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चांदनी फिर पिघलने लगी है

चांदनी फिर पिघलने लगी है

आँसुओं से धुली वो इबारत

गीत बनकर मचलने लगी है।

रोते-रोते हुए पस्त शिशु से,

भावना के विहग सो गये थे

सांझ की डाल सहमी हुई थी,

भोर के पुष्प चुप हो गये थे

फिर अचानक हुई कोई हलचल,

जैसे लहरा गया कोई आंचल

उनके दिल से उठी एक बदली

मेरी छत पे टहलने लगी है।

इक गजल पर तरह दी किसी ने,

भूला मुखड़ा पुनः गुनगुनाया

प्यार से साज की धूल झाड़ी,

मुद्दतों बाद फिर से उठाया

तार…

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Added by Sulabh Agnihotri on August 3, 2013 at 3:30pm — 25 Comments

नज़्म - सिगरेट सी ज़िन्दगी

उँगलियों के बीच फँसी

सिगरेट की तरह

कब से सुलग रही है ज़िन्दगी

सैकड़ों ख्वाब हैं,

कश-दर-कश, धुआँ बनकर

भीतर पहुँच रहे हैं..

ज्यादातर का तो

दम ही घुटने लगता हैं

और भाग जाते हैं लौटती साँसों के साथ ।

पर कुछेक हैं,

जो छूट गए हैं भीतर ही कहीं

पड़े हुए हैं चिपक कर, टिककर..

इन दिनों एक-एक कर मैं

उन्हीं ख़्वाबों को

मुकम्मल करने में लगा हूँ.



मिलूँगा फिर कभी

कि अभी ज़रा जल्दी में हूँ

मेरी सिगरेट ख़त्म होने को… Continue

Added by विवेक मिश्र on August 3, 2013 at 3:09pm — 26 Comments

आज हुआ मौसम भी इस तरह ख़राब ....

आज हुआ मौसम भी इस तरह ख़राब 
तुम लगो गुलाब से नजर हुयी शराब   
सांवले से रुख  पे है बनारसी समां 
शाम अवध की है तेरे हुस्न की किताब  
जुल्फ तेरी नागिन सी या लगें घटा 
अब हटा लो आप रुख पे जो पड़ा हिजाब 
जादू नजर का है हुआ या हो गया नशा  
बैठिये भी खोलिए ये इश्क की किताब
तेरी अदा है लग रही अजंता की गुफा 
कोई सवाल पूछिए, या दीजिये जवाब
जुल्फ मत बिखेरिये संभालिये जरा 
होश खो…
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Added by Ashish Srivastava on August 3, 2013 at 11:00am — 4 Comments

ग़ज़ल : कहानी तुम अमर कर दो

बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
१२२२, १२२२

दिवाना दिल जिगर कर दो,
इधर भी तो नज़र कर दो,

फलक से चाँद लाऊं मैं,
इशारा तुम अगर कर दो,

अकेले रास्ता मुश्किल,
सुहाना तुम सफ़र कर दो,

हजारों मैं ग़ज़ल कह दूँ,
सरल थोड़ी बहर कर दो,

पिला दो हाँथ से अपने,
सुधा बेशक जहर कर दो,

मुहब्बत मैं अजय कर दूँ,
कहानी तुम अमर कर दो...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on August 3, 2013 at 10:30am — 16 Comments

आलेख/ आधुनिकता बनाम पुश्तैनी

             इस आधुनिक और भागमभाग जिंदगी में यदि किसी चीज़ का अकाल पड़ा है तो वो समय है कोई किसी से बिना मतलब मिलना नहीं चाहता यदि आप किसी से मिलना चाहो तो उसके पास टाइम नही है। और मजबूरी वश या अनजाने में यदि मिलना भी पड़ जायें तो मात्र दिखावटी प्यार व चन्द रटी रटाई बातें करने के बाद मौका मिलते ही “आओ ना कभी ” कह कर बात खत्म करने की कोशिश की जाती है और सामने वाला भी तुरन्त आपकी मंशा समझ कर टाइम ही नही मिलता का नपा तुला जवाब देकर इतिश्री कर लेता है। लगता है जैसे एक…

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Added by D P Mathur on August 3, 2013 at 9:23am — 13 Comments

लघुकथा: थोड़ी सी प्यास

किसान हीरा की पत्नी घाट से जो मटका भर कर लाती थी, उसमें छोटा सा छेद हो गया था| उस पर हाथ रखते रखते भी पानी ज़मीन पर गिर ही जाता| जैसे तैसे वो पानी लेकर आती थी|

