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पहली दफ़ा मुझे न खुशी से खुशी हुई

221 2121 1221 212

पहली दफ़ा मुझे न खुशी से खुशी हुई
दामे हयात में मेरी जाँ है फँसी हुई

घुटने लगा है दम मेरा रिश्तों के बोझ से
ये दुनिया जैसे बर्फ के अंदर धँसी हुई

तेरी शिकायतों का करूँ क्या कोई गिला
आँखों में तेरी दिख गई हसरत दबी हुई

था इक मलाल दिल में तगाफ़ुल का हमनशीं
वो बात तेरे वस्ल से आई गई हुई

औराक़ पर उतर गये पल इंतज़ार के
मिसरों में तेरी शक्ल सी मानो बनी हुई

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2015 at 9:58pm
हौसलाअफ़्ज़ाई के लिए आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ
Comment by दिनेश कुमार on February 12, 2015 at 9:07pm
औराक़ पर उतर गये पल इंतज़ार के
मिसरों में तेरी शक्ल सी जैसे बनी हुई

वाह वाह ,शिज्जु सर जी, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है |

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Comment by rajesh kumari on February 12, 2015 at 11:40am

घुटने लगा है दम मेरा रिश्तों के बोझ से----बहुत खूब 
ये दुनिया जैसे बर्फ के अंदर धँसी हुई---दुनिया ये जैसे करेंगे तो बेहतर लगेगा 

तेरी शिकायतों का करूँ क्या कोई गिला
आँखों में तेरी दिख गई हसरत दबी हुई---क्या कहने 

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई 

Comment by khursheed khairadi on February 12, 2015 at 12:43am

औराक़ पर उतर गये पल इंतज़ार के
मिसरों में तेरी शक्ल सी जैसे बनी हुई

वा....ह ,शिज्जु सर क्या ही उम्दा ग़ज़ल हुई है |सभी अशहार नायाब हैं |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |


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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2015 at 9:57pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करे 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 8:44pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहब .... घुटने लगा है दम मेरा रिश्तों के बोझ से

ये दुनिया जैसे बर्फ के अंदर धँसी हुई.....कमाल की पंक्तियाँ , बधाई आपको , सादर !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 11, 2015 at 6:26pm

बहुत खूबसूरत गजल कही है आपने आदरणीय शिज्जू जी. वाह! हर एक शेर लाजबाब. दिली बधाई कुबुलें

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 11, 2015 at 11:48am
घुटने लगा है दम मेरा रिश्तों के बोझ से
ये दुनिया जैसे बर्फ के अंदर धँसी हुई ।
ग़ज़ल अच्छी बनी ,आदरणीय सहजू शकूर जी, बधाई , सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on February 11, 2015 at 11:27am
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 11, 2015 at 8:51am

पहली दफ़ा मुझे न खुशी से खुशी हुई
दामे हयात में मेरी जाँ है फँसी हुई         --  शानदार मतला , वाह ! गज़ल भी खूब कही है , 

औराक़ पर उतर गये पल इंतज़ार के
मिसरों में तेरी शक्ल सी जैसे बनी हुई  -- इस शे र के लिये भी बहुत बधाइयाँ ॥

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