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April 2011 Blog Posts (91)


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नवगीत-तुलसी के बिरवे ने

नवगीत

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तुलसी के बिरवे ने तेरी 
याद दिलाई है
सर्दी नहीं लगी थी फिर भी
खांसी आई है…
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Added by Rana Pratap Singh on April 13, 2011 at 10:00am — 13 Comments

देख गमों को मेरे वे मुस्कुराते बहुत हैं,





उनके गमले में खुशबू हैं बिखरे हुए ,

मेरे दामन हैं  काँटों से निखरे हुए ,

वो  मखमल की सेजों पे भी रोते हैं,

चेहरे धूल में हमारे रहते हैं निखरे हुए,



देख गमों को मेरे वे मुस्कुराते बहुत हैं,…

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Added by Rajeev Kumar Pandey on April 12, 2011 at 11:30pm — 1 Comment

मै नारी हूँ

मै नारी हूँ

अक्सर मै इसी सोच में खो जाती हूँ

क्या मुझे वो अधिकार मिला है ?

मै जिसकी अधिकारी हूँ ?

मै नारी हूँ



मनु कि  अर्धांगिनी मै

विष्णु- शिव कि संगिनी मै

मै अक्सर सोचा करती हूँ…

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Added by Rajeev Kumar Pandey on April 12, 2011 at 9:30pm — 6 Comments

बुलबुला...

          उठा था चमकता-दमकता....…

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Added by Julie on April 12, 2011 at 6:30pm — 4 Comments

जुड़वां -हाईकु

१ चोरों की दसों

उंगलियाँ घी में औ

माथे कढ़ाही....

 

जागते रहो....

शहर की पुलिस

सो गयी अब…

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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on April 11, 2011 at 11:00pm — 2 Comments

तो करें एक प्रयत्न हम ??

विलुप्त होते हैं जीव,

विलुप्त होता है जल...

विलुप्तप्रायः असंख्य प्राणी आजकल..
विलुप्त नहीं होते  क्यों अब भी…
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Added by Lata R.Ojha on April 11, 2011 at 4:30pm — 2 Comments

नाम और काम का संबंध

ये नाम और काम का संबंध बड़ा नाजुक है

बड़े हिसाब किताब के बाद ही इनके संबंध स्थापित करने चाहिए

अब खुद ही देख लो

भ्रष्टाचारियों को भी नेता कहना पड़ता है

और दलालों को पत्रकार

गुंडों को रक्षक, और जो पकड़ा गया बस वो ही भक्षक

 

किसी ने कहा नाम में क्या रक्खा है

अरे भाई ! नाम का ही तो सारा काम है

और जिसका नाम नहीं उसकी जिंदगी हराम है

 

पांच सो का जूता दो हज़ार में बिकता है नाम की…

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Added by Bhasker Agrawal on April 11, 2011 at 3:07pm — 6 Comments

माँ

दुनियां के सभी रिश्तों में प्रमुख रिश्ता हैं माँ

सचमुच में हर प्राणी के लिए फरिश्ता हैं माँ।।

 

घने कोहरे में गर मंजिल नजर न आयें।

बंद हो सब रास्ते तो इक रास्ता हैं माँ।।

 

दुनियां के इस खौफनाक बियाबां में दोस्तों।

वहशियों से काबिले-हिफाजत पिता हैं माँ



सगे-संबंधी मित्र-बंधु सभी सुख के साथी।

लेकिन दु़ख में साथ निभाने वाली सहभागिता हैं…

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Added by nemichandpuniyachandan on April 11, 2011 at 10:00am — 3 Comments

प्रिय ,अभी

प्रिय ,अभी

वक्त कैसे बीत रहा हैं अब आप को क्या बताऊँ हर तरफ तुम्हारी ही यादें है .हर तरफ हर जगह तुम्ही दिख रहे हो .. तुम्हारी ओ मुस्कुराहट.. तुम्हारी आहट बन कर सताती है.......तुम्हें देखने की जो ललक  तब थी.. ओ…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 10, 2011 at 2:30pm — No Comments

गजल

हर लम्हें में निहाँ हैं अक्स जिंदगी का।
ढूंढते रह जाओगे नक्श जिंदगी का ।।

 

रुठों को मनाने में लग जाते हैं जमाने।
ता-उम्र चलता रहता हैं रक्स जिंदगी का।।

 

रंजो-गम में जो साथ न छोडे।
सबसे बेहतर है वो शख्स जिंदगी का।।

 

राहें-मंजिल में जो कदम न लडखडाए।
हासिल कर ही लेते हैं वो लक्ष जिंदगी का।।

 

बनी पे लाखों निसार हो जाते है चंदन।
कोई नहीं होता बरअक्स जिंदगी का।।

 

नेमीचन्द पूनिया चंदन े  

Added by nemichandpuniyachandan on April 10, 2011 at 12:00pm — 1 Comment

सर जायेगा

नफरतों से जब कोई भर जायेगा 
काम कोई दहशती कर जायेगा 
 
इक गली,इक बाग़ कोई छोड़ दो
एक बच्चा खेल कर घर जायेगा
 
बागबाँ को क्यों खबर होती नहीं
फूल इक अहसास है मर जायेगा
 
रेत के सहरा को कब मालूम है
एक बादल तर-ब-तर कर जायेगा
 
अब यक़ीनन राह भूलेगा कोई
जब कोई यूँ कौम को…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 9, 2011 at 10:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !

ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !

