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sarita panthi
  • Kanchanpur
  • Nepal
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kanchanpur nepal
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rishikesh
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finance officer at raxol indo-nepal border
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simple and optimistic

Sarita panthi's Blog

एक ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

प्यार करते हो हमें गर, साथ चलकर देखना।

जल रहे जिस आग में हम, तुम भी जलकर देखना।।



एक गठरी बांधकर, मैंने सवालों की रखी।

दिल में आ जाए कभी, दो एक हल कर देखना।।



रास्ता बाहर का दिखलायेंगे अपने, आपको।

है अगर साहस तो लहरों सा, मचलकर देखना।।



हूँ मैं सोना आग में जलना, ही मेरा काम है।

दर्द मेरा जान जाओगे, पिघलकर देखना।।



जागता है साथ मेरे, ये बिछौना रातभर।

चाहती हूँ एक दिन इसको, बदलकर देखना।।



सामने से… Continue

Posted on December 6, 2016 at 7:12pm — 3 Comments

एक गज़ल

122    122    122    122

बचा कर रखेगी दुआ हादसों से,

करो अबसे तौबा बुरी आदतों से|

कदम अब बढे है जमाने से आगे,

नहीं रोक सकते हमें पायलों से|

करार तमाचा जवाबी मिलेगा,

रहें अपने घर में कहो दुश्मनों से|

गरीबों को मारा खुले आसमाँ ने,

बरसती है आफत यहाँ बादलों से|

लो मुश्किल हुआ अब यहाँ सांस लेना,

हुए शेर मुजरिम गलत फैसलों से|

सजा बन रहे है मरासिम हमारे,

मिलेगी मुहब्बत…

Continue

Posted on September 22, 2016 at 8:00am — 4 Comments

गज़ल

श्रृंगार से ये तन तुम, यूँ और मत सजाओ,

छूते हुए लगे डर, फौलाद अब बनाओ।।



मेहंदी सुहाग चूड़ा, कमजोरी की निशानी,

हाथों में लो कलम तुम, तलवार सा चलाओ।।



मेहँदी भी है पिया की, चूड़ी भी है पिया की,

कुछ तो दिमाग खोलो, अपना भी कुछ बताओ।।



जीवन गया ये अपना, पानी के भाव बहकर,

अपना नहीं रुका पर, बेटी का तुम बचाओ।।



देते हो दूसरों को, उपदेश जिंदगी के,

कुछ तो करो शरम अब, खुद भी तो आजमाओ।।



छोडो मुहब्बतों को, जीना नहीं है आसां,

है… Continue

Posted on August 6, 2016 at 8:23am — 5 Comments

मोरे पिया

हाथों को मेरे तुम थाम लो

मेरा ही बस तुम नाम लो

कानों में अमृत रस घोलो

मैं सुनती रहूँ बस तुम बोलो|

 

केशों को मेरे तुम सहलाओ

बातों से मेरा जी बहलाओ

बादल तुम नेह के बरसाओ

नैनों में छिपा लूँ आ जाओ|

 

नज़रों से मुझे तुम पढ़ते रहो

नित स्वप्न सुरीले गढ़ते रहो

आगे ही आगे बढ़ते रहो

सोपान ह्रदय के चढ़ते रहो|

 

जीवन की मुझे तुम आस दो

नेह का अपने विश्वास दो

यौवन का मुझे मधुमास दो…

Continue

Posted on March 29, 2016 at 6:52pm — 5 Comments

Comment Wall (7 comments)

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At 7:55pm on April 26, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आ. sarita panthi जी, आपको ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें 

At 5:58pm on November 26, 2014, sarita panthi said…

आ.laxman dhami जी, आ.लक्ष्मण रामानुज लडीवाला  जी , आ. shree suneel जी, आMeena Pathak  जी, आ.Hari Prakash Dubey जी, आ.Shyam Narain Verma जी एवं आ Dr Ashutosh Mishra. जी आप सभी ने अपना अमूल्य समय मेरी कविता को दिया और सराहा उसके लिए ह्रदय से आभारी हु . मुझे साहित्य को विधाओं का कुछ भी ज्ञान नही है जो दिल में आता है लिख देती हूँ आशा है आगे भी आप सभी मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे |

At 8:25pm on November 14, 2014, sarita panthi said…

आ.डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी मैंने  ठूँठ का दर्द बयान करने की कोशिश की है उसकी उपयोगिता नकारने की नही . नया नया लेखन है कमी कमजोरी हो सकती है आपके विचारों के लिए आभार 

At 4:22pm on November 12, 2014, sarita panthi said…

आ.khursheed khairadi जी, आ Shyam Narain Verma .जी, आ. rajesh kumari  जी, आ.Neeraj Kumar 'Neer' जी,आ. योगराज प्रभाकर जी , आ लक्ष्मण रामानुज लडीवाला आप सभी आदरणीय गुनीजनो की छत्रछाया में मुझे भी बहुत कुछ सिखने को मिलेगा . और आप सभी का मार्ग दर्शन मिलता रहेगा यही मेरी अभिलाषा है .

At 10:17am on November 8, 2014, sarita panthi said…

आदरणीय सभी गुनीजनो को ह्रदय से आभार प्रकट करती हु. आशा है मुझे कुछ समय देंगे यहाँ व्यवस्थित होने के लिए .

At 5:43pm on November 6, 2014, sarita panthi said…

आ. डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपने मेरी रचना को आपका कीमती समय देकर जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए ह्रदय से आपका आभार .........

At 9:10am on November 6, 2014, sarita panthi said…

आ. जितेन्द्र पस्टारिया जी  एवं सभी गुनिजन मैं अभी अनाडी हु ये साईट चलाना भी नही जानती इसलिए आप सब से विनती है की मुझे दक्ष होने के लिए कुछ समय दीजियेगा और मुझे प्रोत्साहित करने हेतु आप सभी का ह्रदय से आभार ....................

 
 
 

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