For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-99

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 99वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे"

221     2121    1221            212

मफ़ऊलु      फाइलातु        मुफ़ाईलु       फाइलुन

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )

रदीफ़ :-कहें जिसे 
काफिया :- आ (अच्छा, प्यारा, अपना, तमाशा, दरिया, सहरा  आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 सितम्बर दिन गुरूवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितम्बर दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 सितम्बर दिन गुरूवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 10656

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय जावेद साहब ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत-बहुत शुक्रिया

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है आ. रवि जी,
बहुत बहुत बधाई 

आदरणीय निलेश जी बहुत-बहुत शुक्रिया गजल आपको पसंद आई मेहनत सफल हो गई ।बांग्लादेश कैसे गए हैं

आ. भाई रवि जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय रवि सर जी सादर अभिवादन बेहतरीन गजल लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई

इंसान का ही मिलना अज़ीज़ो मुहाल है,
ऐसा यहाँ है कौन फ़रिश्ता कहें जिसे।

रवि भाई कमाल है कमाल है 

आदरणीय रवि जी, उम्दा ग़ज़ल हुई है. दूसरा शेर खास तौर पर पसंद आया. हार्दिक बधाई. 

आदरणीय रवि भैया बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है दिली दाद हाजिर है 

देखें तो एक दम से शनासा कहें जिसे
दरपन हो दिल के हाल का चेहरा कहें जिसे

अन्धे की लाठी, आँख का तारा कहें जिसे
कलियुग में कोई बेटा है ? बेटा कहें जिसे

सोए हुओं को इल्म भी कैसे हो दोस्तो
सपनों का इन्द्र जाल है दुनिया कहें जिसे

जो ज़ुल्म की हर ईंट का पत्थर से दे जवाब
बस्ती में ऐसा कौन है ज़िन्दा कहें जिसे

नाज़िल हुई जो दिल पे फ़क़ीराना शख़्सियत
हमको मिला न कोई पराया कहें जिसे

मुझ पर निगाह डाल के था पूछना हुज़ूर
"ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे"

हर शख़्स की जहाँ में है कुछ अपनी अहमियत
आ'ला से कम नहीं है वो, अदना कहें जिसे

दौलत, शराब, हुस्न में माना की है ख़ुमार
ख़ुद-आगही वो चीज़ है नश्शा कहें जिसे

सजदा-ए-बुत की उसको ज़रूरत नहीं 'दिनेश'
परमात्मा का अस्ल में शैदा कहें जिसे

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय दिनेश कुमार जी आदाब,

                      बहुत ही अच्छी ग़ज़ल । हर शे'र लाजवाब । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

देखें तो एक दम से शनासा कहें जिसे
दरपन हो दिल के हाल का चेहरा कहें जिसे--मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है 'एक दम से 'भर्ती का जुमला है ।

अन्धे की लाठी, आँख का तारा कहें जिसे
कलियुग में कोई बेटा है ? बेटा कहें जिसे--इसका ऊला यूँ होना था:-

'माँ बाप अपनी आँख का तारा कहें जिसे'

सोए हुओं को इल्म भी कैसे हो दोस्तो
सपनों का इन्द्र जाल है दुनिया कहें जिसे--बहुत ख़ूब, अच्छा शैर हुआ ।

जो ज़ुल्म की हर ईंट का पत्थर से दे जवाब
बस्ती में ऐसा कौन है ज़िन्दा कहें जिसे--ये शैर भी अच्छा है ।

नाज़िल हुई जो दिल पे फ़क़ीराना शख़्सियत
हमको मिला न कोई पराया कहें जिसे--इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं, ऊला यूँ कर लें:-

'हासिल हुईं हैं जबसे फ़क़ीरों की सुहबतें'

मुझ पर निगाह डाल के था पूछना हुज़ूर
"ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे"--गिरह का मिसऱा यूँ कहें:-

'मुझ पर निगाह डाल के वो पूछने लगे'

हर शख़्स की जहाँ में है कुछ अपनी अहमियत
आ'ला से कम नहीं है वो, अदना कहें जिसे--इस शैर का सानी मिसरा यूँ साफ़ होगा:-

'आ"ला वो हो भी सकता है,अदना कहें जिसे'

दौलत, शराब, हुस्न में माना की है ख़ुमार
ख़ुद-आगही वो चीज़ है नश्शा कहें जिसे--इस शैर का सानी यूँ कर सकते हैं:-

'ख़ुद आगही भी ऐसी है, नश्शा कहें जिसे'

सजदा-ए-बुत की उसको ज़रूरत नहीं 'दिनेश'
परमात्मा का अस्ल में शैदा कहें जिसे--मक़्ते के ऊला में 'सजदा-ए-' नहीं "सजद-ए-"सहीह शब्द है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'सजदा बुतों को करता नहीं वो 'दिनेश जी'

बाक़ी शुभ शुभ ।

क़ीमती समय और बहुमूल्य राय/इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ, आदरणीय समर सर जी। आपके सभी सुझाव अति उत्तम है। दिली आभार

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार ।नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
36 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service