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मासूम कली (गीत)

पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ  

जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ

मासूम सी कली तू बगिया में खिली है 

थे कांटे वहाँ भी जिस घर में पली है 

चुन लूँ तेरे कांटे जीवन संवार लूँ

पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ

जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ



बचपन में तेरे माँ बाप यों सो गए 

खा गया था काल तुम थे रो…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 1:22pm — 8 Comments

दोहा कहे मुहावरा: खोल देखकर आँख --संजीव 'सलिल'







दोहा कहे मुहावरा:

खोल देखकर आँख

संजीव 'सलिल'

*





रवि-किरणें टेरें तुझे, देख खोलकर आँख.

आलस तज उठ जा 'सलिल', लग न जाए फिर आँख..

*







आँख मिलाकर आँख से, डाल आँख में आँख.

खुली आँख सपने दिखे, खुली रह गयी आँख..

*





आँख बंदकर आँख को, राह दिखाये आँख.

हाथ थामकर आँख का, गले लगाये आँख..

*



बाधा से टकरा पुलक, घूर मिलाकर आँख.…

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Added by sanjiv verma 'salil' on June 13, 2012 at 9:15am — 7 Comments

घोसले बनाते है बड़े अरमानो के साथ

अपने भावो को शब्दों में उतारना मुमकिन न था, एक कोशिश की है मुझे मेरी त्रुटियों से अवगत कराएँ ताकि भविष्य में उनको दोहराने की भूल न करूँ

आपका योगेश शिवहरे "यश"

 

जो घोसले  बनाते है बड़े अरमानो के साथ

ज़माने ने देखे बड़े रंज-ओ  गम के साथ…

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Added by yogesh shivhare on June 12, 2012 at 7:00pm — 10 Comments

= जीवन सन्दर्भ =

= जीवन सन्दर्भ =

खेत की मुंडेर पर चहकते पक्षियों की ढेर सारी बातें,

गेहूँ की बालियों के आँचल की मदमाती भीनी-भीनी सुगंध,

सर्दी की धूप का मेरी पीठ पर रखा दोस्ताना हाथ,

एक लय होकर काम करते हुए अनेक जीवन,

बैलों के गले की घण्टियों का राग,

यहाँ वहाँ उछलकूद करते बछड़े,

रंभाती गायें,

इन परिदृश्यों का स्वार्गिक…

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Added by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2012 at 5:02pm — 6 Comments

था कभी जो गाँव अपना शहर पुराना लगता है ( गीत )

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है

था कभी जो गाँव अपना शहर पुराना लगता है



मेड पर गिरते पड़ते छुप जाते थे खेतों में

नदी किनारे बनाते घरोंदे मिटाते थे रेतों में

बरसते पानी में छप छपाना अच्छा लगता है

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है



कूकती कोयल अमरिया आसमा की अरुणाई

तप्त दुपहरिया पेड़ तले सालन रोटी खाई

माँ के हाथों घूंघट ओट मुस्कराना अच्छा लगता है

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है



वो रहट की आवाजें वो गन्ने…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 5:00pm — 20 Comments

सुग्गे!!!..............(लघुकथा)

सुग्गे!!!

(लघुकथा)
-----------------------------------------------------------
रोज की तरह आज भी रमेश सायकल पर सुग्गों  के पिंज़रे लटका कर बेचने के लिये निकला.आज की धूप सुबह से ही चिलचिलाती सी थी.
दिनभर आवाज लगा-लगा कर रमेश का गला सूखा जा रहा था.पूरब की लाली धीरे-धीरे पश्चिम के आकाश को लाल करने लगी थी मगर एक भी सुग्गे की बिक्री का संयोग रमेश के भाग में नहीं आया.धूप से बेहाल,थक कर चूर, रमेश सुग्गों के पिंज़रों से भरी…
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Added by AVINASH S BAGDE on June 11, 2012 at 7:30pm — 8 Comments

