For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-26 (विषय:सबक़)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" पिछले महीने अपनी रजत जयंती मना चुकी हैI गत 25 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-26  
विषय: "सबक़"
अवधि : 30-05-2017 से 31-05-2017 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक हिंदी लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैं
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 12180

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय इतना अच्छा कथानक प्रस्तुति से हार गया . थोड़ा श्रम और होता तो यह उत्कृष्ट कथा  कही जाती . सादर .

 

 

आदरणीय अजय जी, कम शब्दों में अच्छी लघुकथा लिखी है आपने. यदि आप आदरणीय योगराज सर की बातों का अनुसरण करते हुए इसे परिमार्जित कर देंगे तो यह और भी अच्छी हो जाएगी. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

सुंदर मार्मिक कथा आद अजय गुप्ता जी
2 + 2 = 5
 
"मैं सच कह रहा हूँ पिता जी। आप इतने साल से कोमा में थे शायद इसलिए भूल गए। हम अंग्रेज़ों के नहीं, अंग्रेज़ हमारे ग़ुलाम थे।" हॉस्पिटल से कुछ ही दिन पहले लौटे रितेश को अभी भी अपने बेटे की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था।
 
अचानक उसे याद आया कि बेसमेंट में उसकी लाइब्रेरी है। वह दौड़कर नीचे गया। उसने सारी किताबें अलट-पलट कर देख डालीं मगर वो पुस्तकें वहाँ नहीं मिलीं जिनकी उसे तलाश थी। उसने अपनी पत्नी को आवाज़ लगायी, "यहाँ मेरी इतिहास की पुरानी किताबें रखी थीं, कहाँ गयीं?"
 
"वो तो बैंक में जमा हो गईं।" पत्नी ने सीढ़ी से नीचे उतरते हुए कहा। "उनकी जगह वहाँ पर नयी किताबें रखी हैं। तुम उन्हें देख सकते हो।" रितेश ने एक किताब उठायी और तेज़ी से पन्ने पलटने लगा। फिर दूसरी और तीसरी। और फिर बाकी की सब भी। सभी जगह एक ही बात, "सन् 1947 में ब्रिटेन को भारत से स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी।"
 
पर बचपन में तो उसने कुछ और ही पाठ पढ़ा था फिर यह कैसे हो सकता है? उसका सर चकराने लगा। वह ऊपर के कमरे में गया और इस तथ्य को कंप्यूटर पर खोजने लगा। मगर यहाँ भी वही जवाब। उसकी हैरानी का ठिकाना नहीं। यह कैसे सम्भव है? क्या कंप्यूटर में कोई वायरस आ गया है?
 
उसकी आँखें एक बार पुनः उस अख़बार पर टिक गईं जिसमें ब्रिटेन की स्वतंत्रता के विषय में पढ़कर उसने अपने बेटे से यह सवाल पूछा था। उसने टीवी ऑन किया। टीवी पर प्रधानमंत्री जी की लाइव स्पीच चल रही थी, "आज पन्द्रह अगस्त के दिन ही हमारे महान देश ने अपनी उदारता का परिचय देते हुए अंग्रेज़ों को आज़ादी प्रदान की थी।" उसने कई चैनल बदले पर सभी का यही हाल। उसे लगा कि वह पागल हो जाएगा।
 
वह आईने के सामने खड़ा हो गया। "कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं अभी भी कोमा में हूँ?" उसने कहा और दोनों हाथों से अपने बाल नोचने लगा। तभी उसे लगा कि उसका दम घुट जाएगा। वह तेजी से घर के बाहर निकला।
 
बाहर सड़क पर लोगों का हुजूम इकठ्ठा था। उनके पेट कमर से चिपके थे तो चेहरे पसीने से तर। लोगों के जिस्म में जगह-जगह घाव थे जहाँ से ख़ून रिस रहा था और वो ऐसे चल रहे थे जैसे ज़ॉम्बीज़। सभी के हाथों में देश का गौरवशाली झण्डा था जिसे वे गीत गाते हुए लहरा रहे थे, "अपना देश सबसे अच्छा! सबसे अच्छा अपना देश!!"
 
