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ग़ज़ल.....खंज़र चुभा किस धार से

2212/2212/2122/212

 दिल में तुम्हारे है जो मुझको बताना प्यार से

यूँ भूल कर हमको भला क्या मिला संसार से

यूँ जानकर रुसवा किया आज महफ़िल में भला 

जो तोड़कर नाता चले क्यूँ भला इस पार से

चुप सी है धड़कन मेरी अब दिल भी है खामोश तो

घायल हुआ दिल मेरा खंज़र चुभा किस धार से

नादान हूँ मैं या कि अहसान उनका है जरा 

वो रोक देते हैं मुझे शर्त कि दीवार से

वो प्यार के मंजर हमें आज भी भूले नहीं

दिल भी दिये,ख़त भी लिखे सब छुपा संसार से 

जो आँख में है प्यार वो क्यूँ दिखा ना यार को

जब राह देखा था कोई यूँ बड़े आसार से

अब सोहनीं, लैला कहाँ हीर की बातें करें

बस दिन गुज़रता था यहीं यार के दीदार से

तू छोड़ कर चल दे यहाँ प्यार की राहें जरा

फिर रोक ले न 'रवि' कोई यार के बाज़ार से

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मौलिक और अप्रकाशित-अतेन्द्र कुमार सिंह 'रवि'

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 30, 2013 at 9:48pm

भाई अतेन्द्र जी मेरे कहे को मान देने के लिये आपका शुक्रिया

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 30, 2013 at 9:18pm

शिज्जू जी...आपके अनुसार हमनें मिसरे को आपके अनुसार कर लिया है ...मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 28, 2013 at 8:18pm

सुझाव के ले लिए बहुत बहत शुक्रिया शिज्जू जी ....कोशिश करते हैं ...धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 27, 2013 at 11:36pm

//दिल में तुम्हारे है जो मुझको बताना प्यार से//

भाई अतेन्द्र जी आप मिसरे को यूँ कर लें तो ये आपकी दी हुई बह्र के मुताबिक हो जायेगी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 27, 2013 at 10:26pm

आपके शब्द तो मिसरे के वज़्न में सटीक बैठेगा. मग़र बताना की जगह बताइये करना होगा जोकि संभव नहीं होगा. और बताना रहने दिया गया तो शुतर्ग़ुर्बा का दोष होगा.

अतः मतले के उला पर फिर से सोचें.

हार्दिक शुभेच्छाएँ.

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 27, 2013 at 9:02pm

सौरभ सर को सादर प्रणाम ...आपने जो मार्गदर्शन दिया हम आपके बहुत आभारी हैं ...तुम्हारे में मात्रा शायद होना चाहिए 122...क्या इसके स्थान पर आपके  कर सकतें हैं ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2013 at 9:45pm

आप यदि तुम्हारे की मात्रा पर बात करते हैं, भाई अतेन्द्रजी,  तो मेरा हार्दिक सुझाव इस पर यही होगा कि आप स्वयं को थोड़ा समय दें. और मंच पर उपलब्ध ग़ज़ल के पहले पाठ दर पाठ पढ़ लें.

शुभेच्छाएँ.

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 25, 2013 at 9:24pm

सौरभ सर ...कृपया आप हमारी ग़ज़ल को देखकर जो प्रतिक्रिया दी है उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद और उस पर हम विचार कर रहें हैं पर हम आपसे यह भी आशा करते हैं कि मतले में संशोधन किस प्रकार किया जा सकता है ...शायद हमनें  "है तुम्हारे दिल में " ह कि मात्र को गिराकर १ गिना है .....उचित मार्गदर्शन करें हम आपके आभारी रहेगें .....धन्यवाद

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 25, 2013 at 9:17pm

जीतेन्द्र जी,डॉ अनुराग जी सुशील जी आप सभी को सहृदय धन्यवाद ....

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 9:32pm

शानदार गज़ल के लिए हार्दि बधाई आ0 अतेन्द्र कुमार जी......

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