आदरणीय साथिओ,
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भाई उस्मानी जी, आनंद लेंगें तभी तो कहन में सादगी आएगी जोकि लघुकथा की आत्मा है. टेंशन में रहेंगे तो हमारी कही हुई बात लोगों के सर के ऊपर से निकल जाएगी.
आ० अनुज कुछ अनौपचारिक हो गया हूँ , मुझे भी गुदगुदी करना अच्चा लगता है .saadar
यही गुदगुदी तो माहौल में सकारात्मकता बनाए रखती है अग्रज श्री. पुराने आयोजन देखिए कितनी चुहलबाजी चला करती थी, जिससे माहौल हमेशा खुशनुमा बना रहता था.
सादर
वाह! क्या ग़ज़ब की लघुकथा प्रस्तुत की है आपने आदरणीय योगराज सर. बहुत ख़ूब. आपकी लघुकथाओं की जो एक बात मुझे सबसे अच्छी लगती है वह है सरल से सरल शब्दों में गूढ़ से गूढ़ बात को कह जाना. आपकी यह लघुकथा भी ऐसी ही है. दूसरी बात जो मुझे आपकी पसन्द आती है वो है मुख्य पात्रों का चयन. यहाँ भी आपने ऐसे पात्र लिए हैं जिनके नज़रिये से कही हुई कहानियाँ बहुत कम देखने को मिलती हैं. इन दोनों चीजों के लिए आप विशेष बधाई के पात्र हैं. शिक्षा और रोज़गार देश की रीढ़ के समान हैं. इनके महत्त्व को इस लघुकथा ने बहुत ख़ूबसूरती से उकेरा है. इस हेतु मेरी तरफ से दिल से बधाइयाँ स्वीकार कीजिए. सादर.
अगर मेरी रचना की सरलता आपको पसंद आई तो मेरा श्रम सार्थक हुआ. सरलता और सादगी से ही आपका सन्देश सही तरीके से प्रसारित हो सकता है, इसीलिए मैं भाषा पांडित्य और अनावश्यक प्रतीकात्मकता से दूरी बना कर रखता हूँ. रचना पसंद करने के लिए दिल से आपका आभारी हूँ भाई महेंद्र कुमार जी. वैसे इस लघुकथा के पीछे भी एक किस्सा है जो कभी फुर्सत में साझा करूंगा.
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी। लाज़वाब लघुकथा।आपकी लघुकथा पर टिप्पणी करना मेरे लिये अतिश्योक्ति होगी।यह कार्य मेरी क्षमता से बाहर है।यह प्रस्तुति हमारे लिये एक शैक्षणिक सत्र की तरह है।इससे सिर्फ़ सीखा जा सकता है।सादर।
हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जी.
बिलकुल सर, मैं सुनना चाहूँगा. सादर.
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