उसने ऊपर की तरफ देखा। पूरा आसमान अजीब से काले-काले बादलों से ढका हुआ था। उसने सूरज को देखने की भरपूर कोशिश की मगर उसका कहीं नामोनिशान नहीं था।
 
(मौलिक व अप्रकाशित)

जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ कि आम जनता का ध्यान असली मुद्दो से हटाकर सब्जबाग दिखलाने की सत्ता की कुत्सित चालों पर बहुत गहरा कटाक्ष कर रही है आपकी यह लघुकथा भाई महेंद्र कुमार जी. हालाकि इसे समझने के लिए मुझे रचना न केवल कई दफा पढनी पड़ी बल्कि भाई उस्मानी जी से सलाह भी लेनी पड़ी. कोमा से निकले पिता जी उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो तथ्यों की तोड़ मरोड़ से वाकिफ भी हैं और विचलित भी. बहरहाल, लघुकथा प्रदत्त विषय से पूर्णत: न्याय कर रही है जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है.        

आदरणीय योगराज सर, आपने कथा के मर्म को एकदम सही पकड़ा है. यह लघुकथा एक राजनैतिक व्यंग्य है. अपनी लघुकथा की जटिलता से उपजे कष्ट के लिए मैं दिल से क्षमाप्रार्थी हूँ. अपनी टिप्पणी से मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आपका हृदय से आभार. सादर.

आ. मनन कुमार जी आपकी रचना को ३-४ बार पढने के बाद भी मैं उसकी तह तक नहीं जा पाई कि आप कौनसा"सबक" बता रहे. माफि चाहूँगी. सहभागिता के लिए बधाई स्वीकार करे

आदरणीया नयना जी, जैसा कि मैंने आ. योगराज सर की टिप्पणी के प्रत्युत्तर में कहा है, यह लघुकथा एक राजनैतिक व्यंग्य है. चूंकि यह रचना कुछ जटिल बन गयी है इसलिए इस सन्दर्भ में मैं कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूँगा :

1. सबक़ के दो अर्थ होते हैं : पाठ और नसीहत. इस रचना में मैंने दोनों अर्थों का प्रयोग किया है. पहले का प्रत्यक्ष और दूसरे का अप्रत्यक्ष रूप में.

2. हम अंग्रेज़ों के नहीं, अंग्रेज़ हमारे ग़ुलाम थे। यानी एक सीखा हुआ सबक़ (पाठ) "हम अंग्रेज़ों के ग़ुलाम थे।" बदल गया. पर कैसे?

3. इस सच को जानने के लिए मुख्य पात्र लाइब्रेरी, इन्टरनेट और टीवी जैसे माध्यमों का सहारा लेता है किन्तु सभी जगह उसे पुराने तथ्य (भारत की ग़ुलामी) की जगह नया तथ्य ही (ब्रिटेन की ग़ुलामी) प्राप्त होता है. यह काम कोई बहुत शक्तिशाली संस्था ही कर सकती है. ऐसी संस्था राज्य ही हो सकती है. पर राज्य ऐसा करेगी क्यों?

4. जनता को असली मुद्दों से भटकाने के लिए. इसके लिए वह प्रोपोगैंडा का सहारा लेती है. किसी एक तथ्य को अपने मनचाहे तथ्य से प्रतिस्थापित करके जिससे वह अपने उद्देश्यों की पूर्ती कर सके. इस लघुकथा में प्रोपोगैंडा को महानता के इंजेक्शन (सभी के हाथों में देश का गौरवशाली झण्डा था जिसे वे गीत गाते हुए लहरा रहे थे, "अपना देश सबसे अच्छा! सबसे अच्छा अपना देश!!) द्वारा दर्शाने का प्रयास किया गया है. 

5. राजनैतिक प्रोपोगैंडा में जनता ही पिसती है.  उनके पेट कमर से चिपके थे तो चेहरे पसीने से तर। लोगों के जिस्म में जगह-जगह घाव थे जहाँ से ख़ून रिस रहा था.

6. मुझे लगता है कि ऐसे राज्य में जनता की तुलना ज़ॉम्बीज़ से की जानी चाहिए. ज़ॉम्बीज़ की दो विशेषताएं होती हैं : (1) वो लाश के सामान होते हैं और उनमें नाममात्र की चेतना होती है, (2) वो जीवित व्यक्ति को खाते हैं जिनमें चेतना होती है. यहाँ नाममात्र की चेतना "अज्ञानता" का और चेतना "ज्ञान" का प्रतीक है. ऐसी जनता राज्य की सत्ता का अनुसरण करती है और जो उसका अनुसरण नहीं करते उनका विरोध.

