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"OBO लाइव तरही मुशायरे"/"OBO लाइव महा उत्सव"/"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता के सम्बन्ध मे पूछताछ

"OBO लाइव तरही मुशायरे"/"OBO लाइव महा उत्सव"/"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता के सम्बन्ध मे यदि किसी तरह की जानकारी चाहिए तो आप यहाँ पूछताछ कर सकते है !

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55 वें तरही मुशायरे में ग़ज़ल किस तरह पोस्ट करें,और ग़ज़ल में मक़ता रख सकते हैं या नहीं ?, कृपया जल्द जवाब देने का कष्ट करें |

आदरणीय समर भाई , आपके जल्द जवाब के अनुरोध को देख सोचा कि मै ही आपको उचित जानकारी दे दूँ । 

1. मक्ता रखना आपकी स्वेच्छा पर है ।

2.  गिरह लगाना ज़रूरी है

3. पोस्ट करने के लिये दिये गये लिंक को क्लिक करियेगा - वहाँ आपको एक बाक्स मिलेगा , जो 29 की रात 12 बजे खुलेगा , अर्थात 30 लगते ही । वहीं आपको अपनी गज़ल पोस्ट करनी है । अभी आपको वो बाक्स बंद मिलेगा । ये बाक्स 31 की रात 12 बजे तक खुला मिलेगा , 1 फरवरी लगते ही फिर बन्द कर दिया जायेगा । इस बीच आप कभी भी अपनी गज़ल पोस्ट कर सकते हैं । प्रतिक्रिया देने के लिये हर पोस्ट के नीचे Reply लिखा मिलेगा इसे क्लिक करने से बाक्स मिलेगा  यहीं आपको अपनी प्रतिक्रियें देनी है । आशा है आपको वांछित जानकारी  मिल गई होगी । अब भी कोई कमी हो तो कृपया  सुधिजनों का इंतिज़ार करें ।

आदरणीय गिरिराजभाईजी, सदस्य के किसी प्रश्न पर आपका इस तरह से इनिशियेटिव लेना अत्यंत आश्वस्तिकारक है, बहुत अच्छा लगा. विश्वास है, आप द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना से आदरणीय समर कबीर संतुष्ट होंगे. वस्तुतः आपके हवाले से भाई समरजी को यह भान हो गया होगा कि इस मंच के आयोजन इण्टरऐक्टिव हुआ करते हैं.
 
आप द्वारा उपलब्ध करायी गयी समुचित सूचना में मुझे एक और जानकारी जोड़नी है, आदरणीय. हालाँकि यह जानकरी संभवतः आयोजन की भूमिका में लिखी हो, कि, ग़िरह-मिसरे का प्रयोग मतले में या हुस्नेमतले में नहीं करना है.
शुभ-शुभ

आदरणीय ऐडमिन जी ,
तरही मुशायरा -५६ के सन्दर्भ में अपनी प्रविष्टि के विषय में यह निवेदन है कि बह्र की दृष्टि से यदि बिना कोई परिवर्तन किये , केवल शब्दों को आगे पीछे कर के कुछ परिवर्तन करूँ तो क्या बह्र की बात भी बन जाएगी। निवेदन है कि क्या यह परिवर्तन संभव है ? यदि हाँ, तो कृपया करना चाहें। अनुगृहीत होऊंगा।

यहां बनावटी अदाकारियाँ नहीं चलतीं
इश्क में ज्यादा होशियारियाँ नहीं चलतीं ॥

किसी जंग से कम नहीं होती है आशिकी
यहां बहाने औ लाचारियाँ नहीं चलतीं ||

इश्क गुलामी है क्या क्या करना पड़ जाए
समझ लो खाली वफ़ादारियाँ नहीं चलतीं ॥

दिलों का मामला है जहमत उठा लीजिये
यहां दिमागी कारगुजारियाँ नहीं चलतीं ॥

तलवार धार पे चल सकते हों तो चलिए
साथ फ़ौज हरदम फुलवारियां नहीं चलतीं ॥

झुकना सिखा देती है मोहब्बत दोस्तों
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं ॥
आदरणीय जनों को सादर प्रणाम , मै मुशायरे में अपनी कमेंट दर्ज नहीं कर पा रही हूँ । इसके कारण क्या हो सकते है कृपया मार्गदर्शन करें । आभार

१- गूगल क्रोम ब्राउज़र का प्रयोग करें.

