For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज रिश्ते क्यों सभी को - ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

**********************

सावनों   में   फिर   हमारे   घाव   ताजा   हो  गये

रंक  सुख  से  हम  जनम के, दुख के राजा हो गये

**

साथ  माँ  थी  तो   दुखों में भी सुखों की थी झलक

माँ  गयी  है   छोड़   जब  से  सुख जनाजा हो गये

**

कल तलक जिनकी गली भी कर रही नासाज थी

आज क्यों कर वो तुम्हारे दिल के ख्वाजा हो गये                  ( ख्वाजा - स्वामी )

**

कोइ   चाहे    देह     हरना   और   कोई   दौलतें

आज  रिश्ते   क्यों  सभी  को यार  काज़ा हो गये                    ( काज़ा - शिकारी के छिपने का गड्ढा )

**

पाँच  वर्षो   से   हमें   तुम  कह  रहे  थे  रद्दियाँ

अब चुनावों के  समय  क्यों हम तकाजा हो गये                    ( तकाजा - जरूरत )

**

जिक्र भर से  जिनके  तुमको उल्टियाँ आती रही

आ सियासत में  कहो  क्यों वो ही आज़ा हो गये                   ( आज़ा - शरीर का अंग/अतिप्रिय )

**

सोचते  थे  तुम  नहीं  हो  खार  पाले  जो शजर

पतझड़ों में तो ‘मुसाफिर’  तुम भी वाज़ा हो गये            ( वाज़ा - प्रकट /हकीकत सामने आना )

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2014 at 10:24am

आ० भाई गिरिराज जी ग़ज़ल के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2014 at 10:24am

आ० भाई जीतेन्द्र जी , उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2014 at 7:47am
आदरणीय , उम्दा गज़ल के लिये आपको बधाई ॥
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 4, 2014 at 1:16pm

कल तलक जिनकी गली भी कर रही नासाज थी

आज क्यों कर वो तुम्हारे दिल के ख्वाजा हो गये...........बहुत खूब, क्या गजब का शेर हुआ है

आदरणीय लक्ष्मण जी, आपको हार्दिक बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2014 at 11:22am

आ० मंजरी जी रचना का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2014 at 11:21am

आ० भाई गोपाल नारायण जी , यह तो आपका बड़प्पन है जो रचनाओं को इतना मान दे रहे हैं  l अभी तो लेखनी को बहुत ही सुधार की जरुरत  है l  ओ बी ओ परिवार का स्नेहाशीष मिलता रहा तो उसमे जरूर सुधार कर पाउँगा l स्नेहाशिस बनाये रखें l  

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 8:34pm
साथ माँ थी तो दुखों में भी सुखों की थी झलक
माँ गयी है छोड़ जब से सुख जनाजा हो गये.

बहुत ही भावपूर्ण आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2014 at 7:06pm

धामी जी

आप तो सदाबहार  है  i क्या गजल और  क्या आखिरी शेर -साथ ही

साथ  माँ  थी  तो   दुखों में भी सुखों की थी झलक

माँ  गयी  है   छोड़   जब  से  सुख जनाजा हो गये

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
19 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service