बह्र: 212 212 212 212
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प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई
देख कर पीर पलकें दुखी हो गई
तेरी यादों ने दिल पे यूं दस्तक दिया
आंख बहने लगी औ नदी हो गई
संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा
एक पल की जुदाई सदी हो गई
प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई
शेअर ऐसे नहीं हैं जो दिल पर लगे
आज फिर दर्दे दिल में कमी हो गई
कश्मकश में अभी तक पड़ा है ‘शकील’
कैसे इक…
Added by शकील समर on October 20, 2013 at 5:30pm — 15 Comments
जानता हूँ जगत मुझसे दूर होगा
पर तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ।
कठिन होगी यात्रा, राहें कँटीली,
व्यंजनायें मिलेंगी चुभती नुकीली,
कौन समझेगा हमारी वेदना को
नहीं देखेगा जगत ये आँख गीली,
प्यार अपना हम दुलारेंगे अकेले
बस तुम्हारे साथ का बल चाहता हूँ।
स्वप्न देखूँ कब रहा अधिकार मेरा
रीतियों में था बँधा संसार मेरा,
आज मन जब खोलना पर चाहता है
गगन को उड़ना नहीं स्वीकार मेरा,
भर चुके अपनी उड़ानें अभी सब…
ContinueAdded by Manoshi Chatterjee on October 20, 2013 at 11:19am — 17 Comments
कैसा ये जीवन हुआ, दिन प्रति बढ़े विकार
लोभ, मोह, मद, दंभ भी, नित लेते आकार
नित लेते आकार, स्वार्थ के सर्प अनूठे
बाँट रहे संदेह, नेह के बंधन झूठे
मन में फैली रेह, भाव है ठूंठों जैसा
संवेदन अब शून्य, मूल्य संस्कृति का कैसा
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on October 19, 2013 at 10:30pm — 23 Comments
दीवाली -(चोका)
आई दीवाली
जगमगायें दीप
सबके द्वारे
माटी से सुरचित
दीप सुन्दर
रुई की बनी बाती
स्नेह पूरित
तब मिल जलती
बाती सुन्दर
दे अपनी उजास
हरे उदासी
उल्लास भर देती
घर बाहर
सागरसुता आये
स्वर्ण कलश …
Added by Jyotirmai Pant on October 19, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
शाम सी ना सवेरे जैसी है |
रोशनी भी अँधेरे जैसी है |
क्या बताऊ तुम्हें पता घर का,
पूरी बस्ती ही डेरे जैसी है |
वक्त गुजरा तो फ़िर नहीं लौटा,
इसकी फ़ितरत भी तेरे जैसी है |
उस मुसब्बर की कोई भी मूरत,
तेरे जैसी ना मेरे जैसी है |
हर ख़ुशी जिंदगी के आंगन में,
चार दिन के बसेरे जैसी है |
डौली दुल्हन की जो उठाने चले,
सबकी नीयत लुटेरे जैसी है |
डा. विनोद…
ContinueAdded by डॉ विनोद लवानिया on October 19, 2013 at 4:30pm — 20 Comments
जीवन क्या है ? तुहिन सूक्ष्म कण
क्यों ना तुझ पर करूँ समर्पण....
दूर्वादल के क्षणिक पाहुने
संग लिये आती है ऊषा
प्राची के आँचल में रश्मि
बिखरा देती है मंजूषा
बीन-बीन ले जातीं किरणें
तुहिन बिंदु सम जीवन के क्षण......
ना द्युति मेरी,ना छवि मेरी
है सारा सौंदर्य पराया
बल गुरुत्व का, देह सँवारे
मन को लुभा रही है माया
तृषा बढ़ाती मृग-तृष्णायें
फैलाकर अपना आकर्षण......
उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ…
Added by अरुण कुमार निगम on October 19, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
मेरे अपने उधारी दे के ऋण को छोड़ देते हैं
मगर फिर नास्ते का दाम उसमें जोड़ देते हैं
चलाते योजना अक्सर वो अपने जेब भरने को
सियासी हैं बड़े नदियों का रुख भी मोड़ देते हैं
जो हैं कमजोर दुनिया में करें वो ज्ञान की बातें
बहादुर हैं जो हाँ करवाने सर ही फोड़ देते हैं
करे हैं जोंक सी यारी लिपट के यार मतलब से
निकल जाता है जब मतलब वो यारी तोड़ देते हैं
हवाएं जब करें साजिश चटक जाते हैं तब फानूश
तमस से जंग…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 3:30pm — 10 Comments
१२२२ १२२२
बड़ी बातें मियां छोड़ों
हमारा दिल न यूं तोड़ों
न हिन्दू है न वो मुस्लिम
वो हिंदी है उसे जोड़ो
छलकती हैं जहाँ आँखें
मुझे रिन्दों वहां छोड़ों
लगें दिलकश जो शाखों पे
हसीं गुल वो नहीं तोड़ों
मिलेगी वक़्त पर कुर्सी
मियाँ कुर्सी को मत दौड़ों
लुटी कलियाँ चमन की हैं
दरिंदों को नहीं छोड़ों
बचा कुर्सी वतन बेंचा
शरारत ये जरा…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 19, 2013 at 2:30pm — 18 Comments
बह्र: 2122 1122 1122 22
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जिंदगी और न अब कोई पहेली होगी
फिर से हाथों में मेरे तेरी हथेली होगी
प्यार में ताने सुनाने लगी दुनिया अब तो
क्या पता था मुझे नाम उसके हवेली होगी
कान किसने भरे उसके वो खफा है…
Added by शकील समर on October 19, 2013 at 1:10pm — 13 Comments
Added by DEEPAK PANDEY on October 19, 2013 at 12:46pm — 12 Comments
छा रहा है गगन में कुछ कुछ उजाला
बढ़ रही है पूर्व दिशि की लालिमा
जगमगाते तारे भी फीके पड़े हैं
घट रही है यामिनी की कालिमा
चन्द्रमा निस्तेज होकर जा छुपा है
मंद पड़ती श्वेत किरणों को समेटे
चाहता है पश्चिमी दिव्यांगना के
पास जाकर गोद में कुछ काल लेटे
हाथ थामे दिग्वधू का आ रहे हैं
तिमिर के बैरी प्रभु श्री अंशुमाली
मंद वायु भी लगी है मुस्कुराने
छिप गयी है कही जाकर रात काली
हिमगिरी…
ContinueAdded by Praveen Verma 'ViswaS' on October 19, 2013 at 12:20pm — 13 Comments
बहुत ज्यादा भी हो, पाकीज़गी, अच्छी नहीं होती
न करना यार मेरे, ख़ुदकुशी, अच्छी नहीं होती//१
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चलो माना, के जीने के लिए, खुशियाँ जरूरी है
जरा भी ग़म न हो, ऐसी ख़ुशी, अच्छी नहीं होती//२
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भले ही, आह उट्ठे है !!, दिलों से, वाह उट्ठे है !!
मगर सुन, आँख की, बेपर्दगी अच्छी नहीं होती//३
.
तजुर्बे का, अलग तासीर है, यारों मुहब्बत में
हमेशा इश्क़ में, हो ताज़गी, अच्छी…
Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 12:19pm — 38 Comments
अलग सबसे तबीयत है करें क्या
कि इक बुत से मुहब्बत है करें क्या /१
दुआ में मांगते हैं मौत मेरी
सितमगर की शरारत है करें क्या /२
न कोई आ रहा सुन डुगडुगी अब
मदारी को शिकायत है करें क्या /३
ये आदत छोड़िये जी शाइरी की
मगर दिल की जरुरत है करें क्या /४
तमाशा देख लो उस नामवर का
लिबासों की इबादत है करें क्या /५
हमें दिल में सनम ने रख लिया है
न मरने की इजाजत है करें क्या /६
अरे अब आसमां मत बांट देना
ज़मीं ने की…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on October 19, 2013 at 12:00pm — 19 Comments
काँटे हैं किस के पास में किस पे गुलाब है।
जनता के पास आज भी सबका हिसाब है।
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पढ़कर के जिस किताब को बच्चे बहक गये ,
बोलो र्इमान वालो वो कैसी किताब है।
.
