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“सुना है शादी के बाद हाथों की लकीरें बदल जाती हैं.“ सुमन ने अपनी छह महीने पहले ब्याही बहन से पूछा

"वो तो तू ही जाने ज्योतिषाचार्या, मुझे तो इतना पता है की सात फेरों के बाद औरत के पाँवों की रेखाएं अवश्य बदल जाती है और ज़िन्दगी चक्र-घिरनी हो जाती है |"

उसने गहरी साँस भरते हुए कहा |

सोमेश कुमार

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2014 at 6:40pm

वाह्ह्ह बहुत सुन्दर लघु कथा बहुत सच्चाई है बहन के जबाब में शीर्षक को सार्थक करती हुई लघु कथा बहुत- बहुत बधाई आपको 

Comment by Shyam Narain Verma on November 6, 2014 at 11:42am

सुन्दर लघुकथा के लिए दिली बधाइयाँ |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 6, 2014 at 10:51am

क्या कहने सोमेश जी, आदर्श और यथार्थ को पलक झपकते सामने रख दिया है, बहुत ही खूबसूरत लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 6, 2014 at 8:28am

बहुत बढ़िया रचना आदरणीय आलोक जी. बधाई आपको

Comment by somesh kumar on November 5, 2014 at 11:02pm

आप सभी के आशीर्वाद से इस जीवन-सत्य को बल मिला ,तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 4:52pm

क्या बात है  i सुन्दर अभिव्यक्ति  i


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 5, 2014 at 2:32pm

बहुत खूब भाई सोमेश कुमार जी, विवाहिता स्त्री का जीवन वाकई एक चक्कर-घिरनी जैसा ही होता है अक्सर। सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 5, 2014 at 12:09pm

जिन्दगी चक्कर घिन्नी हो जाती है - यह बात शादी के बाद पत्नी के लिए जितनी सही है उतनी ही बेचारे पति की लिए भी है | सुंदर लघु कहानी के लिए बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 5, 2014 at 12:56am

बहुत ही सुन्दर जवाब , सोमेश  कुमार जी , कथा अच्छी है , बधाई।  

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