For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

   

कल ही की तो बात है

अध्यापन शुरू किया था मैंने

आज आया है एक नया सवेरा

विदाई समारोह होना है मेरा

समय चक्र घूमता ही रहता

हमें इसका आभास न होता

पर सच्चाई यही थी

सहकर्मियों व कर्मस्थली से

होनी मेरी आज विदाई थी

जीवन में आनेवाली शून्यता का

अहसास हो रहा था

इस पीड़ा को व्यक्त करना  

शब्दों में असंभव था

खैर ..विदाई तो होनी थी हो गई

मेरी कर्मस्थली मुझसे जुदा हो गई

अब क्या करूँ ..कैसे करूँ  

जीवन बोझ सा न लगे

आँखें बंद कर

भविष्य के बारे में सोचने लगी

बच्चे अपनी गृहस्थी में व्यस्त

पति अपने व्यवसाय में

सोचा भगवान ने मौका दिया है

क्यूँ ना कर लूँ वो इच्छाएँ पूरी

जो न कर पाई व्यस्त आलम में

करूँ ज़रूरतमंदों की सेवा निष्काम

इसी से होगी मेरी शून्यता कम

खुद को तैयार कर

चली करने इस कार्य का विस्तृत दायरा

खालीपन, रिक्तता, शून्यता, अवसाद

जीवन से डरकर भागने लगे

मन प्रफुल्लित रहने लगा

होंठ गुनगुनाने लगे

 

 

विजयाश्री

15.04.2013

 

( मौलिक व अप्रकाशित )  

 

Views: 606

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijayashree on June 16, 2013 at 7:33pm

आभार मीना पाठकजी

Comment by Meena Pathak on June 15, 2013 at 6:49pm

चली करने इस कार्य का विस्तृत दायरा

खालीपन, रिक्तता, शून्यता, अवसाद

जीवन से डरकर भागने लगे

मन प्रफुल्लित रहने लगा

होंठ गुनगुनाने लगे.................... बहुत - बहुत सुन्दर .. बधाई आप को 

Comment by vijayashree on June 15, 2013 at 5:44pm

हार्दिक आभार

 

जवाहर लाल सिंहजी

शालिनी रस्तोगीजी  

Comment by shalini rastogi on June 14, 2013 at 10:40pm

सही मायने में यह जीवन की नई शुरुआत है .. बहुत बहुत शुभकामनाएँ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 14, 2013 at 4:20pm

बहुत ही सुंदर भाव! आज के अवकाशप्राप्त लोगों के लिए सुंदर सन्देश!

Comment by vijayashree on June 14, 2013 at 11:30am

हार्दिक आभार ......

 

डॉ आशुतोष वाजपईजी

कुन्ती मुकर्जी जी

प्रज्ञा श्रीवास्तवजी

अमन कुमारजी

आबिद अली मंसूरीजी

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 14, 2013 at 10:10am

सुन्दर अभिव्यक्ति विजयश्री जी

Comment by coontee mukerji on June 14, 2013 at 12:26am

वाह !  कितनी आशाएं है ..........इंसान  के मन के हारे हार है ...माने तो जीत है . वही इंसान जीवन में सफ़ल कहलाता है जो अंतिम सांस तक कर्मरत रहता है.सादर/

Comment by Pragya Srivastava on June 13, 2013 at 4:41pm

बधाई ...

Comment by aman kumar on June 13, 2013 at 3:33pm

शुभकामनाऐँ आपको!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
21 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service