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सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

आपने जो दिल मुझको दिया ,

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

आपही से दिन मेरा होता हैं सुरु ,

आपही साम ढले रात होती है सुरु ,

रात हुई सपनों में दरस दिया ,

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

कब तलक यैसे मुझे तुम सताओगे ,

चुपके छुपके मिलने कब तक बुलाओगे ,

आपको ही सनम दिल ये दिया ,

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

आपका मैं हुआ ये अब जानिए ,

आपही मेरे पिया ओ हजूर मानिये ,

ओ पिया ओ पिया सुक्रिया,… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 8, 2010 at 2:00pm — 5 Comments


मुख्य प्रबंधक
तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है

तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,

तुम रक्त पात करते रहो, हम अपना लहू बहाने बैठे है,



तुम हिंसा को ही धरम मानते,हम अहिंसा के मतवाले है,

तुम दोनों गालो पर मारते रहो,हम तो गाँधी को मानने वाले है,

हर बार पीठ पर तुमने वार किया, फिर भी हम सीना ताने बैठे है,

तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,



तुम पडोसी धरम निभा न सके, हम भाई धरम निभाते है,

तुम फ़ौरन हमला कर देते, जब हम वार्ता के लिये बुलाते है,

तुम नफरत की आग उगलते हो,हम…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 8, 2010 at 10:30am — 16 Comments

मेरी मुहब्बत थोरी जुदा हैं ,

मेरी मुहब्बत थोरी जुदा हैं ,

मेरा ये दिल तुमपे फ़िदा हैं ,

तेरी अदा मुझको तो भाए ,

तेरी सूरत मन में सजाये ,

तुही तो अब मेरा खुदा हैं ,

मेरी मुहब्बत थोरी जुदा हैं ,



तेरे लिए ही जीना ,

तेरे लिए ही मरना ,

जब तक हैं जीवन ,

तुमसे ही प्यार करना ,

प्यार तू करले प्यार ,

प्यार तू करले यार ,

कातिल बड़ी तेरी अदा हैं ,

मेरी मुहब्बत थोरी जुदा हैं ,



मैं तो ये कहना चाहू ,

बात मेरी मान जा ,

दिल मेरा क्या चाहे ,

ये… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 7, 2010 at 2:47pm — 3 Comments

कानून का चक्कर ,

कानून का चक्कर ,

गुनाहगारो के लिए वरदान ,

बेगुनाहों के लिए अभिशाप ,

कारन तारीख पर तारीख ,

बेगुनाह हो जाते हैं फक्कर ,

कानून का चक्कर ,

अब देखिये कसाब को ,

जो बना एक सौ से ज्यादा ,

के गुनाहगार ,

उसको जो भी हो सजा ,

ओ उठाएगा कानून का फायदा ,

करेगा अपील ,

उसे मिल जायेगा कुछ दिन ,

यैसे मामलो में होगा अक्सर ,

कानून का चक्कर ,

सांसदों आप देश हित में ,

कोई कानून बनावो ,

साबुत हो तो येसो को ,

सरे आम फाशी पर चढाओ… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 6, 2010 at 1:10pm — 3 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल नo-२ (योगराज प्रभाकर)

शाहराह-ए-ज़िन्दगी पे अँधेरा ज़रूर था,

पर उस के पार दिन का भी डेरा ज़रूर था !



ये मैं ही था जो तीरगी में मुब्तिला रहा,

उसने तो रौशनी को बिखेरा ज़रूर था !



जेहन-ओ-ख्याल में बसा था और ही कोई,

हाँ, ले रहा वो सातवाँ फेरा ज़रूर था !



आंसू छुपा रहा था जो चश्मे कि आड़ में,

बिछुड़ा हुआ साथी कोई, मेरा ज़रूर था !



मीलों तलक तवील था उस घर में फासला

वो घर नहीं था, रैन बसेरा ज़रूर था !



