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वो पिता होता है : सरिता भाटिया

दो छोटी रचनाएँ पिता को समर्पित                      

                      1.

थाम ऊँगली जो चलाये वो पिता होता है

प्यार छुपा जो डांट से समझाए वो पिता होता है

कंधे बिठा सारी…

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Added by Sarita Bhatia on June 10, 2013 at 10:30am — 14 Comments

एक तल्ले पे था चाँद तो उन दिनों

पर कटे से पड़े तडफडाते रहे 

इश्क़ में उनके ऐसे फँसे दोस्तोँ !

 

रूबरू वो हुये चार पल के लिए 

जाम नैनों अधर के पिला दोस्तों !

 

मयकशी में मुकद्दर के मारे तभी 

लूट हँसते चले रोते हम दोस्तों…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 10, 2013 at 1:00am — 16 Comments

कुछ मुक्तक

गाँव बदले हुए हैं ,शहर हो गए ,

स्वार्थ की आत्म-केंद्रित नहर हो गए,

सूर्य में थीं यहीं नेह की रश्मियाँ

रिश्ते सब गर्म अब दोपहर हो गए !

*

आओ मिलकर मोड दें पन्ने किताब के ,

और ढूँढें फूल कुछ सूखे गुलाब के ,

सकपकाई उम्र ,वो बारिश सवालों की

खूबसूरत झूठ ,वो किस्से जवाब के !

*

दर्द को खूब लिखा ,

गहरे जा डूब लिखा ,

पाँव जब जलने लगे

पथ को हरी दूब लिखा !

*

रूप की एक नदी बहती है,,

खूबसूरत ए हंसी लगती है,

फूल,घाटी…

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Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 9, 2013 at 10:00pm — 8 Comments

HAPPY FATHERS DAY

पिता वह खूबसूरत नाम है उस इंसान का जो अपने बच्चों की सारी ख्वाहिशों को पूरी करने में दिन रात एक कर देते हैं, उनके लिए सारे कष्टों को झेलते हैं, उन्हें दो समय की भले ही न रोटी मिले पर कहीं न कहीं से वे अपने बच्चों का पेट भरने के लिए दो समय की रोटी का इंतजाम करते हैं। 

वे धूप, ठंडक, आंधी-तूफ़ान, बारिश, किसी की परवाह किये बगैर दिन-रात मेहनत करते हैं। वे भले ही कभी अच्छे स्कूल में न पढ़े हों पर अपने बच्चों को हमेशा…

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Added by SAURABH SRIVASTAVA on June 9, 2013 at 4:00pm — 4 Comments

इंतजार

इंतजार 

करता हूँ इंतजार उसका 

कब वह आयेगी 

हाँ कब वह आयेगी 

सुबह से शाम तक 

रात से सुबह तक 

न सो  पाया पूरी रात 

उसके इंतजार में …

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Added by SAURABH SRIVASTAVA on June 9, 2013 at 3:31pm — 3 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
गंगा-दशा // --सौरभ

(छंद - मनहरण घनाक्षरी)



गोमुखी प्रवाह जानिये पवित्र संसृता  कि  भारतीय धर्म-कर्म  वारती बही सदा

दत्त-चित्त निष्ठ धार सत्य-शुद्ध वाहिनी कुकर्म तार पीढ़ियाँ उबारती रही सदा

पाप नाशिनी सदैव पाप तारती रही उछिष्ट औ’ अभक्ष्य किन्तु धारती गही सदा    …

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Added by Saurabh Pandey on June 8, 2013 at 8:30pm — 33 Comments

आधुनिक नेता( किरीट सवैया = भगण X ८)

ताकत झांकत लूटत पाटत,छीनत बीनत नोट फटा फट !

लोगन की परवाह नहीं अरु ,चाट रहे सब देश चटा चट!!

दौड़त भागत घूम रहे अरु, खाइ रहे सब कोष गटा गट !

बन्दर बांट करें फिर झूमत ,आपन लूट बढ़ाइ झटा झट !!



