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ना मैं तुलसी हू....

मैं ना तो कोई तुलसीदास
जो दोहावली सजाऊँ,
ना ही मैं कबीर कोई
कि भजनमाल बुन पाऊँ !

सूरदास की भक्ति कहाँ
जो गीत श्याम के गाऊँ,
ओज सुभद्रा सा भी नहीं,
ना टैगोर का सुर बना पाऊँ !

फिर भी दिल में ये चाहत है,
में दिल की बात सुनाऊँ,
और प्यार दोस्तों का कहता है,
में भी कलम उठाऊँ !

मुझमे ऐसा कुछ भी नहीं,
कि में कुछ भी बन जाऊं,
प्यार आपका होगी वजह,
जो कुछ सार्थक कह पाऊँ !

मित्रों की प्रेरणा शक्ति मेरी,
अब कैसे ये समझाऊँ,
थाम के उँगली उन सब की,
शायद मंजिल पा जाऊं !

नहीं दिल में ऐसा शौक़ है,
कि गुरु जी मैं बन जाऊं,
अदना सा रहूँ मैं सदा बना,
बस रवि कुमार कहलाऊँ !

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2010 at 11:06pm
नहीं दिल में ऐसा शौक़ है,
कि गुरु जी मैं बन जाऊं,
अदना सा रहूँ मैं सदा बना,
बस रवि कुमार कहलाऊँ !

Bahut hi umdda aur shandar rachna hai guru jee, aap to bhojpuri key saath saath hindi ki rachnayey bhi baakhubi likh letey hai, bahut badhiya, Thanks.
Comment by Admin on June 9, 2010 at 7:14pm
गुरु जी कविता मे आपने जिनका भी नाम लिया है उसे भारत की ही धरती ने पैदा किया है, और हम सब भी भारत भूमि की ही उपज है, हो सकता है की कल को मेरा पोता भी कुछ इसी तरह की कविता लिखे, जय हो , बहुत बढ़िया कविता लिखे है गुरु जी,
Comment by satish mapatpuri on June 9, 2010 at 5:23pm
मुझमे कुछ नहीं हैं दोस्तों ,
आपके प्यार के वजह से ,
मन करता हैं कलम उठाऊ ,
जो लिखता हु ,
ओ भी आपका प्यार है ,
तो आपको क्या बताऊ ,
आप जानते ही हैं ,
जिसे आप गुरु बना दिए ,
ओ अदना सा रवि कुमार हैं
इहे त आपका बडपन है गुरु जी ,जय हो

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