चमका जैसे कोई तारा ,
हलचल जैसे दूर किनारा ,
निर्मल शीतल गंगा की धारा ,
व्यग्र व्यथित बादल आवारा , बांधना चाहूं पल दो पल ,
तुम............................
दूर-दूर तक धँसी सघन ,
प्रफ्फुलित मन कंपित सी धड़कन ,
घना कोहरा शुन्य जतन ,
बस समय सहारा टूटे ना भ्रम ,
थामना चाहूं कोई हलचल ,
तुम................................
धूप उतरे कहीं पेड़ों से ,
सुकून जैसे बारिश की रिमझिम…
ContinueAdded by अशोक कत्याल "अश्क" on April 9, 2013 at 4:01pm — 3 Comments
मिट्टी के घरोंदे टूट गये
इंटो के महल बनाने मे
हम भूल गये संस्कृति अपनी
खुद को आधुनिक बनाने मे
पापा का प्यार न याद रहा
माँ की ममता भी भूल गये
ये बच्चे जो मशगुल हुए
खुद की पहचान बनाने में…
Added by Sonam Saini on April 9, 2013 at 3:30pm — 6 Comments
बीर छंद या आल्हा छंद
(यह छंद १६-१५ मात्रा के हिसाब से नियत होता है. यानि १६ मात्रा के बाद यति होती है. वीर छंद में विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।) होती है. )
एक प्रयास किया है मैंने गुरुजनों का अमूल्य सुझाव मिलेगा ऐसी अपेक्षा है !!
कूद पड़ी जब रण में माता ,दानव दल में हाहाकार !
एक हाथ में भाल लिए थी ,दूजे हाथ पकड़े तलवार !!
हाथ काटती पैर काटती ,कछु दुष्ट का लै सिर उपार !!
दौड़ा -दौड़ाकर तब माता…
Added by ram shiromani pathak on April 9, 2013 at 2:30pm — 11 Comments
मन की
विभिन्न चेष्टाओं के
फिसलने धरातल पर
असंख्य आवर्तन
धकेलती कुण्ठाओं के.
पूर्वजों से
अर्जित संस्कारों का क्षय
आत्मघाती विचारों का
प्रस्फुटन और लय.
क्षितिज अवसादों के,
दिखाते शिथिल आयामों की
सूनी डगर
टूटते स्वप्नों पर
पथराई नजर.
उभरती शंकाएं, विचलित श्रद्धाएं.
हाहाकार करते, प्रश्रय खोजते
थके हारे प्रयास
अनन्त शून्य की अनन्त यात्रा
भय से…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 9, 2013 at 2:30pm — 11 Comments
दुखी सभी हैं यहाँ अपने अपने सुख के लिए..
तेरे लिए तो न कोई भी रोने वाला है ..
हजारों लोग इधर से गुज़र गए फिर भी ...
ये सिलसिला न कभी बंद होने वाला है..…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on April 9, 2013 at 11:30am — 2 Comments
सवैया...किरीट एवं दुर्मिल !!! श्री हनुमान जी !!!
कोमल कोपल बीच लुकावत, लंक निसाचर रावन आवत।
काढि़ कृपान नशावत कोपत, क्रोध बढ़े हनुमान छिपावत।।1
तिनका रख ओट कहे बचना, सिय रावन को डपटाय घना।
नहि सोच विचार करे विधना, अबला हिय हाय बचे रहना।।2
रावन कॅाप गयो तन से मन, आंख झुकाय कियो भुइ राजन।
पीठ दिखाय गयो जब रावन, सीतहि त्रास भयो धुन दाहन।।3
मन दीन मलीन हरी रट री, हनुमान सुजान दिये मुदरी।
लइ मातु बुझाय रही दुखरी,जय राम…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 9, 2013 at 8:04am — 22 Comments
मेरे पास है --
वैचारिक विमर्श के विविध रूप में
काम आने वाला कबाड़ ,
प्रेम के अप्कर्श का पथ ,
पिछला बाकी सनसनाता डर ,
संजीदा होती साँसें ,
वही पुरानी मजिलें , और
प्रतिभावान काया,
मुझे --
करनी है, सार्थक पहल ,
नाक की लड़ाई के लिए ,
पूछने है सवाल, चुपके चुपके ,
लयात्मक खुश्बू के लिए ,
करने है खारिज़ व बेदखल ,
व्यवस्था विरोध के स्वर ,
चलना…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 9, 2013 at 7:30am — 7 Comments
नई कविता जो आज रात पुरानी हो गई
मैं चाहता था
ख़्वाब मखमली हों और उनमें परियां आएँ
सूरज की तरह किस्मत हर दिन चमकदार हो
और जब सलोना चाँद रास्ता भटक जाए,
तो तारों से राह पूछने में उसे शर्म न लगे
ये भी चाहा कि,
मैं पूरी शिद्दत से किसी को पुकारूं
और वो मुड कर मुझे देख कर मुस्कुराए
हम सुलझते सुलझते, थोडा सा फिर उलझ जाएँ
प्यार करते करते लड़ पड़ें
और…
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 3:11am — 10 Comments
ये आनन्द चीज क्या कैसा??
