For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ravi Prakash's Blog (43)

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

हमारे नाम का चर्चा हुआ होगा सितारों में।

ज़माना खोजता होगा हमें भी बेसहारों में॥

.

किसी ने हाथ छोड़ा तो बढ़ा के रुक गया कोई,

हमारी तंगहाली भी नज़ारा थी नज़ारों में।

.

छुपाते हैं जिसे दिल में उसे ही छीन लेता है,

न जाने कौन क़ातिल है हमारे राज़दारों में।

.

न मुड़ के देखती है फिर लहर जो लौट जाती है,

बड़ी गहरी उदासी है समंदर के किनारों में।

.

रिवाज़ों के,समाजों के अजब रंगीन किस्से हैं,

वही जिनसे अदावत थी जमा हैं सोगवारों में।

.

'रवी'… Continue

Added by Ravi Prakash on December 5, 2013 at 3:30pm — 31 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ
.
ज़िंदगी कैसी बग़ावत हो गई।
मौसमों से भी अदावत हो गई॥
.
ले चली है हाँकती जाने किधर,
वासना सबकी महावत हो गई।
.
संयमी का पेट आधा ही भरा,
भोगियों की रोज़ दावत हो गई।
.
चापलूसी है चलन में इन दिनों,
वीरता केवल कहावत हो गई।
.
रुक गई थी काँप के दो पल 'रवी',
साँस मेरी फिर यथावत हो गई॥
.
-मौलिक व अप्रकाशित॥

Added by Ravi Prakash on November 28, 2013 at 8:48pm — 15 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ

.

आसनों पे हैं निशाचर जंगलों में राम है।

साधुओं के वेष में शैतान मिलना आम है॥

.

राहुओं को जीवनामृत, नीलकण्ठों को गरल,

अंत में प्रत्येक मंथन का यही अंजाम है।

.

और कितना द्रोपदी के चीर को लंबा करे,

दम बहुत दु:शासनों में, मुश्किलों में श्याम है।

.

क़ातिलों,बहरूपियों,पाखंडियों के हाट में,

ज़िंदगी मेरी-तुम्हारी कौड़ियों के दाम है।

.

गर न खाना मिल सके दो वक़्त,आदत डाल दे,

चार दिन है भुखमरी फिर क़ब्र में आराम… Continue

Added by Ravi Prakash on November 6, 2013 at 7:11pm — 15 Comments

ज़िंदगी ग़ुज़र गई - (रवि प्रकाश)

न बिजलियाँ जगा सकीं,

न बदलियाँ रुला सकीं।

अड़ी रहीं उदासियाँ,

न लोरियाँ सुला सकीं।



न यवनिका ज़रा हिली,

न ज़ुल्फ की घटा खिली।

उठे न पैर लाज के,

न रूप की छटा मिली।



जतन किए हज़ार पर,

न चाँद भूमि पे रुका।

अटल रहे सभी शिखर,

न आस्मान ही झुका।



चँवर कभी डुला सके,

न ढाल ही उठा सके।

चढ़ा के देखते रहे,

न तीर ही चला सके।



वहीं कपाट बंद थे,

जहाँ सदा यकीन था।

जिसे कहा था हमसफ़र,

वही तमाशबीन…

Continue

Added by Ravi Prakash on October 23, 2013 at 12:00pm — 37 Comments

वेदना (रवि प्रकाश)

वितान चाँदनी बुने न रात हो सुहावनी,

न बोलते विहंग हों न भोर हो लुभावनी।

बहार की पुकार पे हवा न गीत गा सके,

विमुक्तकण्ठ कोकिला न रागिनी सुना सके।



विलास हो न हास हो उदास हो वसुंधरा,

हताश अंतरिक्ष हो महान मौन से भरा।

वसंत की सुगंध में घुला हुआ विषाद हो,

बयार में,फुहार में विलाप का निनाद हो।



न प्रीत की परंपरा न गीत हो प्रयाण का,

उमंग की तरंग हो न संग हो कृपाण का।

जले न दीपमालिका न इष्ट देवता मिले,

न इन्द्रचाप सी कभी सुदर्श कल्पना… Continue

Added by Ravi Prakash on October 17, 2013 at 7:50pm — 17 Comments

जिजीविषा - (रवि प्रकाश)