२- एक बार ब्राउज़र से कुकीज साफ़ कर लें, इसके लिए ....

Shift + Ctrl + Del कर लें और जो पेज ओपन हो उसमे the beginning of time ड्राप डाउन से सेलेक्ट करें और सभी बॉक्स में टिक कर Clear browsing history को क्लिक करें.

३- ओ बी ओ ओपन कर log in कर लें.

समस्या का समाधान हो जाना चाहिए. 

आभार आपको मेरा मार्गदर्शन करने के लिए । आपके कहे अनुसार कोशिश करती हूँ । आभार
नमस्कार सर
इस बार के मुशायरे में बहर में 112 के स्थान पर 22 की छूट जायज़ है या नहीं
जैसा कि इस बहर में होता ही है
ग़ज़ल लिखनी शुरू कर रहा हूँ
आशा है आप जल्द जवाब देदेगे
सादर

आदरणीय मनोज भाई जी,

इस बह्र के विषय में जितना पता है वो इंटरनेट और कुछ किताबों के आधार पर है. कोई प्रमाणिक जानकारी मुझे नहीं है. ये बहरे-मजतस है. यह एक ऐसी बह्र है जिसकी मुज़ाहिफ़ शक्लों का ही प्रयोग होता हैं. सालिम का प्रयोग अब तक मेरे देखने में नहीं आया है. इसके सालिम अर्कान मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन (1222, 2122, 1222, 2122) हैं. इसकी एक मुज़ाहिफ़ शक्ल --मफ़ाइलुन - फ़इलातुन - मफ़ाइलुन - फ़इलुन (1212 - 1122 - 1212 - 22 / 112) है इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार निवेदित कर रहा हूँ-

करूँ न याद उसे किस तरह भूलाऊँ उसे(112)
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे.(112)-- फ़राज़ 

सुना है लूट लिया है किसी को रहबर ने(22)
ये वाक्या तो मेरी दास्तां से मिलता है.(22) --शमीम जयपुरी 

वो मै नही था जो इक हर्फ़ भी न कह पाया(22)
वो बेबसी थी कि जिसने तेरा सलाम लिया.(112)

हरेक बात पे कहते हो तुम के तू क्या है(22)
तुमी कहो कि ये अंदाज़े-गुफ़्तगू क्या है.(22)

हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता (22)
वगरनह शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है(22) ग़ालिब

गज़ब किया तिरे वादे पे ऐतबार किया (112)
तमाम रात कयामत का इंतज़ार किया.(112)-- दाग 

मेरी जानकारी अनुसार इस बार के मुशायरे में बहर ("ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे"... 1212 1122 1212 112 ) में 112 के स्थान पर 22 की छूट लेना बिलकुल जायज़ है 

मिसरा-ए-तरह अज़ीम शायर जनाब "बशीर बद्र" साहब की जिस ग़ज़ल से  लिया गया है उसी के दो अशआर में यह छूट ली गई है 

ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है

कोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही लगे

अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे

आशा है मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. सादर 

बहुत आभार आदरणिय मिथिलेश सर
आपकी बात से मेरी बात को बहुत बल मिला
मैंने ग़ज़ल देखी थी
सोच भी रहा था
छूट के बारें में
अब आपकी बात सुनकर आश्वस्त हो गया हूँ
धन्यवाद

ओबीओ तरही मुशायरा,अंक-63 की रचनाओं का संकलन कब तक उपलब्ध होगा..?

सादर नमस्कार।मैं नया अभ्यर्थी रचनाकार हूँ, फेसबुक ग्रुप्स में चार माह से लिख रहा हूँ।"अास/उम्मीद" विषयक एक प्रविष्ठी में कितनी विधाओं में कितनी रचनाएँ पोस्ट कर सकते हैं।मैं एक ही प्रविष्ठी में एक तुकांत+एक अतुकांत+पांच हाइकू+पांच मुक्तक+तीन दोहे+तीन सिंहावलोकनी दोहा-मुक्तक+तीन वर्ण पिरामिड जसाला पिरामिड+दो कुण्डलिया+एक ग़ज़ल प्रेषित कर सकता हूँ क्या? यदि नहीं तो सही उपाय बताईयेगा।
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी

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