जो कौड़ियों के मोल लूट ले गया खिज़ां

वो… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on May 5, 2010 at 10:30pm — 15 Comments

वफ़ा

कसम खुदा की हमे तुमसे प्यार आज भी है

वो दोस्ती की तड़प बरकरार आज भी है



मेरी वफ़ा का तुझे ऐतबार हो की न हो

तेरी वफ़ा का ऐतबार आज भी है



तेरी जुदाई को सदिया गुज़र गयी लेकिन

तेरी जुदाई में दिल अश्कबार आज भी है



हमारी चाह में कोई कमी नहीं आई

तुम्हारे वास्ते सब कुछ निसार आज भी है



वो एक नज़र मुझे बर्बाद कर दिया जिसने

उसी नज़र का मुझे इंतज़ार आज भी है



वफ़ा का रंग मोहब्बत की बू नहीं मिलती

चमन में होने को यू तो बहार आज भी…
Continue

Added by aleem azmi on May 5, 2010 at 9:48pm — 5 Comments

मेरी बातो को जरा समझो ,

मेरी बातो को जरा समझो ,

दर्द भी है यह्सस भी हैं ,

दूर भी हैं ये पास भी हैं ,

मन की ना सुननेवाला ,

मन की ये बिस्वास भी हैं ,

जो मन में आये ओ कह दो ,

मेरी बातो को जरा समझो ,

चाहत इसको कह नहीं सकते ,

फिर भी तुम बिन रह नहीं सकते ,

हस्ती हो तो हसना चाहू ,

रोती हो तो घबराता हु ,

पास मैं चाहू दूर जाती हो ,

मेरी बातो को जरा समझो ,

जाती बाद की बेरी हैं ,

जन चेतना में देरी हैं ,

सोचता हु क्या करू मैं ,

लडू या भाग परु मैं… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 5, 2010 at 2:18pm — 3 Comments

जिंदगी थक गयी ऐसे हालात से .

ग़ज़ल
यूँ ना खेला करो दिल के ज़ज्बात से .
जिंदगी थक गयी ऐसे हालात से .
रोज़ मिलते रहे सिर्फ मिलते रहे .
अब तो जी भर गया इस मुलाक़ात से .
ख्वाब में आता हँसता लिपटता सनम .
हो गई आशनाई हमें रात से .
गा रहा था ये दिल हंस रही थी नज़र .
क्या पता आँख भर आई किस बात से .
फन को मापतपुरी पूछता कौन है .
पूछे जाते यहाँ लोग अवकात से .
गीतकार -सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

Added by satish mapatpuri on May 5, 2010 at 2:04pm — 6 Comments

RAHUL MEIN BAHUT DOSH HAI.............

JANE WOH KISKA THA SAAYA JISE CHUNE KO,

HUM BHATAKTE RAHE AWARA HAWAO KI TARAH.

PYAAR KE WASTE PYASHA HAI YE DIL SADIO SE,

AB TOH BARSO KOI SAAWAN KI GHATAO KI TARAH.

HAR ANDHERE SE SUBAH BANKAR GUJAR JAUNGA,

TERA AANCHAL JO RAHE SAR PE DUWAO KI TARAH.

AAJ PALKO MEIN MUJHE KHWAAB BANAKAR CHUPA LO,

KAL MAI KHO JAUNGA GUMNAAM GUFAO KI TARAH.

MUJHE SULJHANE MEIN TUM KHUD HI ULAJH JAOGE,

MERI ZINDGI HAI SADHU KI JATAO KI TARAH.

JI HAAN RAHUL MEIN… Continue

Added by rahul pandey on May 4, 2010 at 6:45pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल नo-१ (योगराज प्रभाकर)

नफरत का अन्धकार यूं फैला दिखाई दे

नाम-ओ-निशान अमन का मिटता दिखाई दे !



काशी दिखाई दे कभी का'बा दिखाई दे,

नन्हा सा बच्चा जब कोई हँसता दिखायी दे !



जिनको भी ऐतमाद है अपनी उड़ान पर

उनको आसमान भी छोटा दिखाई दे !



वो शख्स जिसकी नींद ही खुलती हो शाम को,

उसको ये आफताब क्यूँ चढ़ता दिखाई दे !



खिड़की ही जब नहीं है कोई घर के सामने,

फिर कैसे भला चाँद का टुकड़ा दिखाई दे !



श्रद्धा नहीं तो हर नदी पानी के सिवा क्या ?