उसने अपने पति से इस बात की शिकायत की कि, अब इस मटके से पानी भरना संभव नहीं है, आप नया मटका ले आओ| हीरा थोड़ा व्यस्त था, जब तक वो नया मटका खरीदता, तब तक पुराने मटके का छेद काफी बढ़ गया और बहुत सारा पानी तो रास्ते में ही गिर जाता|

नया मटका आते ही पुराना मटका हीरा की पत्नी ने बाहर फैंक दिया, वहां काफी कीचड़ थी,…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 1:00am — 8 Comments

एक ग़ज़ल

उसके लिए कहना कितना आसान था,

सुखों के लिए बिक रहा मेरा ईमान था |

 

जो दुखों के पंख लगा के घर में आता है,

उसकी खुशामदीद का क्यों अरमान था |

 

तय की थीं मंज़िलें जिन्होंने दोस्ती की

वो कह गए कि उनका बड़ा एहसान था |

 

मैनें खोद के देखा इंसानियत की परतों को

ना तो वहां रूह थी और कहाँ इंसान था |

 

आओ छुपा दें हर ग़म को आखों में ही

सुख को सुखाना कहां इतना आसान था |

( मौलिक और अप्रकाशित )

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 12:00am — 10 Comments

तुम स्त्री हो ...

सावधान रहो

सतर्क रहो

किस किस से

कब कब

कहाँ कहाँ

हमेशा रहो

हरदम रहो

जागते हुए भी

सोते हुए भी

क्या कहा ?

ख्वाब देखती हो

किसने कहा था

बंद करो

कल्पना की कूची से

आसमान में रंग भरना

उड़ना चाहती हो ?

क़तर डालो पंखो को

अभी के अभी

ओफ्फ तुम मुस्कुराती हो

अरे तुम तो खिलखिलाती भी…

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Added by MAHIMA SHREE on August 2, 2013 at 10:30pm — 43 Comments

मत्तगयंद सवैये - (रवि प्रकाश)

प्रथम प्रयास

- - - - - - - - -

1. बंजर हो धरती कितनी पर ये मन उर्वर देश वही है।

शूल गड़े दुखते तन में नित कातरता पर लेश नहीं है।

कौन मुझे समझे,परखे,उलझा अपना चिर वेश वही है।

कुंठित हो कर भी मुझमें कुछ धार अभी तक शेष कहीं है॥

2.

सादर है अधिकार तुम्हें तुम रूप-सुधा अविराम लुटाना।

तारक,हीरक या मणि-कांचन-मंडित जीवन पे इतराना।

यौवन की चिनगी दिखला कर प्रेम-हुताशन भी सुलगाना।

प्यास बुझे न नदी-जल से जब सागर के तट गागर लाना॥…



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Added by Ravi Prakash on August 2, 2013 at 8:00am — 11 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रोज़ो-शब तेरा इंतज़ार बहुत

वज्न- 2122 1212 112

 

कब से बेकल है ये बहार बहुत

रोज़ो-शब तेरा इंतज़ार बहुत

 

इश्क कामिल न हो सका किसी का

आये दुन्या में जाँनिसार बहुत

 

रंग लायेगा आशिकी का जुनूँ   

सुर्ख है अब के रसनो-दार बहुत

 

आदमीयत से है गुरेज़ जिन्हें

अम्न गुज़रे है…

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Added by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2013 at 10:00pm — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
गीत : फूल चम्पा के सब खो गए

फूल चम्पा के सब खो गए

जब से हम शह्र के हो गए

रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही

दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही

रतजगों की फसल

काटने के लिए

बीज बेचैनी के बो गए

प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी

ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी

आयेगा एक दिन

जब सुनेंगे यही

लीक पर्चे सभी हो गए

मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब 

गुलमोहर के तले है न स्कूल अब

अब न अठखेलियाँ

चम्पई उंगलियाँ

स्वप्न आये न फिर जो…

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Added by Rana Pratap Singh on August 1, 2013 at 9:23pm — 36 Comments

बेदर्द मौसम में

तुम्हें रोने की आज़ादी

तुम्हें मिल जाएंगे कंधे

तुम्हें घुट-घुट के जीने का

मुद्दत से तजुर्बा है



तुम्हें खामोश रहकर

बात करना अच्छा आता है

गमों का बोझ आ जाए तो

तुम गाते-गुनगुनाते हो

तुम्हारे गीत सुनकर वो

हिलाते सिर देते दाद...

इन्ही आदत के चलते ये

ज़माना बस तुम्हारा है

कि तुम जी लोगे इसी तरह

ऎसे बेदर्द मौसम में

ऎसे बेशर्म लोगों में.....