अब तो कम खुद पे भरोसा या रब ,

ज़िंदगी  है  या  शगूफा  या   रब |

 

लड़की रस्सी मदारी सब तू है ,

खेल नज़रों का है धोखा या रब…

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Added by Abhinav Arun on April 9, 2011 at 3:30pm — 2 Comments

बन्दे में है दम !

बन्दे में है दम और हम भी खड़े हैं संग,

ये   ललकार  तुम  तक  पहुंची  है जब,

अब तो सांस लेंगे शुद्ध, नहीं चैन है अब,

बन्दे में है दम और हम भी खड़े हैं संग,



नेता पूंछे हे प्रभु  अब ये  कैसी  है  जंग,…

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Added by Rajeev Mishra on April 9, 2011 at 2:53pm — 3 Comments

जीत

जो हौसला बलंद है नफस नफस कमंद है

हमारी हर ख़ुशी हमारे हौसलों में बंद है



वो बेकसी अतीत है यही हमारी जीत है

हर एक देशवासी के लबों पे ये ही गीत है



ये एकता मिसाल है हमारा ये कमाल है

वतन के लब पे आज भी मगर वही सवाल है



है कौन दूध का धुला अभी तलक नहीं खुला

अभी तक इस पियाले में ज़हर का घूँट है घुला



भरें सभी तिजोरियां हैं कैसी कैसी चोरियां

सुला रहे हैं हम ज़मीर को सुना के लोरियां

 

उठो के वक़्त आ गया उठाओ हर क़दम…

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Added by Mumtaz Aziz Naza on April 9, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

साथ जुड़ते जाइये

साथ जुड़ते जाइये



यह जीत नहीं सिर्फ अन्ना की
यह जीत हमारी है
हम हैं दुश्मन उन सबके
जो भ्रष्टाचारी हैं
गाँधी बाबा आ गए फिर से
अब होगा इन्साफ
किरण बेदी साथ…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 9, 2011 at 11:30am — 2 Comments

'अन्ना की लहर

आज नहीं चेते तो आखिर कब जागेंगे..??
कब हम आखिर हक़ से ,अपना हक़ मांगेंगे..??
कबतक देखेंगे राह किसी नयी आंधी की..??
बाट जोहेंगे कबतक हम एक नए गाँधी की ?
आओ आगे हाथ मिलाके साथ हों खड़े..
अन्ना हमारी खातिर आमरण अनशन पे हैं अडे..
नीव हिला दें दुनिया को दिखा दें..
'एक स्वर एक बात ' से भ्रष्टाचार मिटा दें.


आइये इस 'अन्ना की लहर ' को सुनामी बना दें ..
देश से भ्रष्टाचार की गुलामी हटा दें..

Added by Lata R.Ojha on April 8, 2011 at 4:57pm — 4 Comments

उंगलियाँ सब पर उठातें रहें है हम............

उंगलियाँ सब पर उठातें रहें है हम,

आईनों से चेहरा छिपातें रहें है हम,



भ्रष्टाचार को हमनें जरुरत बना लिया,

मुल्क को अपनें ड़ुबातें रहें है हम,



रोंशनी से तिलमिलाती है आंखें हमारी,

बेईमानी से नज़रें मिलातें रहें है हम,



सियासत के बकरों का पेट नही भरता,

देश को चारे में खिलातें रहे है हम,



कितने ही बच्चें सोतें हैं यहाँ भूखें,

और सांपों को दुध पिलातें रहें हैं हम,



'अन्ना जी' का बहुत बहुत शुक्रियां,

वर्ना तो धोखा ही… Continue

Added by अमि तेष on April 8, 2011 at 2:00pm — 14 Comments

अब और नहीं

अब और नहीं

गाँधी बादी नेता प्यारे
इक ताकत है अन्ना हजारे
कोई रोक सकेगा कैसे
सत्यवादी साथ हैं सारे
भ्रष्टाचारी हिल जाएँगे
ईमानदार सब मिल जाएँगे
इतिहास बदल जायेगा हिन्द का
पाप के बादल छँट जायेंगे
गद्दारों को सज़ा मिलेगी
घोटालों पर रोक लगेगी
यकीन है दीपक "कुल्लुवी" को
पापियों की अब दाल ना गलेगी
तिहाड़ में कितनें आएँगे
बाकी जेल भी भर जाएँगे

दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
०८-०४-२०११.

Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 8, 2011 at 12:59pm — 2 Comments

ग़ज़ल : वो जो रुख़-ए-हवा समझते हैं

वो जो रुख़-ए-हवा समझते हैं
हम उन्हें धूल सा समझते हैं ॥१॥

चाँद रूठा ये कहके उसको हम
एक रोटी सदा समझते हैं ॥२॥

धूप भी तौल के बिकेगी अब
आप बाजार ना समझते हैं ॥३॥

तोड़ कर देख लें वो पत्थर से
जो हमें काँच का समझते हैं ॥४॥

जो बसें मंदिरों की नाली में
वो भी खुद को ख़ुदा समझते हैं ॥५॥

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2011 at 11:26pm — 3 Comments

क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए

"ओ भी क्या दिन थे..............
नानी की गोद में,
नाना के कंधे पे,
बेतहास मस्तियों में झूम रहे थे,
ना पढाई की सोच,
ना लाईफ के फंडे थे
ना कल की चिंता थी
ना भविष्य के सपने थे,
आज है कल की फिकर,
अधूरे है सपने,
मुड़कर जो देखा,
दूर बहुत है अपने,
मंजिल को ढूंढते ,
आज हम कहाँ खो गए,
क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए.....................,

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 7, 2011 at 2:00pm — 4 Comments

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