ये आनन्द चीज क्या कैसा क्या इसकी परिभाषा
भाये इसको कौन कहाँ पर कौन इसे है पाता
उलझन बेसब्री में मानव जो सुकून कुछ पाए
शान्ति अगर वो पा ले पल भर जी आनंद…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2013 at 12:11am — 12 Comments
इल्जाम |
किस्मत का खेल है अनोखा , कोई हँसता या रोता | |
जब कोई इल्जाम लगाये , किसी की नाव डूबोता | |
सदा नीचा दिखाये बैरी, कल बल छल हरदम ढोता | |
तड़पते देख खुश होता है , चैन की नींद न… |
Added by Shyam Narain Verma on April 8, 2013 at 5:00pm — 3 Comments
सुनो!!!
यु तनहा रहने का
शउर
सबको नही आता
तनहा होना अलग होता हैं
अकेले होने से
और
मैं तनहा हूँ
क्युकी तुम्हारी यादे
तुम्हारी कही /अनकही बाते
मुझे कमजोर करती हैं
लेकिन
तुम्हारी हस्ती
मेरे वजूद में एक हौसला सा बसती है
परन्तु
यह तन्हाई
सिर्फ मेरे हिस्से में ही नही आई हैं
तेरी हयात…
Added by Neelima Sharma Nivia on April 8, 2013 at 4:59pm — 13 Comments
Added by बसंत नेमा on April 8, 2013 at 1:30pm — 5 Comments
जीवन में सभी के साथ कोई न कोई कठिनाई होती है। कठिनाईयां तो जीवन का एक हिस्सा हैं। उनसे हार नहीं मानना चाहिए। कठिनाईयों से लड़कर ही उनसे पार पाया जा सकता है न कि उनके सामने घुटने टेक कर। धैर्य, हिम्मत एवं थोड़ी सी सूझ बूझ से मुश्किलों का हराया जा सकता है। किन्तु अक्सर हम समस्याओं से इतने भयभीत हो जाते हैं कि अपना धैर्य खो बैठते हैं। समस्याओं के प्रति हमारा नकारात्मक रवैया हमें अधिक तकलीफ पहुंचाता है।
इसके लिए आवश्यक है कि हम…
ContinueAdded by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 7, 2013 at 7:30pm — 9 Comments
(1)
विधि ने सुंदर गीत रचा,
अलि कुल स्वर सा यह गुंजन –
विश्व चराचर,
अविरत निर्झर,
श्वासों का यह स्पंदन.
कितना विस्मय,
कितना मधुमय,
कितना अनुपम,
मानव जीवन !
(2)
नक्षत्र खचित अम्बर में
किसके, उज्ज्वल स्नेह का प्रकाश ?
किसके इंगित पर मुस्काते हैं
यह धरती और यह आकाश ?
किसके सौरभ से
सुरभित यह मन,
अश्रु शिशिर,
नहीं क्रंदन !
किसके कर में क्रीड़ा करते
जीवन – मरण,
मरण – जीवन -
उसको अर्पित…
Added by sharadindu mukerji on April 7, 2013 at 4:30am — 17 Comments
करूणा के वशीभूत होकर
हृदय ने,पूछा मुझसे यह,
जीवन की निर्जन-बेला में,
तू बता,मुझे कौन है वह?
विशाल जीवन-सागर में
चलता है साथ तेरे जो,
क्या है कोई इस संसार में,
समझ सके विचार तेरे वो?
हृदय के इस प्रश्न ने,
डाल दिया मुझे सोच में।
फिर मन-ही-मन मैं लगी,
स्वयं से यह पूछने।
इस विशाल-संसार में होगा
कहीं पर ऐसा कोई क्या?
दुःख-दग्ध और करूणा से पूर्ण,
समझेगा मेरे हृदय की व्यथा।
सोचा है मन में जो कुछ मैंने,
संभव…
Added by Savitri Rathore on April 6, 2013 at 11:21pm — 18 Comments
गतांक...3 से आगे.---.
हां! मेरे ईष्ट देव मेरे साथ ही थे और मैंने जो कुछ देखा तथा अनुभव किया। अक्षरशः याद तो नही रहा फिर भी जितना प्रभु ने आदेश दिया स्पष्ट वाक्योे में लिख रहा हूं। मेरे दो शरीर थे। एक जो अस्पताल की शैया पर पड़ा था और दूसरा प्रभु नाम सुमिरन करता हुआ अज्ञात दिशा की ओर चला जा रहा था। राह में कितने दरवाजे पर दरवाजे खुलते जा रहे थे, गिनना मुश्किल था। हर इक द्वार लगता था कि अब यह आखिरी होगा किन्तु वही ढाक के दो पात। अंधेरे में दरवाजे के सिवाय कुछ और…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 6, 2013 at 12:41pm — 2 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 6, 2013 at 9:30am — 15 Comments
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 5, 2013 at 11:55pm — 21 Comments
इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब
वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है
ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है
फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या
बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है
मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे
मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है
बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की
पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है
अहम् झूठा नहीं करता गिला…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on April 5, 2013 at 11:08pm — 28 Comments
2122, 2122, 2122, 2
भूख से बिल्ली परेशां जो रही होगी
रोटियां बासी तभी तो खा गयी होगी
हौसले परिंदों के भी तो पस्त होते हैं
लाख उड़ने की कला उनमें रही होगी
कोयलों की कूक गायब…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on April 5, 2013 at 6:20pm — 10 Comments
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