नगरी-नगरी
फूटी गगरी
लेकर पानी
पीना है।
मेरी छानी
गारा-मिट्टी
तेरा आँगन
भीना है।
रेशम-रेशम
तेरा आँचल
मेरा कुर्ता
झीना है।
शैल-शिखर सा
मस्तक तेरा
मेरा बोझिल
सीना है।
दुनिया,तूने
बीच भँवर में
आस-आसरा
छीना है।
अन्धकार में
आँखें फाड़े
जुगनू-जुगनू
बीना है।
खुली हथेली
ख़ाली बर्तन
फिर भी हमको
जीना है।

-मौलिक एवं अप्रकाशित।

Added by Ravi Prakash on October 7, 2013 at 4:30pm — 24 Comments

रामभरोसे - (रवि प्रकाश)

थोथे सपने
उथली नींदें
स्वप्नलोक भी
रीता है।

सारा जीवन
कुरुक्षेत्र है
भूख हमारी
गीता है।

अट्टहास कर
रावण नाचे
बंधन में फिर
सीता है।

किसने सागर
पी डाला है
किसने अंबर
जीता है।

हम क्या जानें
वक़्त हमारा
रामभरोसे
बीता है।

मौलिक व अप्रकाशित।

Added by Ravi Prakash on October 2, 2013 at 6:00pm — 26 Comments

रहने दो - (रवि प्रकाश)

रहने दो

मुक्ता-माला

जटाजूट

चाहे दे दो।

बहने दो

यौवन-हाला

गरल-घूँट

चाहे दे दो॥

तुम रखना

मधुशालाएँ

कालकूट

मुझको देना।

तुम रचना

जयमालाएँ

भस्म-भूत

मुझको देना॥



पा लेना

आधार तुम्हीं

निराधार

चाहे दे दो।

गा लेना

गौरव-गाथा

व्यथा-भार

चाहे दे दो॥

चूर करो

मंज़िल मेरी

चकफेरी

फिर मुझको दो।

दूर करो

बंसी-वीणा

रणभेरी

फिर मुझको दो॥



थोड़े… Continue

Added by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 1:12pm — 18 Comments

किसी दिन - (रवि प्रकाश)

किसी दिन अचानक

रौँदे गए सपने

बवाल तो करेंगे।

जिन्हें हाशिए पर

धकेला है ज़बरन

सवाल तो करेंगे।



धमनी में जम कर

हुआ है जो पत्थर

बहेगा धमाके से।

सड़ी अर्गला से

उकताई खिड़कियाँ

खुलेंगी धड़ाके से।



जिस्म की रेत से

हज़ार बाँह वाले

निकलेंगे आबशार।

भरेंगे किनारे

मन की मरुभूमि पे

झूलेंगे देवदार।



कसकेगी कविता

जब पीड़ा व पीड़ित

रहेंगे एकाकार।

रचेगा नवगीत

अनुष्टुप भी अभीत

छाती का… Continue

Added by Ravi Prakash on September 24, 2013 at 7:30am — 14 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बदलियों से चाँदनी का झिलमिलाना शेष है।

घन तिमिर में दीपकों का बुदबुदाना शेष है॥

सावनों की खो चुकी झड़ियाँ कहीं मिल जाएँगी,

देवदारों की कतारों का सजाना शेष है।

फिर घृणा उन्मादिनी सी दौड़ती है प्राण में,

प्रीत के आखर अढ़ाई कसमसाना शेष है।

हलचलों में खो चली है रात की नि:शब्दता,

भोर की पहली किरण का खिलखिलाना शेष है।

रूढ़ियों के बाँध सारे तोड़ कर कविता बहे,

पीर की प्राचीर में यूँ छटपटाना शेष है।

फिर परिन्दों ने बदल दी आज उड़ने की अदा,

हाय! लेकिन… Continue

Added by Ravi Prakash on September 12, 2013 at 8:30am — 21 Comments

कवि का मन - (रवि प्रकाश)

छंद -15 गुरु अथवा 30 मात्राएँ (16 पर यति)



अम्बर कैसे झूला झूले,नदियाँ कैसे गाती हैं;

तारों की सौगातें ले कर,रातें मन बहलाती हैं।

सूरज के माथे पे आख़िर,किसके मद की लाली है;

अँगड़ाई लेते पत्तों पर,किसने शबनम डाली है।

किरणों के आभूषण पहने,भोरें क्यों इठलाती हैं;