7. पूरा आसमान अजीब से काले-काले बादलों से ढका हुआ था। उसने सूरज को देखने की भरपूर कोशिश की मगर उसका कहीं नामोनिशान नहीं था। (काले-काले बादल = अज्ञान, सूरज = ज्ञान.)

8. इस पूरी लघुकथा के मर्म को एक सूत्र के रूप में दर्शाया जा सकता है, वही सूत्र (2 + 2 = 5) इसका शीर्षक भी है. यह शीर्षक कोई मौलिक नहीं है. इस संप्रत्यय का प्रयोग जॉर्ज ओरवेल ने अपनी पुस्तक "Nineteen Eighty-Four" में किया था. इसका उल्लेख उन्होंने अपने निबंध "Looking Back on the Spanish War" में भी किया है, इन शब्दों में : "If the Leader says of such and such an event, "It never happened" – well, it never happened. If he says that two and two are five – well, two and two are five.

इस सन्दर्भ में  "Nineteen Eighty-Four" का यह अंश भी उल्लेखनीय है : "...after all, how do we know that two and two make four? Or that the force of gravity works? Or that the past is unchangeable? If both the past and the external world exist only in the mind, and if the mind itself is controllable – what then?"

उपर्युक्त दोनों कथनों के परिप्रेक्ष्य में इसे, वो तो बैंक में जमा हो गईं, सहज जी समझा जा सकता है.

बस इसी बात को मैंने भारतीय सन्दर्भ में कहने की छोटी सी कोशिश की है. हालाँकि यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि इसका मूल विचार मुझे Nineteen Eighty-Four से नहीं प्राप्त हुआ है. पर चूंकि यह (2 + 2 = 5) कथा को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर रहा है इसलिए मैंने इसी को अपना शीर्षक चुना.

9. यदि हमने इन सब चीजों से नहीं सीखा तो जल्द ही दो और दो चार (भारत ग़ुलाम) नहीं बल्कि पाँच (ब्रिटेन ग़ुलाम) हो जाएँगे. इस लघुकथा का उद्देश्य इसी खतरे से आगाह करना था. यही इस कहानी का सबक़ (नसीहत) है जो अप्रत्यक्ष है.

सादर.

लघु कथा में इतनी जटाएं उसकी संप्रेषणीयता में बाधक हो जाती है , जैसा नयना जी ने कहा की बार पढ़कर भी वह कथा समूल सनझ नही पायीं  saadar . 

इस सन्दर्भ में मैंने आ. नयना जी की टिप्पणी में अपना पक्ष रख दिया है. आपका बहुत-बहुत आभार. सादर.

आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी से सहमत होते हुए यह कहना चाहता हूं कि मुझे आपकी यह प्रतीकामक रचना पढ़कर ऐसा भी लगा कि यह कहना चाहा है कि कुछ स्वार्थी लोग जनता/पाठकों को गुमराह करने के लिए मनमानी करते हुए ऐतिहासिक तथ्यों को इंटरनेट/सोशल मीडिया/किताबों में तोड़-मरोड़ कर या ग़लत अनुवाद कर नई पीढ़ी को बदली गई भड़काऊ जानकारी दे रहे हैं, जिसे 2+2=5 शीर्षक द्वारा सांकेतिक रूप में कहते हुए रचना में बाख़ूबी उभारा गया है प्रदत्त विषयांतर्गत। नई पीढ़ी को ग़लत सबक़, और पुरानी पीढ़ी सोती हुई/कौमा में रहती हुई होश में आने पर बदले हुए दस्तावेज़ों से रूबरू होने पर हतप्रभ रह जाती है। ग़रीबी और ग़रीब लोगों का शोषण होता है लेकिन उनके लिए किया कुछ नहीं जाता। उन्हें तो भीड़ में इकट्ठा करा कर झंडे पकड़ा कर उनसे नारे लगवाए जाते हैं, बस। चारों तरफ़ अंधकार है धोखाधड़ी का।

सादर हार्दिक बधाई आदरणीय महेन्द्र कुमार जी इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए।

मैं कितना सही समझ सका, कृपया बताइयेगा।
यह रचना हमें सबक़ दे रही है सतर्क,चौकन्ने रहने की, नई पीढ़ी को सत्य से वाक़िफ़ कराते हुए उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
18 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service