राम शिरोमणि पाठक"दीपक

मौलिक…

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Added by ram shiromani pathak on June 8, 2013 at 5:30pm — 21 Comments

मेरा प्यारा भारत

मेरा देश स्वर्ग से सुन्दर, जग में सबसे महान है |

वक्ष पर शोभें गंगा यमुना, प्रहरी हिमालय शान है |

जलधि हिन्द आ पाँव पखारे, सागर करें नित गान हैं |

हरदम रहे सुहाना मौसम, खेत की फसलें जान हैं |

सब मिलकर हर पर्व मनाते, भेद भाव का नाम नहीं |

साथ साथ रहते जनु भाई, मिलकर करते काम कहीं…

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Added by Shyam Narain Verma on June 8, 2013 at 3:30pm — 3 Comments

अक्स तेरा..//आबिद अली मंसूरी!

यह दिलकशी का आलम
यह ख़्यालोँ की अंजुमन,
हमसफर बन गयी हैँ जैसे
हिज़्र की तन्हाइयां..
हसरतोँ की आगोश मेँ
ली हैँ धड़कनोँ ने
फिर
अंगड़ाइयाँ चाहत की..
फूलोँ मेँ निहित खुश्बू की तरह
एक नयी सहर की आस लिए
आँखोँ मेँ उतर आया है जैसे
झिलमिल-झिलमिल
अक्स तेरा..!
>¤<>¤<>¤<>¤<>¤br /> (मौलिक व अप्रकाशित)
----->_आबिद अली मंसूरी

Added by Abid ali mansoori on June 8, 2013 at 3:15pm — 3 Comments

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

फाईलु / फाइलातुन / फाईलु / फाइलुन

वज्न : २२१, २१२२, २२१, २१२

नैनो के जानलेवा औजार से बचें,

करुणा दया ख़तम दिल में प्यार से बचें,



पत्थर से दोस्त वाकिफ बेशक से हों न हों,

है आइना फितरती दीदार से बचें,

आदत सियासती है धोखे से वार की,

तलवार से डरे ना सरकार से बचें,

गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों,

जीवन में खास ऐसे किरदार से बचें,

नफरत नहीं गरीबों के वास्ते सही,

यारों सदा दिमागी बीमार से…

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Added by अरुन 'अनन्त' on June 8, 2013 at 1:00pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक आशु गीत (जो फेसबुक पर उपजा गीतकार आदरणीय सतीश सक्सेना जी और मेरे संवादों के बीच)

सुबह दरवाजे पे देखा

ढेरों फूल, हैं बिखरे 

कहीं से, रात को तूफ़ान 

लेकर साथ आया था 

मेरी ही याद उन्हें आई ;कुछ श्रद्धा रही होगी 

दरख्तों ने दिए आशीष कोई मर्जी रही…

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Added by rajesh kumari on June 8, 2013 at 11:58am — 20 Comments

एक अच्छा इन्सान बनो।

कुछ भी बनने से पहले

एक अच्छा इन्सान बनो।

कुछ भी करने से पहले,

दूसरों का सम्मान करो।

समझो दूसरों की भावनाएँ,

न उनका अपमान करो।

मत दो किसी को दुःख,

सबको प्रेम समान करो।

जो तोड़ दे किसी हृदय को,

ऐसी उपेक्षा,न अपमान करो।

यदि कोई गहराई से चाहे तुम्हें,

तो उस प्रेम का सदा मान रखो।

खेल कर किसी के भावों से,

उस प्रेम का न अपमान करो।

ठुकरा कर  प्रेम किसी का,

न आहत आत्मसम्मान करो।

तुम्हारी उपेक्षा,आत्मग्लानि में

न…

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Added by Savitri Rathore on June 8, 2013 at 12:20am — 15 Comments

मकसद

आदरणीय प्रबंधन टीम एवं सभी प्रबुद्ध सदस्यों को मेरा नमस्कार , अभी कुछ दिनों से ही मैं ओ बी ओ से जुड़ा हूँ अभी ज्यादा नही समझ पाया हूँ ! ऐसे ही कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ जो हमारे समाज के पाक्षिक अखबार में प्रकाशित हो जाता है और ना होता है तो अपने बनाये ब्लॉग पर लिख देता हूँ !

