आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय अपराजिता जी, प्रदत्त विषय को सार्थकता से परिभाषित करने का सद्प्रयास प्रशंसनीय है। लघुकथा का प्रस्तुतिकरण व शिल्प बहुत प्रभावशाली है । खास तौर पर - कांच पर वाइपर तेजी से चल रहा था और मन उससे भी तेज....। , ब्राह्मणों का पेट मानो अंधा कुंआ था। ये छोटे छोटे परन्तु महत्वपूर्ण सूक्ष्म प्वांइटस लघुकथा की भाषा में सपाटपने से बचाते हुए कथ्य को प्रभावशली ढंग से प्रस्तुत करने में सहायी होते हैं। चंद्रेश भाई से सहमत होते हुए .... और पूरी उम्मीद थी कि...................... दुख में सांझाीदार रहीं थी । पंक्ित अनावश्यक लग रही है शायद सुख शब्द लघुकथा में लाने की वजह से इस पंक्ित को लिखा गया है । पर इस पंक्ित के बगैर भी लघुकथा विषय से रूपरूपेण न्याय कर रही है । हां लघुकथा का शीर्षक कमजोर रह गया । बहरहाल बधाई स्वीकारें । सादर
अपराजिता कथा के जरिये अंध विश्सावास जैसे सारगर्भित मुद्दे को उठाकर संदेशप्रद बातें कही है ।बधाई
किसी नेक कार्य को ही करना सच्चा सुख है, बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर| बहुत बहुत बधाई आपको
अपराजिता जी, अच्छी लघुकथा कही है. लघुकथा प्रदत्त विषय को परिभाषित कर रही है अत: बधाई स्वीकार करें.
इस लघुकथा का विषय कोई नया नहीं है. मैं बहुत बार निवेदन कर चुका हूँ कि लघुकथाकार को लघुकथा लिखने से पहले यह बात अपने ज़ेहन में रखनी चाहिए कि वह जो लिखने जा रहा है उसमें क्या कहना है, क्यों कहना है और कैसे कहना है. यहाँ "क्या" और "कैसे" की बात नहीं बल्कि "क्यों" की बात पुन: करना चाहूँगा कि कर्मकाण्ड करने वालों को सैकड़ों बार कटघरे में खड़ा किया जा चुका है. आस्था के नाम पर शोषण करने की घटनाएँ हम लोग "गोदान" के ज़माने से पढ़ते, सुनते और देखते आये हैं. तो आप बताएं कि आपकी लघुकथा में नया क्या है?
ब्राह्मण या अन्य जातिसूचक शब्द इस्तेमाल करते से गुरेज़ करना चाहिए. बात को इशारों में कहना या सभ्य ढंग से कहना एक लघुकथाकार का परम कर्तव्य है. पत्नी का भाई साला होता है यह सच है, लेकिन किसी से उसका परिचय करवाना हो "मेरा साला" कहने की बजाय "मुन्ने के मामा जी" कहना क्या सभ्य तरीका न होगा? मेरे ख्याल से यहाँ पण्डे शब्द ज़यादा मुफीद रहता, हालाकि पण्डे भी ब्राह्मण ही होते हैं लेकिन टेक्निकली यह शब्द कर्मकांड करने वालों के लिए प्रयोग होता है.
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