For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts Tagged 'गज़ल' (117)


सदस्य कार्यकारिणी
देख तो ले तिलमिला कर ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122         2122

खुश हुआ खुद को भुला कर

या कहूँ मै तुझको पा कर

खुद को भी मै ने सताया 

दोस्ती को आजमा कर

ज़िंदगी का बोझ सर पे

चल रहा हूँ लड़खड़ा कर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 8:30am — 32 Comments

सफर में चलते रहना ही हमारी कामयाबी है (गज़ल)

अरकान : १२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२

गिरें  तो  फिर  सम्हलना  ही  हमारी  कामयाबी है !

सफर  में  चलते  रहना  ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

नही  ये कामयाबी  है  कि  मंजिल  पा  लिया हमने…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 8:24am — 26 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं (गज़ल)

2122   1212     22 

धूप हमको निचोड़ देती है ,

ठंड घुटने सिकोड़ देती है ।

 

पत्तियों को बड़ी शिकायत है,

ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं।

 

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 7:00am — 19 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गुमशुदा खुशियां कहां रहने लगी है आज छुप कर

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर

***************************************

दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना

क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना

खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे

जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 15, 2013 at 8:00am — 33 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गज़ल :अरुण कुमार निगम

ये माना चाल में धीमा रहा हूँ

मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ ||

बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने

तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ ||

कभी बख्शी थी मेरी जान उसने

छुड़ाया शेर को,चूहा रहा हूँ ||

कुँये में शेर को फुसला के लाया

बचाई जान वो खरहा रहा हूँ ||

मेरे बचपन न फिर तू आ सकेगा

तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)

शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर…

Continue

Added by अरुण कुमार निगम on August 1, 2013 at 8:48am — 12 Comments

गज़ल

शैक्षिक व्यस्तताओं तथा गाँव यात्रा के कारण काफी समय तक ओबीओ से दूर रहना पड़ा ! इतने दिनों में काफी याद आया अपना ये ओबीओ परिवार ! लगभग पाँच महीने बाद आज पुनः ओबीओ पर लौटा हूँ ! सर्वप्रथम सभी आदरणीय मित्रों को नमस्कार, तत्पश्चात ये एक छोटी-सी गज़ल नज़र कर रहा हू ! इसके गुणों-दोषों पर प्रकाश डालकर, मुझ अकिंचन को कृतार्थ करें ! सादर आभार !

अरकान : २१२२/२१२२

जिन्दगी की क्या कहानी !

गर नही आँखों में पानी !

भ्रष्टता…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on July 20, 2013 at 4:30pm — 24 Comments

हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती...

तमाम उम्र भी ये बात हो नहीं सकती,

हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती।



हर एक ख्वाब की ताबीर मिल सके हमको,

कोई भी ऐसी करामात हो नहीं सकती।



गुरूब हो चुका मेरे नसीब का सूरज,

अब और नूर की बरसात हो नहीं सकती।



मैं रात हूँ मुझे सूरज मिले भला कैसे,

हो शम्स पास तो फिर रात हो नहीं सकती।



बजाय हमको मनाने के कह गये है वो,

के छोडो हमसे इल्तजात हो नहीं सकती।



कोई गुनाह बहुत ही कबीर है मेरा,

कबूल जिसकी मुनाजात हो नहीं…

Continue

Added by इमरान खान on December 2, 2012 at 10:30pm — 19 Comments

दर्दे तन्हाई

२१२ २१२

मैं जहाँ भी रहूँ,

तू भी आती है क्यूँ।



मैं अकेला कहाँ,

तेरी यादों में हूँ।



ठोकरें भी लगें,

तो भी चलता रहूँ।



मेरी बर्बादियाँ,

चल रही दू ब दूँ।



कत्ले अरमाँ या जाँ,

बोल दे क्या करूँ।



जिस्म ठंडा हुआ,

रूह जलती है क्यूँ।



है तेरी याद में,

दीद में खूँ ही खूँ।



ज़ख़्मी सारा जिगर,

दर्द कैसे सहूँ।



आशियाना नहीं,

बेठिकाना फिरूँ।



यार भी छल…

Continue

Added by इमरान खान on November 20, 2012 at 11:30pm — 9 Comments

अहवाल-ए-ज़वाल

२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२

पुर-शुआ पुर-शुआ था हमारा शहर, रोशनी में नहाया हुआ था समाँ,

आज लेकिन न जाने ये क्या हो गया, हो गया है अँधेरा अँधेरा जवाँ।



हैं तवारीख में दास्तानें सभी, वक्त की मार से खाक में मिल गये,

जो जवाहर सजाते रहे ताज में, और ताबे रहा जिनके सारा जहाँ।



उल्फतों से यही हाय कहता रहा, मैं तुम्हारा बना हूँ सदा के लिये,

पर अचानक उसी ने गज़ब ये किया, चल दिया ठोकरें दे न जाने कहाँ।



बन्द कर के निगाहें भरोसा किया, जानो…

Continue

Added by इमरान खान on November 17, 2012 at 2:00pm — 3 Comments

धड़कनें जलती बुझती रही रात भर...