ओ बी ओ सदस्य बनने बाद लगता है मेरे जैसे नौसिखीये को यहाँ बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकेगा !

आशा ही नहीं विश्वास है आप मेरी त्रुटियों को माफ करते हुए मेरा उचित मार्ग दर्शन करेंगे ।

मैं अपनी पहली रचना के रूप…

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Added by D P Mathur on June 7, 2013 at 9:00pm — 12 Comments

नवगीत // भावना तिवारी

व्याकरण में ही 
उलझ कर ,
रह गईं सब…
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Added by भावना तिवारी on June 7, 2013 at 7:46pm — 11 Comments

परिपक्वता और नादानीयाँ

धर्म-मजहब के नाम पर,

तुम लड़ सकते हो, मैं नहीं

अपने शब्दों की नुमाइश बेहतर,…

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Added by Sumit Naithani on June 7, 2013 at 3:54pm — 14 Comments

तेरे इन्तेज़ार का मौसम!

सजी हैँ ख़्वाब बनकर
जुगनुओँ की तरह
मासूम हसरतेँ दिल की
हिज़्र की पलकोँ पर...


यह टीसती हवायेँ
यह लम्होँ की तल्खियां
मचलने लगी है
हर तमन्ना
वक्त की आगोश मेँ..

मुन्तज़िर है आज भी दिल
किसी मख़्सूस सी
आहट के लिए..


यह मंज़र यह फ़िज़ायेँ
यह प्यार का मौसम
कितना है हसीँ
तेरे इन्तेज़ार का मौसम..!

*******************************

(मौलिक व अप्रकाशित)
___आबिद अली मंसूरी

Added by Abid ali mansoori on June 7, 2013 at 11:00am — 24 Comments

एक्वेरियम की मछलियाँ

कांच की दीवारों में
साँसों के स्पंदन
कसमसाती पूंछ
छटपटाते डैने
शो पीस सरीखा जीवन

रास न आयें इन्हें

थोपी हुई रंगीनियाँ

एक्वेरियम में कैद
सुन्दर देह वाली  
मछलियाँ

है नहीं तलछट से

छनती धूप

अब इनके लिए

अरसा हुआ

लहरों की

स्वर्णिम गोद में

 खेले हुए
 चट्टानों की ऒट से
आखेट लुकछिप कर किये
मूँगों के झुरमुट में मानों
कौंधती…
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Added by Vinita Shukla on June 7, 2013 at 9:30am — 28 Comments

पर्यावरण दिवस

इमारत का कद बढ़ता जाए 

पानी का स्तर घटता जाए 

हरियाली का दाव लगा है

चारों ओर ही सूखा पड़ा है

 …

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Added by Sarita Bhatia on June 6, 2013 at 11:00pm — 13 Comments

अतुकान्त/ अपना गांव

आज

बहुत दिनों बाद आया गांव

अपना गांव

जहां हुआ करते थे

महुआ, कटहल, आम

एक बाग भी।

खेलते थे गुल्ली डंडा

कभी कभी क्रिकेट भी।

अब वहां बाग नहीं…

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Added by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 10:32pm — 40 Comments

दान का माहात्म्य

दान का माहात्म्य

मैं बचपन से अपनी माँ के साथ प्रवचन संकीर्तन में जाती थी . वहाँ दान की महिमा खूब गहराई से

समझायी जाती थी . मुझे ईश्वर भक्तों पर अपार श्रद्धा होती . बड़ी होकर जब मैं कमाने योग्य हुई तब अपने वेतन के पैसों का एक हिस्सा दान कर देती . बहुत जल्द ही मैं मशहूर हो गयी . आये दिन भक्तों का मेला मेरे घर में लगा रहता . उनकी सेवा कर मैं धन्य हो जाती .

मेरे गाँव में ISKCON ने भव्य मंदिर के साथ एक आश्रम बनाया . उसमें बहुत सारे भक्त रहने लगे . वहाँ दान की प्रक्रिया खूब चलती .…

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Added by coontee mukerji on June 6, 2013 at 10:05pm — 8 Comments

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