For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-104

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 104वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब

असरार-उल-हक़ मजाज़ "लखनवी" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"मुझ को ये भी न था मालूम किधर जाना था "

2122 1122 1122  22

फाइलातुन      फइलातुन       फइलातुन      फेलुन   

(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- जाना था  
काफिया :- अर (दर, डर, जिधर, उधर, मर, बिखर, संवर, निखर, असर,आदि)
विशेष: 

१. पहला रुक्न फाइलातुनको  फइलातुन अर्थात २१२२  को ११२२भी किया जा सकता है 

२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है| 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 फरवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 11392

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी, हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया

आदरणीया अंजलि जी, खूबसूरत, मुरस्सा ग़ज़ल हुुई है। सादर बधाई आपको

हर तरफ़ संग हैं दीवारें हैं तन्हाई है
ये कहाँ आ गया मैं मुझको तो घर जाना था

शानदार  गज़ल के लिए मुबारकबाद स्वीकारें अदरणीया अंजली जी ....

आद0 अजंलि गुप्ता जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

आदरणीय अंजलि गुप्ता जी बहुत ख़ूबसूरत उम्दा ग़ज़ल

 कौन कह सकता था उठकर मुझे जाने को 'सिफ़र' 
तेरी महफ़िल से मुझे ख़ुद ही मगर जाना था

मुबारकबाद सादर

मुह तरमा अंजलि साहिबा , अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

जा न पायी वो सियासत ही जिधर जाना था
वगर्ना देश  तो  कब  का  ये  सँवर जाना था।१।


जिनकी फितरत ही महज बात से डर जाना था
कब  भला  उनको  यहाँ  देश  पे  मर  जाना था।२।


सैकड़ो   साक्ष्य   थे   मौजूद   मगर  देते  क्यों
उसको फितरत से जो हर बार मुकर जाना था।३।


वो तो  आवाम  ने  ही  बाँध  रखा  है इसको
उनकी हरकत से तो ये देश बिखर जाना था।४।


खेत चुगने के फकत बाद बहस क्या कीजे
वक्त रहते ही पहल आप को कर जाना था।५।


बात करता भी  तो  कैसे मैं भला मंजिल की
"मुझ को ये भी न था मालूम किधर जाना था "।६।


भोर भी आती  अगर  फर्क उसे क्या यारो
साँझ को जिसने हमेशा ही सहर जाना था।७।


खेत फसलें भी उगाते तो भला तब किसको
छोड़ कर गाँव यहाँ  सब  को नगर जाना था।८।


जहमतें यार उठाता भी तो आइना क्योंकर
हर मुखौटा  जो  यहाँ  आप उतर जाना था।९।

मौलिक/अप्रकाशित

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है,लगता है जल्दी में कही गई है ।

'वगर्ना देश  तो  कब  का  ये  सँवर जाना था'

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है ।


'वो तो  आवाम  ने  ही  बाँध  रखा  है इसको'

इस मिसरे में सहीह शब्द "अवाम"121 है,मंच पर कई बार बता चुका हूँ ।

'खेत चुगने के फकत बाद बहस क्या कीजे '

इस मिसरे का शिल्प ठीक नहीं है ।

'भोर भी आती  अगर  फर्क उसे क्या यारो '

इस मिसरे के अंत में 'यारो' की जगह "पड़ता" कर लें ।

'जहमतें यार उठाता भी तो आइना क्योंकर '

ये मिसरा भी बह्र में नहीं है ।

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर सिरकत , स्नेह व मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार । इंगित कमियों को सुधारने का प्रयास किया है । पुनः मार्गदर्शन करने की कृपा करें । सादर...

**
जा न पायी ये सियासत ही जिधर जाना था
तब कहाँ देश को बातों से सँवर जाना था।।
**
वो तो जनता के ही कारण ये बचा है अब तक
**
व्यर्थ है यार बहस खेत के चुग जाने पर
**
जहमतें यार उठाता भी तो शीशा क्योंकर

' जा न पायी ये सियासत ही जिधर जाना था
तब कहाँ देश को बातों से सँवर जाना था।'

मतला यूँ कर सकते हैं:-

'जा नहीं पाई सियासत को जिधर जाना था

फिर कहाँ देश को बातों से सँवर जाना था'


'वो तो जनता के ही कारण ये बचा है अब तक'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'सिर्फ़ जनता के ही कारण ये बचा है अब तक'

बाक़ी बदलाव आपने ठीक किये हैं ।

आ. भाई समर जी, पुनः मार्गदर्शन के लिए आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी बहुत बहुत मुबारकबाद पेश करता हूँ 

ग़ज़ल के लिये सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
5 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service