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दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

कोमल काया फूल सी, अति मनमोहक रूप ।
तेरे आगे चाँद भी, लगता मुझे कुरूप ।।

भोलापन अरु सादगी, नैना निश्छल झील ।
जो तेरा दीदार हो, धड़कन हो गतिशील ।।

गेसू लगते आपके, ज्यों रेशम की डोर ।
बिखरें काली रात हो, सुलझें होती भोर ।।

अधर पाँखुरी पुष्प से, कोमल गाल गुलाब ।
तुमको पाकर हो गया, पूरा दिल का ख्वाब ।।

ज्यों झूमर से घर सजा, त्यों झुमकें से कान ।
आभूषण ही लाज का, नारी का सम्मान ।।

खन खन खनके चूड़ियाँ, हरी गुलाबी लाल ।
मेरी हर इक चाह का, रखतीं सदा खयाल ।।

छम छम छम पायल बजे, लूटे चैन करार ।
ईश्वर से इतनी दुआ, अमिट रहे यह प्यार ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on November 3, 2013 at 3:51pm

मनमोहक दोहों के लिए बधाई, आदरणीय अरून जी।

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on November 3, 2013 at 3:50pm

अधर पाँखुरी पुष्प से, कोमल गाल गुलाब ।
तुमको पाकर हो गया, पूरा दिल का ख्वाब ।।

वाह सुन्दर दोहे भाई !


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Comment by Dr.Prachi Singh on October 30, 2013 at 10:27am

सुकोमल भाव प्रस्तुति के लिए बधाई प्रिय अरुण जी 

गेसू लगते आपके, ज्यों रेशम की डोर ।
बिखरें काली रात हो, सुलझें होती भोर ।।....बहुत सुन्दर 

फिर भी कुछ दोहों में कथ्य और प्रभावी हो सकता था... 

शुभकामनाएं 

Comment by विजय मिश्र on October 25, 2013 at 12:29pm
बहुत मीठे श्रृंगारिक भाव लिए मन प्रसन्न करने वाली रचना .बधाई अरुनजी
Comment by Sushil.Joshi on October 25, 2013 at 4:40am

वाह वाह आ0 अरुन भाई..... कितने सुंदर दोहे रचे हैं....... पढ़कर मन आनंदित हो गया..... आपने नायिका की सुंदरता का इस कदर बखान किया है कि प्रत्येक पंक्ति एक छवि उभार कर ला रही है............ बहुत बहुत बधाई इस अति सुंदर प्रस्तुति के लिए....

Comment by Saarthi Baidyanath on October 24, 2013 at 7:08pm

बहुत ही मनभावन ...प्रेम का पुट , रचना को जोड़ रहा है दिल से ...बढ़िया दोहे ..उत्तम दोहे :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 5:40pm

आदरणीय आशुतोष सर दोहों को पसंद करने हेतु हार्दिक आभार आपका जहाँ तक तकनीकी पक्ष की जानकारी है तो यहाँ समूह में भारतीय छंद विधान में उपलब्ध है. हम सबने यहीं से सीखा है और यहीं से स्वतः स्वतः गुरुजनों के सहयोग से कमियों को दूर कर रहे हैं. मंच पर तनिक विचरण कीजिये खजाना मौजूद है अवश्य मिलेगा. सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 5:36pm

आदरणीय श्री सौरभ सर जी आपकी विस्तृत टिपण्णी की प्रतीक्षा रहती है दोहे आपको पसंद आये मेरे लिए प्रसन्नता की बात है आपने और एवं अरु का उपयोग कहाँ और कब करना चाहिए इसकी जानकारी भी साझा की जिससे मैं अभी तक अनभिज्ञ था, जिन होने में तुकन्तता भारी पड़ रही है उन्हें सुधारने का प्रयास करता हूँ. हृदयतल से हार्दिक आभार आपका

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 5:33pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया मीना जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 5:33pm

हार्दिक आभार जीतेंद्र भाई जी

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