दोहा पंचक. . . . शृंगार
बात हुई कुछ इस तरह, उनसे मेरी यार ।
सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार ।।
मौसम की मनुहार फिर, शीत हुई उद्दंड ।
मिलन ज्वाल के वेग में, ठिठुरन हुई प्रचंड ।
मौसम आया शीत का, मचल उठे जज्बात ।
कैसे बीती क्या कहें, मदन वेग की रात ।।
स्पर्शों की आँधियाँ, उस पर शीत अलाव ।
काबू में कैसे रहे, मौन मिलन का भाव ।।
आँखों -आँखों में हुए, मधुर मिलन संवाद ।
संवादों के फिर किए , अधरों ने अनुवाद ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 16, 2025 at 7:43pm — No Comments
पहले देवता फुसफुसाते थे
उनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थे
वहाँ से रिसकर कभी मिट्टी में
कभी चूल्हे की आँच में, कभी पीपल की छाँव में
और कभी किसी अजनबी के…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 14, 2025 at 9:11pm — No Comments
कर तरक्की जो सभा में बोलता है
बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।।
*
देवता जिस को बनाया आदमी ने
आदमी की सोच ओछी सोचता है।।
*
हैं लगाते पार झोंके नाव जिसकी
है हवा विपरीत जग में बोलता है।।
*
जान पायेगा कहाँ से देवता को
आदमी क्या आदमी को जानता है।।
*
एक हम हैं कह रहे हैं प्यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 11, 2025 at 1:03pm — 1 Comment
दोहा दशम्. . . . निर्वाण
कौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ ।
अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।
तन में चलती साँस का, मत करना विश्वास ।
साँसें तन की जिंदगी, तन साँसों का दास ।।
साँसों की यह डुगडुगी, बजती है दिन-रात ।
क्या जाने कब नाद यह, दे जीवन को मात ।।
मौन देह से सूक्ष्म का, जब होता निर्वाण ।
अनुत्तरित है आज तक , कहाँ गए वह प्राण ।।
तोड़ देह प्राचीर को, सूक्ष्म चला उस पार ।
मौन देह के साथ तो, बस काँधे थे चार…
Added by Sushil Sarna on November 5, 2025 at 9:00pm — No Comments
२१२२/२१२२/२१२
****
तीर्थ जाना हो गया है सैर जब
भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१।
*
देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला
आदमी का आदमी से बैर जब।२।
*
दुश्मनो की क्या जरूरत है भला
रक्त के रिश्ते हुए हैं गैर जब।३।
*
तन विवश है मन विवश है आज यूँ
क्या करें हम मनचले हों पैर जब।४।
*
सोच लो कैसा समय तब सामने
मौत मागे जिन्दगी की खैर जब।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2025 at 10:32pm — No Comments
२१२२ २१२२ २१२२
जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते
कौन क्या कहता नहीं अब कान देते
आपके निर्देश हैं चर्या हमारी
इस जिये को काश कुछ पहचान देते
जो न होते राह में पत्थर बताओ
क्या कभी तुम दूब को सम्मान देते ?
बन गया जो बीच अपने हम निभा दें
क्यों खपाएँ सिर इसे उन्वान देते
दिल मिले थे, लाभ की संभावना भी,
अन्यथा हम क्यों परस्पर मान देते ?
जो थे किंकर्तव्यमूढों-से निरुत्तर
आज देखा तो मिले वे…
Added by Saurabh Pandey on November 2, 2025 at 7:30am — 5 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |