्बन्धी कविताये बनाना मेरे लिए कठिन कार्य है ...प्रस्तुत है एक और कविता ...आशा है आपका समर्थन मिलता रहेगा ॥)

चीर चुराना (चीर -हरण ) तो
हम महाभारत काल से जानते है ॥

बिजली की चोरी
मेरा शगल है ॥

इन्कम -टैक्स की चोरी
आम बात है ॥

बनिए द्वारा तौल की चोरी में
हर्ज़ क्या है ॥

परीछा में चोरी
लड़के -लडकियों का हक है ॥

रचनाये चुराना
कवि-लेखको की पुराणी आदत है ॥

भारतीय संगीतकार
पाश्चात्य संगीत चुराते है ॥

देकेदार और इंजिनीअर
सीमेंट चुराते है ॥

नौकरी और आरछन में
लाभ के लिए जाति चुराते है ॥

नेताओ के कहने पर
हम वोट चुराते है ॥

माता -पिता द्वारा
किये गए उपकारो का
हम ऋण चुराते है ॥

मित्रो से पैसे लेकर
आँखे चुराना
कोई नयी बात नहीं ॥

कहते है ...
कुछ लोग
आँखों से काजल चुरा लेते है ॥

अब तो हम -----
मित्रो के साथ बैठ
प्यार और हँसी चुराते है ॥

दांपत्य जीवन को दमतोड़ो जीवन
में बदल
दुल्हन का श्रृंगार चुराते है ॥
-------------बबन पाण्डेय

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Comment by satish mapatpuri on June 11, 2010 at 4:13pm
कहते है ...
कुछ लोग
आँखों से काजल चुरा लेते है ॥

अब तो हम -----
मित्रो के साथ बैठ
प्यार और हँसी चुराते है ॥

दांपत्य जीवन को दमतोड़ो जीवन
में बदल
दुल्हन का श्रृंगार चुराते है ॥
यथार्थ . बब्बन जी, इतनी अच्छी रचना के लिए धन्यवाद .
Comment by Rash Bihari Ravi on June 11, 2010 at 1:31pm
चोर चोर मत कहना यारो ये मेरी काबिलियत हैं
चोर बैठा है प्रधान बन ये भी असलियत हैं

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 11, 2010 at 9:11am
अब तो हम -----
मित्रो के साथ बैठ
प्यार और हँसी चुराते है ॥

वाह बबन भाई वाह गजब आपने पोल खोला है, यहा तो सभी चोर है, बस चोरी करने का अंदाज थोड़ी अलग है, आपने भी तो इस रचना से हम सब का दिल चुरा लिया है,बहुत ही खूबसूरत रचना और अंदाज निराला है, बधाई हो,

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