दिल की लौ थरथराती रही रात भर,

धड़कनें जलती बुझती रही रात भर।



गिर के खुद ही सम्भलती रही रात भर,

ज़िन्दगी लड़खड़ाती रही रात भर।



मैंने रब से भी कितनी ही फरियाद की,

एक तसल्ली ही मिलती रही रात भर।



बुझ न जब तक गई इन चराग़ों की लौ,

तेज़ आँधी ही चलती रही रात भर।



शाम घिरने से लेके सहर खिलने तक,

दर हवायें बजाती रही रात भर।



उसका वादा था वो पर नहीं आ सका,

ये खलिश दिल जलाती रही रात भर।



जब हवा रात भर ठंडी ठंडी… Continue

Added by इमरान खान on November 15, 2012 at 11:26am — 8 Comments

कुछ तो में खोया सा हूँ..

कुछ तो में खोया सा हूँ
कुछ ये शाम खोयी सी है

पहलुओं की आड़ से खुद को बचा के चल दिए
बेखुदी तमाम खोयी सी है

इक ना-काफ़िर के अब ना रहे मुहताज हम
आदत-ए-आम खोयी सी है

खो गयीं वो सूरतें जो बादलों में यों हीं दिखती थीं
तालीम-ए-हाराम खोयी सी है

हज़ार पन्ने भर दिए कैफियत पर ना हुई
सूरत गुमनाम खोयी सी है

Added by Bhasker Agrawal on March 23, 2011 at 10:20am — No Comments

उलझन

दीदार ए अजीमत से हम शर्माए बहुत हैं

बढ़ने से कदम मेरे घबराये बहुत हैं



गर भटक गया आदम तो चोंकना कैसा

जिंदगी रस्ते में तेरे दोराहे बहुत हैं



वो तो आसमां ही था जो नसीब ना हुआ

पिंजड़े में परिंदे फडफडाए बहुत हैं… Continue

Added by Bhasker Agrawal on February 15, 2011 at 9:30pm — No Comments

ऐब की बस्ती

कल ऐब की बस्ती में ख्वाबों का घर देखा

अदावत की सोहबत देखी शैदा बेघर देखा

 

दर्द नहीं मिट पाया यादों को तज़ा करके भी

जहाँ फकत फजीहत देखी माजी उधर देखा

 

हासिल हुई बेगारी मुझे मंजिल के…

Continue

Added by Bhasker Agrawal on February 3, 2011 at 4:55pm — 2 Comments

असल

चाँद नज़र ना आया तो गम है क्या

सितारों का साथ पाया ये कम है क्या



में तो खुद पे यकीन करता हूँ

नहीं जानता में के भरम है क्या



ना कर तू ज़ाहिर मुझको ख्वाइश अपनी

तेरी जरूरत में शामिल हम है क्या



चाहत मेरी मेरे ख्वाबों में बरसती है

नहीं… Continue

Added by Bhasker Agrawal on January 13, 2011 at 9:56am — 5 Comments

बेकरारी

कभी तो मेरी बेकरारी को देख लो

कहीं वक्त बीत न जाये नज़रें चुराने में

 

सहन होती है तन्हाई जिन्हें और गम नहीं जुदाई का

ऐसे दिलफेंक आशिक कहाँ मिलते हैं ज़माने में

 

मेरी नामोजूदगी को मेरी बेवफाई न समझना

नज़र आएगी मेरी चाहत मेरे बहाने में 

 

रो कर लिपट जाती हो तुम…

Continue

Added by Bhasker Agrawal on January 12, 2011 at 12:11pm — 3 Comments

ग़ज़ल:काम बेशक न कीजिये

काम बेशक न कीजिए ज्यादा,

मीडिया में मगर दिखिए ज्यादा.



ये सियासत के खेल है साहब ,

बोइये कम छीटिए ज्यादा.



मिल गया है रिमांड पर अभियुक्त

पूछिए कम पीटिए ज्यादा.



सैलरी झाग दूध रिश्वत है,

फूंकिए कम पीजिए ज्यादा.



शेख जी हैं नए नए शायर ,

दाद कुछ और दीजिए ज्यादा.



लिफ्ट छाते में देकर देख लिया ,

बचिए कम भीगिए ज्यादा.



सभ्यता की पतंग और पछुआ बयार,

ढीलिए कम लपेटिए ज्यादा.



अपसंस्कृति की पपड़ियाँ… Continue

Added by Abhinav Arun on October 19, 2010 at 1:30pm — 13 Comments

गज़ल - आंधियां चल दीं

आंधियां चल दीं आज़मानें सौ ,

गढ़ लिए हमने आशियानें सौ.



जिनकी हस्ती नहीं बसाने की ,

वो चले बस्तियां ढहानें सौ.



पुलिस के वास्ते बस एक थाना ,

माफिया के यहाँ ठिकानें सौ.



जीते जी तो हुआ न कोई एक,

अब मरा है चले नहानें सौ.



सफेदी ज़ुल्फ़ की यूँ ही तो नहीं ,

एक दिल यहाँ फसानें सौ.



लाख हैं बालियाँ चिडियाँ दस बीस,

खेत में बन गयीं मचानें सौ.



कटी उस ओर है खुशियों की पतंग,

लूटने चल दिए दीवानें… Continue

Added by Abhinav Arun on October 16, 2010 at 4:03pm — 5 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service