आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीय रवि भाई
लम्बी होने के बाद भी लघु कथायें रोचक है। दोनों कथाओं के लिए ह्रदय से बधाई ।
किन्तु वह सबसे बेखबर भागते-कूदते बच्चों के साथ बच्चा बन उनको लगातार उत्साहित किए जा रहा था ।"ग्राउंड के दूसरी ओर अपनी व्हील-चेयर पर बैठा अवी भी तालियां बजाकर अपने साथीओं का हौंसला बढ़ा रहा था।" ‘अवी के पापा सभी बच्चों का उत्साहवर्धन कर रहे थे और अरवी भी तालियाँ बजा रहा था | क्या हुआ जो उनका खुद का बेटा व्हील चेयर पर बैठा था | एक दिव्यांग अपने आप को विजेता के रूप में देखकर उत्साहित होता है और अन्य को भी उत्साहित करता है | अति सुंदर लघु कथा हुई है साहब !
दूसरी लघुकथा में महंगी धूप अर्थात गरीब को मकान में टेरेस/छत के आभाव में समझोतावादी दृष्टिकोण से सुंदर बनी है | बहुत बहुत बधाई
लम्बे अंतराल के बाद मंच पर आपकी लघुकथा को देख एक सुखद अनुभव हो रहा है | आपकी दोनों कथाये एक से बढ़कर एक हैं | पहली वाली कथा पढ़ते वक़्त ऐसा लगा जैसे खेल के मैदान में ही हैं और ये सब आँखों देखा देख रहे हैं | मुझे आपकी दोनों ही कथा पसंद आयीं |
हार्दिक बधाई आदरणीय सर |
आपकी पहली कथा एक विजेता के सही पहचान कराती है , विजेता वो हर कठिन परिस्थिति में लड़ने को तैयार रहे ,लड़ने का ज़ज्बा एक विजेता बनाता है दूसरी कथा ने दिल जीत लिया ,एक पिक्चर याद आ गई ...'पिया का घर' हार्दिक बधाई सशक्त और सफल लघुकथाओं के लिए आदरणीय रवि प्रभाकर जी
हार्दिक बधाई आदरणीय रवि प्रभाकर जी।आपकी दोनों ही लघुकथायें प्रशंसनीय हैं।एक लंबे अरसे बाद आपकी रचना पढ़ने को मिलीं।आपकी लेखन शैली के अंदाज़ से मन को एक तृप्ति का अहसास हुआ।
आदरणीय रवि भाई, दोनों लघुकथाएं एक से बढ़कर एक हुई हैं, दोनों लघुकथाओं में नया कथानक लेकर बारीक बुनावट की गयी है, शीर्षक सटीक हैं. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति के लिए.
आज नकारात्मक सुर लिए कथाओं ( विशेष कर लघु कथाओं) के इस शोर में आपकी सकारात्मक दृष्टिकोण लिए हुए कथा ' विजेता ' आश्वस्त करती है कि बेशक टिमटिमाती सी लौ क्यों न दे रहे हों, दीपक कभी बुझते नहीं ; और यह भी कि विकलांगता शरीर में नहीं बल्कि सोच में होती है। // रीझ से निहारते // पंजाबी का तड़का लगा दिया आपने दाल मक्खनी में ! // मुंह बिदका कर// को आप शायद // मुंह बिचका कर// कहना चाहते थे।
' महंगी धूप ' ने भावविभोर कर दिया। लगता है हम सब की अपनी ही तो कहानी है , बिलकुल सगी सी। टंकण की त्रुटियां देख लीजिएगा : सतारवें ( पंजाबी दा तड़का ) , छत्त,पेमैंट,स्थिती ,चखचख ,सीढ़ीयां
अच्छा लगा आपकी रचनाएं पढ़ कर।
आदरणीय रवि प्रभाकरजी, आप का हार्दिक अभिनंदन व बधाई. आप ने दोनों लघुकथा अलग अंदाज में नई मनोदशा को ध्यान में रख कर लिखी है.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |