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Featured Blog Posts – September 2010 Archive (36)

नवगीत: अपना हर पल है हिन्दीमय... --संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'

*

*

अपना हर पल

है हिन्दीमय

एक दिवस

क्या खाक मनाएँ?



बोलें-लिखें

नित्य अंग्रेजी

जो वे

एक दिवस जय गाएँ...



*



निज भाषा को

कहते पिछडी.

पर भाषा

उन्नत बतलाते.



घरवाली से

आँख फेरकर

देख पडोसन को

ललचाते.



ऐसों की

जमात में बोलो,

हम कैसे

शामिल हो जाएँ?...



हिंदी है

दासों की बोली,

अंग्रेजी शासक

की… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 15, 2010 at 7:54am — 3 Comments

हिन्दी दिवस

आज हिन्दी दिवस है . लेकिन क्या हम सही मायने में हिन्दी को वो सम्मान दे पा रहे है जो चाहिये, आज हिन्दी केवल कहने मात्र की राष्ट्र भाषा रह गई है | आज के युग में जहाँ हर तरफ पश्चिमी सभ्यता का चलन है इसलिये हमे हिन्दी का अस्तित्व बचाने के लिए बहुत प्रयास करना होगा तभी हिन्दी की गरिमा बच सकेगी और हिन्दी सही मायने में भारत की राष्ट्र भाषा बन सकेगी |
जय हिंद |

Added by Pooja Singh on September 14, 2010 at 5:30pm — 2 Comments

::::: हिंदी दिवस (क्या इस दिवस का नाम लेने भर की भी हैसियत है हमारी ?) :::: ©

::::: हिंदी दिवस :::::

::::: (क्या इस दिवस का नाम लेने भर की भी हैसियत है हमारी ?) :::: ©



हिंदी हिंदी हिंदी !!!

► . . . आज सभी इस शब्द केपीछे पड़े हैं, जैसे शब्द न हुआ तरक्की पाने अथवा नाम कमाने का वायस हो गया l खुद के बच्चे अंग्रेजी स्कूल में चाहेंगे और शोर ऐसा कि बिना हिंदी के जान निकल जाने वाली है l अरे मेरे बंधु यह दोगलापन किसलिए ? स्वयं को धोखा किस प्रकार दे लेते हैं हम ? किसी से बात करते समय खुद को अगर ऊँचे… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 14, 2010 at 1:30pm — 9 Comments

दो शब्द हिन्दी दिवस पर...

दो शब्द हिन्दी दिवस पर: 14 सितम्बर की बधाई



हिम तुल्य शितल, न्याय तुल्य निश्चल, दीप तुल्य उज्जवल

तीन अक्षर का संगम हिन्दी! सुबोध भाव अति निर्मल



अभिन्न भेष-भुषा सस्ंकृति से मान बढ़े लोकप्रियता का

केवल नागरिकता नहीं उचित परिचय राष्ट्रीयता का

भारतीयता का पूर्णतः प्रतीक हिन्दी बोल विशिष्ट विमल



वर्णित भारतीय सविंधान में है प्रस्तावना का प्रालेख

स्वीकृति सम्पूर्ण भारत में हो हिन्दी नियमित उल्लेख

कारण कई उत्तमता का लिपि सहज सरस सरल



गगन… Continue

Added by Subodh kumar on September 14, 2010 at 7:00am — 4 Comments

तीन पद: संजीव 'सलिल'

तीन पद:

संजीव 'सलिल'

*

धर्म की, कर्म की भूमि है भारत,

नेह निबाहिबो हिरदै को भात है.

रंगी तिरंगी पताका मनोहर-

फर-फर अम्बर में फहरात है.

चाँदी सी चमचम रेवा है करधन,

शीश मुकुट नगराज सुहात है.

पाँव पखारे 'सलिल' रत्नाकर,

रवि, ससि, तारे, शोभा बढ़ात है..

*

नीम बिराजी हैं माता भवानी,

बंसी लै कान्हा कदम्ब की छैयां.

संकर बेल के पत्र बिराजे,

तुलसी में सालिगराम रमैया.

सदा सुहागन अँगना की सोभा-

चम्पा, चमेली, जुही में… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 13, 2010 at 11:33pm — 3 Comments

एक शायर की अभिलाषा !!

आग हूँ कुछ पल दहक जाने की मोहलत चाहता हूँ ,



दर्द को पीकर बहक जाने की मोहलत चाहता हूँ.





फिर बिखर जाऊँगा एक दिन पिछले मौसम की तरह ,



फूल हूँ कुछ पल महक जाने की मोहलत चाहता हूँ,





पहले कीलें ठोकिये पहनाईए काँटों का ताज ,



फिर मैं सूली पर लटक जाने की मोहलत चाहता हूँ.





आपकी इन बूढ़ी आँखों का सहारा बन सकूं ,



इसलिए बाबा शहर जाने की मोहलत चाहता हूँ.





कतरा कतरा चूसकर हर शख्स मीठा हो गया… Continue

Added by Abhinav Arun on September 12, 2010 at 10:38pm — 14 Comments

बन्द कमरे में जो मिली होगी

बन्द कमरे में जो मिली होगी
वो परेशान जिन्दगी होगी


यूं भी कतरा के गुजरने की वजह
हममें तुममें कहीं कमी होगी


हम सितम को वहम समझ बैठे
कौन सी चीज आदमी होगी


और भी कई निशान उभरे है
तेरी मंजिल यहीं कहीं होगी


ये है दस्तूरे आशनाई तपिश
उनकी आँखों में भी नमी होगी --

मेरे काव्य संग्रह ---कनक ---से -

Added by jagdishtapish on September 8, 2010 at 8:20am — 2 Comments

::::: मैं एक हर्फ़ हूँ ::::: Copyright ©

.

