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(प्रस्तुत कविता हिंदी के विद्वान कवि प० राम दरश मिश्र द्वारा सम्पादित पत्रिका ' नवान्न ' के द्वितीय अंक में प्रकाशित है, मेरी इस कविता को उन्होनें गंभीर कविता का रूप दिया था )

न तो ---
मेरे पास
तुम्हारे पास
उसके पास
एक बोरसी है
न उपले है
न मिटटी का तेल
और न दियासलाई
ताकि आग लगाकर हुक्का भर सकें ॥
और न कोई हुक्का भरने की कोशिश में है ।

सब इंतज़ार में है
कोई आएगा ?
और हुक्का भर कर देगा ।
आज !
हर कोई
पीना चाह रहा है
जला जलाया हुक्का ॥

-------बबन पाण्डेय

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 12, 2010 at 10:40am
सब इंतज़ार में है
कोई आएगा ?
और हुक्का भर कर देगा ।
आज !
हर कोई
पीना चाह रहा है
जला जलाया हुक्का ॥

बहुत बढ़िया बबन भईया, बहुत सही कहा है आपने आज सभी बनी बनाई रोटी पसंद कर रहे है, बनाना कोई नही चाहता, खाना सब चाहते है,
बहुत ही उम्द्दा अभिव्यक्ति, शानदार कविता,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 12, 2010 at 9:28am
Baban Bhai, jab koyi bhi rachna kisi Gurujan ke hath se hokar nikalti hai to vah isi prakaar hi sanjeeda aur arthpoorn ho jaya karti hai. Bahut sunder kavita hai - Sadhuvaad.

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