आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया शशि जी, तस्वीर का दूसरा रुख़ खूब दिखाया आपने. इस बेहतरीन लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. सादर
लघुकथा यथार्थ से साक्षात्मकार करवाने वाली विधा है। निज हित मानवीय स्वभाव है। /मेरा आखिरी सहारा भी मुझसे छीन लिया/लकवाग्रस्त पति का जीवित रहना ही सावित्री के हित में था। तो मातम पति के लिए कम और अपने लिए अधिक हो रहा था। बहुत ही महीन बिन्दु को उद्घाटित करती विचारपूर्ण कथा प्रदत्त विषय से पूर्णरूपेण न्याय कर रही है। लघुकथा का शीर्षक भी बढ़ीया बना है। हार्दिक शुभकामनाएं ।
आदरणीया शशि जी. सुन्दर कथा है. सुहाग का मतलब क्या होता है? ये बात उस औरत से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता है. एक बार फ़िर बहुत सुन्दर कथा.सादर.
आदरनीय शशि बंसल जी बहुत ही खूबसूरती से इस का तानाबाना बुना गया है. बधाई आप को इस उम्दा लघुकथा के लिए.
हार्दिक बधाई शशि जी।पत्नि के लिये तो पति मिट्टी का भी हो तो भी उसे संतोष रहता है क्योंकि उसकी उपस्थिति से समाज में उसे एक इज्जत और सम्मान प्राप्त होता है।बेहतरीन प्रस्तुति।
बिना स्वार्थ के कोई रिश्ता नहीं होता। यही विडम्बना है। इस शानदार लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया शशि जी।
वाह वाह शशि " तुम नहीं समझोगी जीजी , उनका होना ही मेरा सबसे बड़ा सहारा था ।वो जिन्दा थे तो रोज़ ही किसी न किसी घर से न्यौता या सीदा आ जाता था ।अब मुझ विधवा को कौन बुलाएगा जीमने ? मेरा खोटे भाग कि पाप चढ़ने के डर से कोई मुझे पौंछे-बर्तन का काम भी नहीं देगा।" इन पंक्तियो ने गजब कर दिया. नि:स्शब्द हूँ. बधाई
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