अब दीप मुल्के इश्क में उन्माद चाहिए

रो मत अरे नादां नहीं ये आब चाहिए

दुनिया बदलने को दिलों में आग चाहिए



दहशत मिटे वहशत मिटे इस मुल्क से मेरे

बिस्मिल,भगत,अशफाक औ आज़ाद चाहिए



लड़ने बुराई से मिटाने गर्दिश-ए-वतन

चट्टान सा तन औ जिगर फौलाद चाहिए…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 11, 2012 at 5:13pm — 9 Comments

ठोकरें ज़माने की

ये सज़ा मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की

मिल रही हें बस मुझको ठोकरें ज़माने की

 

फैसला हे ये मेरा मैं तुम्हें भुला दूंगा

तुमको भी इजाज़त हे मुझको भूल जाने की

 

ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा

ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की

 

रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में

अब…

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Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on June 11, 2012 at 12:44pm — 14 Comments

बाबा जी ओये बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी

बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी ओए

पाकिस्तान बना समुन्दर चीन चलाये चप्पू जी

रामदेव का स्वदेशी अभियान बना रहा भारत महान

काला धन और भ्रष्टाचार देश की परम सुखी संतान

अन्ना को देश गांधी बोले हुंकार की उसके सिंहासन डोले

थे कभी अलग अलग दोनों अब अन्ना संग राम देव बोले

बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी



जनता में विश्वास जगा है जान गए किस किस ने ठगा है

राम देव को मिल गया ज्ञान क्या दगा है कौन सगा है

सोयी जनता चेत रही है बेईमानों को देख रही है…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 11:30am — 16 Comments

पता ही पूछ लेते आप भी मयखाने का

दिखा है आइने में अक्स जो अंजाने का

कोई किरदार था भूले हुए अफ़साने का



मुझे जिसने भुलाया चार दिन की चाहत कर

वही अब ढूंढता है इक बहाना आने का



शराबी मिल गया गुजरात की गलियों में गर

पता ही पूछ लेते आप भी मयखाने का



जरा सी बात पर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 11, 2012 at 10:19am — 4 Comments

पानी



बैठा प्रभु मेरे समक्ष तिलक लगे निज आस

चन्दन मैं कैसे घिसूँ नहीं जो पानी पास

सात दीप और सात समुन्दर

सुन्दर कृति जल थल नभ पर

सात सुरों से संगीत बजता

पंचम पे पा सप्तम नी सजता

पंचम से गीत जब सजता

सप्तम बिना कंठ नहीं रुचता

पंचम सप्तम जब मिल जाते

गीत मनोहर सुन्दर भाते

जीवन का सुन्दर आधार

पंचम सप्तम का युगल संसार

तत्व समझते मुनिवर विज्ञानी

श्रष्टि जीवन शून्य बिन पानी

जल बिन जीवन मीन बिन पानी

पानी जीवन पर्याय बना है…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 10:00am — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : खौफ़

ट्रेन तकरीबन आधी रात के समय स्टेशन पर पहुंची, राजीव एक हाथ में सूटकेस संभालते पत्नी निधि को साथ लेकर जल्दी से ट्रेन से उतरा, अमूमन चहल पहल वाले इस स्टेशन पर सन्नाटा पसरा था, वहां केवल तीन चार ऑटो रिक्शा वाले ही मौजूद थे किन्तु उनमे भी सवारी बैठाने की कोई चिल्ल पौं न थी | राजीव ने बारी बारी सभी से कृष्णा कालोनी चलने को कहा, लेकिन कोई जाने को तैयार ही नहीं हुआ, तो उसने पूछा,

"आखिर बात क्या हैं, क्यों नहीं जाना चाहते ?"

"शहर के हालत अच्छे नहीं है बाबूजी, आज कुछ असामाजिक तत्वों ने…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2012 at 9:37pm — 39 Comments

रूपसी संध्या

अरुण करुण रतनार गगन में 

कुछ चंचल कुछ शांत भाव में लीन

अद्वैत रागिनी अलापती ...

धुल धूसित आभा से कुछ थकी मंशा से 

मधुर-मधुर करुण ध्वनि की रागिनी ! 



यों डगमग हलचल सरिता की लहरों सी

उथल पुथल कर गिरती चलती 

असफल पथिक की करुण कथा 

शांत-शांत शून्य में झाँकती

रोती मुस्कराती रूपसी

हरित धरा के अधर…

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Added by Raj Tomar on June 10, 2012 at 8:16pm — 5 Comments

अब मुझे पता न बताओ मेरी मंजिलो का

अब मुझे पता न बताओ मेरी मंजिलो का

पूझे पता है की मुझे जाना किधर है

वही से आया हू वही जाऊंगा बेफिक्र रह

चाहो तो भाल पर पढ़ लो नक्सा इधर है

लूटे नहीं इस शहर में अमीर के घर…

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Added by yogesh shivhare on June 10, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

कोई शायर ग़ज़ल से मिल रहा जैसे

सदा मैंने सुनी उसने कहा जैसे

नहीं आती नज़र वो है खुदा जैसे



ग़मों में भी हसीं मुस्कान रखते हैं

कभी पानी न आँखों से बहा जैसे



उसे मैं देख कर खो ही गया मौला


कोई शायर ग़ज़ल से मिल रहा जैसे…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 10, 2012 at 4:46pm — 3 Comments

न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये

 

न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये

किस बात पे चर्चे हों जाएँ ,फिर कैसा फ़साना हो जाये  

कागज़ पे लिख लिख कर तुम  कोई सन्देशा न भेजो 
कहीं नेकी के फितरत में नहीं दुश्मन ज़माना  हो…
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Added by Nilansh on June 10, 2012 at 10:55am — 8 Comments

डॉ. किरण बेदी जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ

आज 9 जून, 2012 को डॉ. किरण बेदी जी का जन्मदिन है. उन्होंने आज अपना जन्मदिन बंगला साहिब गुरूद्वारे में ही मनाया. उनके निमंत्रण पर आपका मित्र सुमित प्रताप सिंह पहुंचा सुनने बंगला साहिब में अरदास...

डॉ. किरण बेदी जी को उनके जन्मदिन पर दिल्ली गान की सी.डी. व ओउम् भेंट करते हुए आपके अपने सुमित प्रताप सिंह बोले तो…

Added by SUMIT PRATAP SINGH on June 9, 2012 at 6:59pm — 4 Comments

इंतज़ार........

इंतज़ार........

हम आज भी तेरे जाने के बाद, तेरे कदमो के निशाँ पे सर रख के सजदा करते हैं I

जो आँख तेरे आने पे झपकना भूल जाती थी, और एकटक निहारा करती थी तुम्हें

वही आँखें अब तेरे कदमों की छाप पर टिकी इंतज़ार करती हैं,

कि कब ये निशाँ वापस मेरी ओर लौट कर आयेंगे....

कान हर पल तेरी आहात को सुनने के लिए बेताब रहते हैं,

दिल-ओ-दिमाग हर वक़्त हर वक़्त तेरे ख़यालों में गुम सा रहता है,

दिल हर घडी…
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Added by Monika Jain on June 9, 2012 at 6:16pm — 2 Comments

चीन से रहना हमें चौकन्ना बाबाजी

रामदेव से मिल गये  अन्ना बाबाजी

राहुल की माँ रह गई भन्ना बाबाजी



काला धन यदि सचमुच वापिस आया तो…

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Added by Albela Khatri on June 9, 2012 at 12:00pm — 19 Comments

गीत: थिरक रही है... -- संजीव 'सलिल'

गीत:

थिरक रही है...

संजीव 'सलिल'

*

थिरक रही है,

मृदुल चाँदनी थिरक रही है...

*

बाधाओं की चट्टानों पर

शिलालेख अंकित प्रयास के.

नेह नर्मदा की धारा में,

लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.

धुआँधार का घन-गर्जन रव,

सुन-सुन रेवा सिहर रही है.

मृदुल चाँदनी थिरक रही है...

*

मौन मौलश्री ध्यान लगाये,

आदम से इन्सान बनेगा.

धरती पर रहकर जीते जी,

खुद अपना भगवान गढ़ेगा.

जिजीविषा सांसों की अप्रतिम

आस-हास बन बिखर रही है.

मृदुल चाँदनी…

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Added by sanjiv verma 'salil' on June 9, 2012 at 11:59am — 6 Comments

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