कलियों की चटकीली गलियाँ,भौँरों को भरमाती हैं।

सुध-बुध अपनी खो कर कितना,दोपहरें अलसाती हैं;

दिन की पीड़ा हरते-हरते,साँझें क्यों सँवलाती हैं।

गुलमोहर की डाली से क्यों,चंदा उलझा रहता… Continue

Added by Ravi Prakash on August 21, 2013 at 5:30am — 7 Comments

निरर्थक - (रवि प्रकाश)

मरियल गाय सी

आँगन में खड़ी धूप में,

पर-कुतरी चिड़िया की तरह

मुँह के बल लाचार हवा गिरती है,

आधी टूटी अगरबत्ती से सरकते

बेजान धुँए की लकीरों से

ज़बरदस्ती दबाए गए

बीड़ी और शराब के भभके,

बालिश्त भर के रसोईघर में

धुँए से झाँकती दो-चार लपटों पर

निहत्थे तवे की छाती से चिपकी

काली चौकोर रोटी,

पीतल की पुरानी हँडिया

टूटे नल से रिसते पानी को

सँजोने की नाकाम कोशिश में

अक्सर घबड़ा जाती है।

दीवारों की उभरी पसलियों पर

मुँह फुलाए… Continue

Added by Ravi Prakash on August 15, 2013 at 10:18pm — 7 Comments

रूप तुम्हारे -(रवि प्रकाश)

मंदिर-मंदिर सजने वाली,

अक्षत,चंदन-सज्जित थाली।

या तुम कोई दीपशिखा हो,

जिस पर जीवन-जोत लिखा हो।

पूजन कोई नमन पुकारे,

जाने कितने रूप तुम्हारे॥



रात का भीगा अश्रु-कण हो,

नव विहान की प्रथम किरण हो।

तपी दोपहर अलसाई सी,

सन्ध्या थोड़ी सकुचाई सी।

चन्द्रलेख हो पंख पसारे,

जाने कितने रूप तुम्हारे॥



फागुन की मादक बयार भी,

पावस की पहली फुहार भी।

कार्तिक की हल्की सी ठिठुरन,

पौष-माघ की ठण्डी सिहरन।

तुझमें खिलते मौसम… Continue

Added by Ravi Prakash on August 11, 2013 at 9:00pm — 25 Comments

अन्वेषण - (रवि प्रकाश)

मंज़िल-मंज़िल ढूँढ़ा जिसको,रस्ते-रस्ते खोजा है;

मस्जिद-मस्जिद रोज़ पुकारा,मंदिर-मंदिर पूजा है।

कभी तलाशा महफ़िल-महफ़िल,परबत-परबत छाना है;

गलियों-गलियों खूब टटोला,नगरी-नगरी माना है।

गर्म सुनहले आतप में भी,खिलती नर्म बहारों में,

बहुतेरे हम भटक चुके हैं,सिकता भरे कछारों में।

सागर-सागर,नदिया-नदिया,कितने गोते खाए हैं;

अंतरिक्ष की सीमाओं का,अतिक्रमण कर आए हैं।

कुछ मझधारों ने भरमाया,कुछ लहरों ने धोया भी;

क्या-क्या पा जाने की धुन में,जाने क्या कुछ खोया… Continue

Added by Ravi Prakash on August 5, 2013 at 7:27pm — 13 Comments

मत्तगयंद सवैये - (रवि प्रकाश)

प्रथम प्रयास

- - - - - - - - -

1. बंजर हो धरती कितनी पर ये मन उर्वर देश वही है।

शूल गड़े दुखते तन में नित कातरता पर लेश नहीं है।

कौन मुझे समझे,परखे,उलझा अपना चिर वेश वही है।

कुंठित हो कर भी मुझमें कुछ धार अभी तक शेष कहीं है॥

2.

सादर है अधिकार तुम्हें तुम रूप-सुधा अविराम लुटाना।

तारक,हीरक या मणि-कांचन-मंडित जीवन पे इतराना।

यौवन की चिनगी दिखला कर प्रेम-हुताशन भी सुलगाना।

प्यास बुझे न नदी-जल से जब सागर के तट गागर लाना॥…



Continue

Added by Ravi Prakash on August 2, 2013 at 8:00am — 11 Comments

प्रेम के कवित्त - (रवि प्रकाश)

1.धार तू,मझधार तू,सफ़र तू ही,राह तू,

घाव तू,उपचार तू,तीर भी,शमशीर भी।

जाने कितने वेश है,दर्द कितने शेष हैं,

गा चुके दरवेश हैं,संत ,मुर्शिद,पीर भी।

ध्वंस किन्तु सृजन भी,भीड़ तू ही,विजन भी,

छंद है स्वच्छन्द किन्तु,गिरह भी,ज़ंजीर भी।

भाग्य से जिसको मिला,उसे भी रहता गिला,

पा तुझे बौरा गए,हाय,आलमगीर भी॥

 

 

2.डूब चले थे जिनमें,उनसे ही पार चले,

जिनमें थे हार चले,वो पल ही जीत बने।

कितने साँचों में ढले,सारे संकेत तुम्हारे,

कुछ ग़ज़लों…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 29, 2013 at 8:00am — 9 Comments

मन तक आना शेष रहा - (रवि प्रकाश)

मैंने बस धीरज माँगा था,तुमने ही अधिकार दिया;

कितने पत्थर रोज़ तराशे,फिर मुझको आकार दिया।

बादल,बरखा,बिजली,बूँदें,क्या कुछ मुझमें पाया था;

पथ-भूले को इक दिन तुमने,दिग्दर्शक बतलाया था।

लेकिन मेरे पथ पर चलना,श्रद्धा लाना शेष रहा।

धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

आशा को थकन नहीं होती,इच्छा को विश्राम कहाँ;

जब तक साँसों में उष्मा है,जीवन को आराम कहाँ।

कण-कण जमते हिमनद में भी,बाक़ी रहता ताप कहीं;

मनभावन आलिंगन में भी,छू जाता संताप…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 27, 2013 at 5:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

-एक दुधमुँहा प्रयास-

बहर -ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ

.

पाँव कीचड़ से सने हैं और मंज़िल दूर है।

शाम के साए घने हैं और मंज़िल दूर है॥



तुम मिलोगे फिर कहीं इस बात के इम्कान पे,

फास्ले सब रौंदने हैं और मंज़िल दूर है॥

कौन हो मुश्किलकुशा अब कौन चारागर बने,

घाव ख़ुद ही ढाँपने हैं और मंज़िल दूर है॥

कल बिछौना रात का सौगात भारी दे गया,

अब उजाले सामने हैं और मंज़िल दूर है॥

धड़कनें भी मापनी हैं थामनी कंदील भी,

रास्ते…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 24, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

प्यार और मनुहार - (रवि प्रकाश)

अधिकार भरी मादकता से,दृष्टिपात हुआ होगा;

मन की अविचल जलती लौ पर,मृदु आघात हुआ होगा।



साँसों की समरसता में भी,आह कहीं फूटी होगी;

सूरज के सब संतापों से,चन्द्रकिरण छूटी होगी।

विभावरी ने आते-जाते,कोई बात सुनी होगी;

सपनों ने तंतुवाय हो कर,नूतन सेज बुनी होगी।

कितने पल थम जाते होंगे,बंसीवट की छाँव तले;

मौन महावर पिसता होगा,आकुलता के पाँव तले।



सन्ध्या का दीप कहीं बढ़ कर,भोरों तक आया होगा;

मस्तक का चंदन अनायास,अलकों तक छाया होगा।…



Continue

Added by Ravi Prakash on July 23, 2013 at 12:00pm — 7 Comments

मुक्तक - (रवि प्रकाश)

वज़न-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ



1. नहीं शिकवा नज़ारों से अगर नज़रें फिसल जाएँ,

भले ख़ामोश आहों में सुहाने पल निकल जाएँ।

तेरी मग़रूर चौखट पे नहीं मंज़ूर झुक जाना,

हमेशा का अकेलापन भले मुझ को निगल जाए॥

.

2. तुम्हारे रूप की गागर न जाने कब ढुलक जाए,

चटख रंगीनियों में भी पुरानापन झलक जाए।

मगर मेरी मुहब्बत तो सदानीरा घटाएँ है,

वहीं अंकुर निकलते हैं जहाँ पानी छलक जाए॥

.

3. किसी जुम्बिश में धड़कन के अभी अहसास बाक़ी है,

अपरिचित आहटों में भी तेरा…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 20, 2013 at 7:00am — 15 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service