For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अस्तित्व की शाखाओं पर बैठे

अनगिन घाव

जो वास्तव में भरे नहीं

समय को बहकाते रहे

पपड़ी के पीछे थे हरे

आए-गए रिसते रहे 


कोई बात, कोई गीत, कोई मीत

या केवल नाम किसी का

उन्हें छिल देता है, या

यूँ ही मनाने चला आता है..

मैं तो कभी रूठा नहीं था

जीने से

बस, आस जीने की टूटी थी,

चेहरे पर ठहरी उदासी गहरी

हर क्षण मातम हो

गुज़रे पल का जैसे

साँसें भी आईं रुकी-रुकी

छाँटती भीतरी कमरों में बातें

जो रीत गईं, पर बीतती नहीं

जाती साँसों में दबी-दबी

रुँध गई मुझको रंध्र-रध्र में ऐसे

सोय घाव, पपड़ी के पीछे जागे

कुछ रो दिए, कुछ रिस दिए

घाव वही जो संवलित था भीतर

और था समझने में कठिन

जाती साँसों को शनै-शनै

था घोट रहा 

ऐसी अपरिहार्य ऐंठन में

अपरिमित घाव समय के

कभी भरते भी कैसे ?

लाख चाह कर भी कोई

स्वयं को समेट कर, बहका कर

घाव समय के भूल सकता है कैसे ?

              ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1046

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 1, 2018 at 1:56pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी

Comment by Samar kabeer on July 22, 2018 at 2:13pm

जनाब नरेन्द्र सिंह चौहान साहिब आदाब,पहले भी आपसे निवेदन किया था,आज फिर से निवेदन करता हूँ कि इतनी छोटी(तीन शब्दों की)टिप्पणी ओबीओ मंच की परिपाटी नहीं है,ये सीखने सिखाने का मंच है, कृपया मंच की गरिमा का कुछ तो ख़याल करें ।

Comment by narendrasinh chauhan on July 22, 2018 at 12:41pm
खुब सुन्दर रचना...
Comment by Samar kabeer on July 22, 2018 at 11:28am

अशआर आपको पसंद आये लिखना सार्थक हुआ,बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय भाई विजय निकोर जी ।

Comment by vijay nikore on July 19, 2018 at 5:15pm

वाह समर भाई साहब , वाह ! एक से बढ़ कर एक ! 

//चाह कर भी निकल नहीं सकता

क़ैद ऐसा मैं तेरे दाव में हूँ//.............. कितनी सच्चाई कह दी आपने इन शब्दों में ! वाह।

Comment by vijay nikore on July 19, 2018 at 5:13pm

आदरणीय तस्दीक अहमद साहब, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by vijay nikore on July 19, 2018 at 5:11pm

आपसे मिली भावपूर्ण सराहना के लिए आभारी हूँ , आदरणीय सुशील जी

Comment by Samar kabeer on July 19, 2018 at 12:00pm

/हो सके तो पूरी गज़ल साझी करें, भाई समर जी।//

आपके आदेशानुसार चन्द अशआर पेश हैं :-

इसलिये इतने रख रखाव में हूँ

उम्र के आख़री  पड़ाव में हूँ

तू मुझे भूल ही नहीं सकता

मैं तेरे दिल के एक घाव में हूँ

मेरा अंजाम मुझ पे रोशन है

जानता हूँ कि फूटी नाव में हूँ

रात बिस्तर पे यूँ लगा मुझको

जैसे तपते हुए अलाव में हूँ

चाह कर भी निकल नहीं सकता

क़ैद ऐसा मैं तेरे दाव में हूँ

"समर कबीर"

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2018 at 10:08pm

जनाब विजय निकोर साहिब , अच्छी रचना हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

Comment by Sushil Sarna on July 17, 2018 at 5:34pm

वाह आदरणीय विजय निकोर जी वाह .. ऐसी श्रेष्ठ,गहन भावों की प्रस्तुति , मौन में वाचाल होने का अनुभव आपकी कलम से ही सम्भव है सर। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
9 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service