लालो गुहर नही है मेरे पास में मगर ,
जो कुछ भी मेरे पास है वो लाजबाब है।
.
बैठे है करके बंद वो दरवाजे खिड़कियाँ ,
ये सोचकर कि अपना मुकददर खराब है।
.
ये सच है हाथ पाँव में अब जान ही नही ,
जिन्दा लहू में अब भी मेरे इन्कलाब है।
.
अंगार को बुझाइये पानी…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 19, 2013 at 11:30am — 8 Comments
जवान होते ही हैं
शहीद होने के लिए
और नेता
वह तो शासक है
सोना उनका हक है
जवान जब गोली खा रहा होता है
नेता पार्टी कर रहे होते हैं
जवानों की चिता को
मुखाग्नि भी
राजनीति का अवसर देती है
उन्हें,
शहीदों की
माओं के चाक सीने पर भी
नमक छिड़कने से भी
बाज नही आते
विलाप, क्रंदन भी
अवसर हैं वोट की तिजारत के।
नेताओं
देश शर्मसार है तुम पर।
मीना पाठक
…
Added by Meena Pathak on October 19, 2013 at 8:00am — 29 Comments
तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान
जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान
बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे
जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे
हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी
पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on October 18, 2013 at 11:00pm — 29 Comments
घरों मे वो दादी औ नानी हैं कहाँ अब
बच्चों के सपनों में राजा-रानी हैं कहाँ अब
उम्र से ज़्यादा , क़द बड़े हो गये हैं उनके
कि बच्चों में बच्चों की निशानी हैं कहाँ अब
बुज़ुर्गों की याद भी आए , तो आए कैसे
घरों में कोई भी चीज़ें पुरानी हैं कहाँ अब
नहीं मिलता है , कृष्ण सा क़िरदार कोई
भला दिखती भी मीरा दीवानी हैं कहाँ अब
घर , छतें , घरोंदें हैं , पंछी भी हैं "अजय"
बर्तन में उनके दानें और पानी हैं कहाँ…
Added by ajay sharma on October 18, 2013 at 10:30pm — 15 Comments
सांझ ढली
कुछ टूटा ,
भर गयी रिक्तता.
सब मूंद दिया कसकर.
अन्दर बाहर अब है,
एक रस.
घुप्प अँधियारा.
दिवस का…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 18, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
अपने दिल से मेरा सिलसिला जोड़ दे ,
द्वार आखों का अपनी खुला छोड़ दे..
.
ऐसी पागल हवायों की औकात क्या
तू जो चाहे तो तूफाँ का रुख मोड़ दे…
.
राह में रोक लेना तो रुसवाई है
साथ चल या मेरा रास्ता छोड़ दे
.
साफ चाहत का जिसमे न चेहरा दिखे।
दिल ये कहता है वो आइना तोड़ दे ...
.
दुःख में आँखें न आ जाएँ तेरी कहीं
रात भर याद में जागना छोड़ दे…।
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by Pankaj Mishra on October 18, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
पारदर्शी शीशो पर
लगा दी काली चादर
अब बाहर वाले
नही देख सकते
भीतर का हाल
ठीक उसी तरह
जैसे तुमने
अपने चेहरे की
अतुलनीय मुस्कराहट से
बंद कर दिए
भीतर के सभी किवाड़
जो आया जितना आया
सब डालती जा रही हो
अब डर सा
लग रहा हैं मुझे
खिडकियों की
काली चादर
कुरच रही हैं
हवा बाहर की
ओर मुझे
दिखाई दे रही हैं
एक रौशनी सी
जो सब बहा ले जाएगी
अबकी जो ये कमरा
खाली हो जाये तो
बंद मत…
Added by savita agarwal on October 18, 2013 at 9:30pm — 13 Comments
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