श्रद्धा हो ग़र… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on May 4, 2010 at 2:07pm — 15 Comments

ऐ खुदा इतना भी कमाल न कर

ऐ खुदा इतना भी कमाल न कर
ज़िंदगी में मौत सा हाल न कर
काँटों को इतनी तरज़ीह देकर
यूं फूलों का जीना मुहाल न कर
ये दुनिया इक मुसाफ़िर ख़ाना
इसमें बसने का ख़याल न कर
ग़मे दहर का झगड़ा लेकर
तूं अपने घर में बवाल न कर
दर्द का दरमाँ तड़फ ही है
करके मुहब्बत मलाल न कर
आग बहुत दुनिया में,पानी कम
ये आंसू बेवज़ह पैमाल न कर
याद कर वो माज़ी के मंज़र
तूं अपना बरबादे-हाल न कर
चांदनी की चाह में यूं न पगला
इन अंधेरों से विसाल न कर

Added by asha pandey ojha on May 4, 2010 at 1:30pm — 16 Comments

बिड़ला फाउंडेशन के सरस्वती-व्यास सम्मान के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित(प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि ३१ मई-२०१०)

केके बिड़ला प्रतिष्ठान ने अपने दो प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों सरस्वती सम्मान और व्यास सम्मान के लिए 31 मई तक प्रविष्टियां आमंत्रित की है। विजेता को पांच लाख रूपए प्रदान किए जाएंगे।



प्रतिष्ठान के निदेशक निर्मल कांति भट्टाचार्य ने आज यहां बताया कि भारतीय भाषाओं के लिए दिए जाने वाले सरस्वती सम्मान 2010 के लिए वर्ष 2000 से 2009 के बीच प्रकाशित कृति पर विचार किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस सम्मान के लिए काव्य, उपन्यास, लघु कहानियां, हास्य, व्यंग्य, नाटक, प्रस्ताव,…
Continue

Added by Admin on May 4, 2010 at 12:30pm — No Comments

कविता लिख रहा हु कविता की जरुरत हैं ,

कविता लिख रहा हु कविता की जरुरत हैं ,

ना सार की जरुरत हैं ना बिचार के जरुरत हैं ,

कविता लिख रहा हु कविता की जरुरत हैं ,



सोच हो समझ हो इसपर कोई ध्यान ना दे ,

अट पटा लिखे समाज को कुछ ज्ञान ना दे ,

अब लोग भी खोजने लागे कुछ येसा कुछ वैसा ,

समाज और संसकृति से ना लगाव हो जैसा ,

बस मन बहलाने वाला सब्द की जरुरत हैं ,

कविता लिख रहा हु कविता की जरुरत हैं ,



अब रामायण की बाते सुनाने के वास्ते ,

हर कोई से बिनती की चले आना साम को ,

पर बिना… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 3, 2010 at 3:00pm — 5 Comments

यह उनका अंदाज़ है

पहले प्यार सिखाते है

फिर दूर कही चले जाते है

ये उनका अंदाज़ है

यादों की भूलभुलैय्या में

सपनो को उलझाते है

चाहत की इस छैय्या में

नफरत की आग बरसाते है

ये उनका अंदाज़ है

आवारा भौरों की तरह

घूम घूम के आते है

मासूम कलियों के संग

चुपके से रस चुराते है

ये उनका अंदाज़ है

साथ रहने की कसमे खाते

आंसू बनकर रुलाते है

चाहे जितना रोको उन्हें

पत्थर दिल हो जाते है

ये उनका अंदाज़ है

देख न पाते प्यार को रोते

खुद सागर में…
Continue

Added by aleem azmi on May 3, 2010 at 12:53pm — 4 Comments

"मजदूर"(१ मई मजदूर दिवस पर विशेष)

देह के चमड़ी धुप मे जलावेला,

खून के पसीना बनाके बहावेला,

रुखा सूखा खाके पेट के आग बुझावेला,

सुते खातीर धरती के बिछवना,

अकाश के ओढ़ना बनावेला,

लोग उनका सम्मान मे,

मजदूर दिवस मनावेला ।



सूई से लेके जहाज ले,

सब कुछ मजदूर बनावेला,

ओकरा बादो उनकर नाम,

कबो सामने ना आवेला,

सृजन करीहे मजदूर,

अफसर काटेले फिता,

फिर भी मजदूर आपन,

सेवा हम सब के देता।



सेठ जी जबरन काम करावेले,

मजदूरी मांगे पर डंडा देखावेले,

बंधुवा… Continue

Added by Mahesh Jee on April 30, 2010 at 10:00pm — 5 Comments

Bhumika..

