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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १८ (Now Closed With 424 Replies)

परम आत्मीय स्वजन

 पिछले दिनों अदम गोंडवी हमारे मध्य नहीं रहे, वह अदम गोंडवी जिन्होंने अपनी कलम को हमेशा अंतिम पंक्ति के आदमी के लिए इस्तेमाल किया| सादगी की प्रतिमूर्ति अदम गोंडवी, दुष्यंत कुमार की परम्परा के प्रतिनिधि शायर थे| उन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से सामाजिक विषमताओं, समाज में शरीर पर मैल की तरह जम चुके भ्रष्टाचार और निचले तबके के इंसान की भावनाओं को स्वर दिया| "जबकि ठन्डे चूल्हे पर खाली पतीली है| बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है" यह पंक्तियाँ लिखने के लिए एक साहस की आवश्यकता होती है और जिस इंसान के अंदर यह साहस आ जाये वही बड़ा शायर कहलाता है|

अदम गोंडवी का असली नाम रामनाथ सिंह था| ग्राम आटा, जनपद गोंडा, उत्तर प्रदेश में सन १९४२ ई० को उनका जन्म हुआ था| उनके लिखे गजल संग्रह 'धरती की सतह पर'मुक्ति प्रकाशन व 'समय से मुठभेड़' के नाम से वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुए।

इस बार का तरही मुशायरा भी हम अदम गोंडवी को श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित करते हैं| प्रस्तुत मिसरा भी उन्ही की एक गज़ल का हिस्सा है और हमें इसी मिसरे पर कलम आजमाइश करनी है|

"जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से"

तकतीई: जि/१/से/२/सा/२/हिल/२    कि/१/हस/२/रत/२/हो   उ/१/तर/२/जा/२/ये/२     स/१/फी/२/ने/२/से/२

बह्र: बह्र हज़ज़ मुसम्मन सालिम

मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

रदीफ: से

काफिया: ईने (सफीने, महीने, करीने, जीने, सीने आदि)


विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें | 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ दिसंबर दिन बुधवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० दिसंबर दिन शुक्रवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १८ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती   है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ दिसंबर दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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        मंच संचालक
     राणा प्रताप सिंह 

     (सदस्य प्रबंधन)
ओपनबुक्स ऑनलाइन 

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Replies to This Discussion

 सौरभ जी, हौसला अफ़जाई के लिये शुक्रिया  सुरिन्दर रत्ती - मुंबई

तेरा भी दिल तड़पता है ज़ियारत के लिये बन्दे,
करोड़ों आँख वाला दे सदा सबको मदीने से
इस मुशायरे में एक बात मैंने नोट किया कि "मदीने' काफिया का प्रयोग अधिकतर शायरों ने किया है और सबने काफी अच्छी तरह से निभाया है , इसी कड़ी में आदरणीय रत्ती साहब ने भी बहुत ही बढ़िया और असरदार शेर प्रस्तुत किया है, शेष सभी अशआर भी ध्यान आकर्षित करते है, दाद कुबूल करें |

गणेश  जी, धन्यवाद, आपकी बात बिलकुल दुरुस्त है, लगभग सभी कवियों ने मदीने काफिये को चुना है, यही नहीं पीने, जीने, करीने,सफीने, सीने, ये काफिये भी अपनी शायरी में पिरोये, आपको मैं बताना चाहता हूँ इस बार मैंने यह ग़ज़ल २६/१२/२०११ को लिख कर रख दी थी, मैं यह चाहता था की सबसे पहले मैं आगाज़ करूंगा, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हुआ मुंबई में इन्टरनेट की लाइन डाउन हो गई और मैं ग़ज़ल पोस्ट नहीं कर पाया, ख़ैर आप जैसे पारखी लोगो की नज़र है सब पर और ओबो प्रबंधन टीम पूरी तरह से समर्पित है सेवा के लिये, एक बार फिर से शुक्रिया, सुरिन्दर रत्ती - मुंबई 

तेरा भी दिल तड़पता है ज़ियारत के लिये बन्दे,

करोड़ों आँख वाला दे सदा सबको मदीने से

वाह वाह वाह रत्ती साहब ! बहुत खूब!! इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें !!!

सुरिंदर साहब गज़ल के रूप में अच्छा प्रयास है ...बहुत ही गहरे भावों को संजोया है आपने |

वतन की नींव क़ायम है शहीदों के दफीने से,
ये फसलें लहलहानी हैं हमारे पर पसीने से।

ये मुमकिन है कभी हमको ज़मीं भी ना मयस्सर हों।
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाये सफीने से,

कई सालों तलक मिट्टी भी सिन्दूरी बना डाली,
लहू की धार बह निकली शहीदों के जो सीने से।

हसन खाँ मेव से लेकर भगत सिंह तक हज़ारों हैं,
शहीदे मुल्क की गिनती ज़रा करना करीने से।

अदा करके ये क़रज़ा दूध का पुरकैफ सोये हैं,
सुपुर्दे खाक ये शोहदा चमकते थे नगीने से।

हज़ारों ज़ुल्म सहकर भी हमारी क़ौम ज़िन्दा हैं,
न घबराये कभी हिंदी किसी ज़ालिम कमीने से।

bhai vaah khan sahab... krantikari shabdon aur bhaavon se labrez is prastuti par barambaar shubhkamnayen... bahut hi aala ... 

बहुत उम्दा अशार कहे हैं इमरान भाई...

अदा करके ये क़रज़ा दूध का पुरकैफ सोये हैं,
सुपुर्दे खाक ये शोहदा चमकते थे नगीने से। वाह! इनकी चमक तो अभी भी कायम है...

बढ़िया गजल... सादर बधाई स्वीकारें...

इस बार तो आपने एकदम से कमाल किया हुआ है, इमरान भाई ! 

मतले की गहरी कहन पर विशेष बधाई.

भाई इमरान, बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल....ख़ास कर ये शेर जिसमे आपने भूले बिसरे शहीदों को याद किया है...हसन खान मेव के बारे में आज की पीढ़ी रत्ती भर भी नहीं जानती...

//हसन खाँ मेव से लेकर भगत सिंह तक हज़ारों हैं,
  शहीदे मुल्क की गिनती ज़रा करना करीने से।//

हार्दिक बधाई प्रेषित करता हूँ.

इमरान भाई D & B टाइप ग़ज़ल पर दाद कुबूल कर लीजियेगा |

हज़ारों ज़ुल्म सहकर भी हमारी क़ौम ज़िन्दा हैं,
न घबराये कभी हिंदी किसी ज़ालिम कमीने से।
बहुत खूब इमरान भाई ! इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए तहे दिल से मुबारकबाद भाई !

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