▬► Photography by : Jogendrs Singh ©



::::: मैं एक हर्फ़ हूँ ::::: Copyright © (मेरी नयी कविता)

जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 09 अगस्त 2010 )



मेरे मित्र आर.बी. की लिखी एक रचना जो नीचे ब्रैकेट्स में लिखी है से प्रेरित होकर मैंने अपनी रचना रची है..

आर.बी. की मूल रचना नीचे है आप देख सकते हैं ► ► ►

((hum dono jo harf hain....

hum ek roz mile....

ek lafz bana...

aur humne ek maane… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 5, 2010 at 10:00pm — 15 Comments

"मैं खुश हूँ"



आज...

मैं बहुत खुश हूँ...

पूरी दुनिया 'कल' थी...

पर 'मैं' आज हूँ..

क्योंकि आ ज मिला है मुझे...

एक नया खिलौना...

जिसे सब कह रहे थे 'तिरंगा'...



कल था ये सबके हाथों में...

चाहता था मैं भी...

इसे छूना...

लहराना...

फेहराना...

पर किसी ने ना दिया इसे हाथ लगाना...

जैसे ना हो 'हक' मुझे इन सबका...



कल था तरसता सिर्फ 'एक' को...

आज पाया है पड़ा 'अनेक' को...

कल…
Continue

Added by Julie on September 5, 2010 at 9:37pm — 4 Comments

ग़ज़ल - पैग़ाम-ए-मौहब्बत

नफरत के बदले प्यार को लुटा रहा हूँ मैं

सदियों पुरानी रस्म को ठुकरा रहा हूँ मैं



मेरी ज़ात को समा ले अपनी ही ज़ात में

है बचा खुचा जो चेहरा वो मिटा रहा हूँ मैं



गीतों में मेरे ख़ुशबू अब होने लगी दोबाला

अब इनमे तेरी रंगत को मिला रहा हूँ मैं



नगमे वफ़ा के शायद निकले तुम्हारी रूह से

यही सोच शेख साहिब तुझे पिला रहा हूँ मैं



तेरे मतब पे जाकर भी इन्सां बना रहूँगा

तेरी रिवायत की जड़ें हिलाने जा रहा हूँ मैं



देता रहा वाईज मुझे जो… Continue

Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on September 5, 2010 at 11:19am — 3 Comments

कोई दीवानी इंतजार में शहीदों की ----

अक्सर कई मित्र पूछ लेते हैं हंसी मजाक में --भाई ये ग़ज़ल क्या होती है --

ग़ज़ल कह के ही समझाओ हमें --ऐसी ही मुश्किल को आसान करने का छोटा सा प्रयास

किया है हमने ---उन्हीं मित्रों को सादर समर्पित है

--------------------------------------

शमां से आँख लड़ी हो तो ग़ज़ल होती है ---

या के फिर खूब चढ़ी हो तो ग़ज़ल होती है |



तुम किसी शोख हसीना को छेड़ कर देखो --

जेल जाने की घडी हो तो ग़ज़ल होती है --|



वो शाम से ही अगर ले रहे हों अंगड़ाई --

तमाम रात… Continue

Added by jagdishtapish on September 5, 2010 at 9:30am — 2 Comments

कृष्ण तुम हो कहाँ ? Dr Nutan Gairola

तुम कौन ?





तुम कौन जो धीमे सा एक गीत सुना देते हो ,



मन के अन्दर एक रौशन करता दीप जला देते हो|



बंद कर ली मैंने सुननी कानों से आवाजें ,



जब से सुन ली मैंने अपने दिल की ही आवाजें ||





तुम भूखे बच्चो के मुंह से निकली क्रंदन वेदना सी,



तुम जर्जर होते अपेक्षित माँ बापू के विस्मय सी |



तुम पेट की भूख की खातिर दौड़ते बेरोजगार युवा सी,



तुम खुद को स्थापित करती एक नारी की कोशिश सी,



तुम आतंकियों की भेदी… Continue

Added by Dr Nutan on September 4, 2010 at 4:00pm — 6 Comments

मुक्तिका: चुप रहो... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



चुप रहो...



संजीव 'सलिल'

*

महानगरों में हुआ नीलाम होरी चुप रहो.

गुम हुई कल रात थाने गयी छोरी चुप रहो..



टंग गया सूली पे ईमां मौन है इंसान हर.

बेईमानी ने अकड़ मूंछें मरोड़ी चुप रहो..



टोफियों की चाह में है बाँवरी चौपाल अब.

सिसकती कदमों तले अमिया-निम्बोरी चुप रहो..



सियासत की सड़क काली हो रही मजबूत है.

उखड़ती है डगर सेवा की निगोड़ी चुप रहो..



बचा रखना है अगर किस्सा-ए-बाबा भारती.

खड़कसिंह ले… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 4, 2010 at 8:30am — 5 Comments

पगली

------- पगली -----ऊपर वाले तेरी दुनिया कितनी अजब निराली है

कोई समेट नहीं पाता है किसी का दामन खाली है |



...एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ एक किस्मत की हेठी का

न ये किस्सा धन दौलत का न ये किस्सा रोटी का

साधारण से घर में जन्मी लाड़ प्यार में पली बढ़ी थी

अभी-अभी दहलीज पे आ के यौवन की वो खड़ी हुई थी

वो कालेज में पढ़ने जाती थी कुछ-कुछ सकुचाई सी

कुछ इठलाती कुछ बल खाती और कुछ-कुछ शरमाई सी

प्रेम जाल में फँस के एक दिन वो लड़की पामाल हो गई

लूट लिया सब कुछ… Continue

Added by jagdishtapish on September 1, 2010 at 11:51am — 4 Comments

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