Dunia ek rangmanch hai. Har vyakti is rangmanch ka kalakaar hai. Sabhi ko is rangmanch par apni bhumika ada karni hoti hai. Kisi ko sajjan ki aur kisi ko durjan ki... Kisi ko Sadhu ki aur kisi ko seth ki... Kisi ko manav ki aur kisi ko maha-manav ki.. Sabhi ko apni bhumika ka chayan karna hai.. Aap kis bhumika ka chayan karenge???????

Added by Vineet Ojha on April 30, 2010 at 9:48pm — 4 Comments

महुआ ,

महुआ ,

एगो उ दिन रहे ,

एगो आज के दिन बा ,

इ ओह दिनों पुछात रहे ,

आजो पुछात बा,

अंतर एतने बा ,

कलह घर बसवात रहे ,

आज घर उजारत बा ,

महुआ ,

एगो उ दिन रहे ,

एगो आज के दिन बा ,

महुआ टपकल ,

घरे आइल ,

लपसी बनल

मजा आइल ,

अब लपसी कहा भेटात बा .

महुआ ,

एगो उ दिन रहे ,

एगो आज के दिन बा ,

महुआ सुखल ,

खूब भुजाइल ,

तीसी के संगे ,

लाटा कुटाइल ,

अब लाटा कहा भेटात बा ,

महुआ ,

एगो उ दिन… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on April 30, 2010 at 5:11pm — 3 Comments

स्वागत

स्वागत

आज समय बदल गइल ,

स्वागत के अंदाज बदल गइल ,

पाहिले घर में मेहमान आई ,

मिश्री मिठाई से स्वागत काइल जाई ,

अब चाय बिस्कुट से काम चल जात बा ,

आज समय बदल गइल ,

स्वागत के अंदाज बदल गइल ,



पाहिले मेहमान के आईला पर ,

लाईकन के चेहरा पर ,

खुसी छा जाई ,

की आज घरे मिठाई आई

आउर आज लाईकन के चेहरा उतार जाई ,

काहे की फ्रिज के मिठाई ओरा जाई ,

आज समय बदल गइल ,

स्वागत के अंदाज बदल गइल ,



पाहिले नेता खातिर लोग… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on April 30, 2010 at 5:09pm — 3 Comments

कहीं धूप में

कहीं धूप में जले लोग

कहीं बर्फ में गले लोग



दर्दो-ग़म की बस्ती में

तन्हाई के काफ़िले लोग



बारूदों की तल्ख़ धूप में

खूं-पसीने से गिले लोग



बिन जुर्म जो काटे सज़ा

वो सलीब की कीलें लोग



कुछ पड़े हैं लाशों जैसे

कुछ हैं गिद्द-चीलें लोग



सागर थे जो सूख गए

बचे रेत के टीले लोग



खूं भी नहीं खौलता अब

नहीं होते लाल-पीले लोग



पाप अधम के बाजों पर

नाच रहे रंगीले लोग



दुनिया की फुलवारी… Continue

Added by asha pandey ojha on April 30, 2010 at 8:00am — 16 Comments

''बबुआ के प्यार हो गइल''

''बबुआ के प्यार हो गइल''

समय के संगे सब कुछ बदलत जात बा, अब तुही सुनS महेश्वर के बेटा का कहत बा ? इ बात हरी काका कहत रहलन दुखन ठाकुर से, जे उनकर दाढ़ी बनावत रहूअन, दुखन ठाकुर कहलन "का कहत बा काका" , काका कहलन मत पूछा, घोर कलयुग आ गइल बा, ओकरा शादी खातिर एगो हित बोलावले रहनी ह, दुखन कहले, हा हम सुनले रहनी की कोई हित आइल रहे, हमहू इंतजार करते रह गइनी की हमके केहू बुलावे आई, की चलS छेका बा, बाकिर केहू न आइल, त काका कहले, कैसे कोई जाईत हो उ कल्हे के छोकरा कहत बा, ओ लाईकी से हम कईसे शादी कS ली… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on April 29, 2010 at 4:30pm — 1 Comment

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