इसी तरह की मिट्टी से

बने लोगों की खासखास…

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Added by anwar suhail on August 1, 2013 at 9:00pm — 9 Comments

पावस के कुछ दोहे-

पावस के कुछ दोहे-

तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ

सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.

मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार

तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.

सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह

फागुन फागुन…

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Added by राजेश शर्मा on August 1, 2013 at 9:00pm — 16 Comments

पीड़ा

प्रिय ! कुछ अव्यक्त पीड़ा

तुम समझ पाते

यदि तुमसे कह दूँ

ये मेरा प्रेम न होगा

अन्तर्मन कर रहा यह

सस्वर करुण पुकार

तुम से छिपा कर

कुछ जख्म सी लिए हैं

कुछ अभी भी बाकी है

स्नेह मरहम रख देते

उन जख्मों पर

सपनों को सँजो लेते

मिल कर बुने थे जो

बनाने को नवनीड़

सुनीड़ दुर्लभ सा

मांग लूँ तुमसे

ये मेरा प्रेम न होगा

प्रिय ! कुछ अव्यकत पीड़ा ......... अन्नपूर्णा बाजपेई

 

मौलिक…

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Added by annapurna bajpai on August 1, 2013 at 7:18pm — 10 Comments

दुनिया में तुम सुन्दरतम हो

मेरे मन का तुम आकर्षण हो

इस ह्रदय का तुम स्पंदन हो

तुम कुमकुम हो तुम चन्दन हो

तुम ताजमहल से सुन्दर हो

 

बस तुम ही मेरी प्रियतम हो

दुनिया में तुम सुन्दरतम हो

 

तुम ही हो मेरा प्रेम राग

तुम ही हो मेरी प्रेम आग

मै भ्रमर बना तुम हो पराग

तुम मन मंदिर का हो चिराग

 

बस तुम ही मेरी प्रियतम हो

दुनिया में तुम सुन्दरतम हो

 

तुम ध्येय मेरे जीवन का हो

तुम ध्यान मेरे प्रतिपल का…

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Added by Aditya Kumar on August 1, 2013 at 6:43pm — 5 Comments

जब जब नये फूल आते |

आती है जब ग़म की आँधी  , डूबता खुशी का किनारा | 
मंजिल पाने की चाहत में , कोई जीता या हारा |
कुछ सोचें कुछ हो जाता है , मारा जाता है बेचारा |
हार जीत के लालच  में  ही , बस…
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Added by Shyam Narain Verma on August 1, 2013 at 2:26pm — 9 Comments

मन में भरे मिठास (दोहे)

धन की खटिया छोड़ दे, मोह नहीं रख पास

तन मन चंगा रख सके, मन में भरे मिठास |

 

समय मौत ग्राहक कभी, आ टपके अनजान

इन्तजार करना नहीं, इनकी फिदरत जान |

  

मात पिता स्व यौवन का,सदा करे सम्मान, 

जाने पर फिर ना मिले,सहजे रखकर ध्यान | 

 

छोडो चिंता अतीत की, चिंतन में हो आज,

समय व्यर्थ गँवाय नहीं, झट निपटावे काज |

 

उत्तम संग संगीत का, संत संग हो बात,

दोस्त बने सह्रदय के, दुनिया को दे मात |

 

विद्या…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2013 at 1:30pm — 19 Comments

लघु कथा - झूठ

अजान सुन हामिद की नींद खुली, उसे याद आया कि उसके मालिक ने आज रात वध हेतु एक गाय लाने को कहा है. हामिद मालिक से पैसे ले बाजार से गाय खरीदकर आ रहा था. रास्ते में हामिद कभी गाय को पानी पिलाता तो कभी हरी घास खिलाता । गाय को बृक्ष की छाया में बांध खुद भी आराम करने लगा .थके होने के वजह से  उसकी आँख  लग गयी. अचानक आँख खुलने पर वह घबरा कर गाय ढूंढने लगा, तभी उसकी नजर मंदिर के अहाते में गाय पर पड़ी. वह गाय को…

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Added by shubhra sharma on August 1, 2013 at 11:30am — 25 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गज़ल :अरुण कुमार निगम

ये माना चाल में धीमा रहा हूँ

मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ ||

बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने

तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ ||

कभी बख्शी थी मेरी जान उसने

छुड़ाया शेर को,चूहा रहा हूँ ||

कुँये में शेर को फुसला के लाया

बचाई जान वो खरहा रहा हूँ ||

मेरे बचपन न फिर तू आ सकेगा

तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)

शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर…

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Added by अरुण कुमार निगम on August 1, 2013 at 8:48am — 12 Comments

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