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बेटी के शव पर.....तोटक छंद

बिटिया कछु बोलत नाहि कहौ
चुपचाप पडी कहती न सुनौ
यह तात पुकारत है तुम्ह को
अब धाय उठो उठ धाय चलौ

-----------

रखिया न भुला कहता बिरना
बतिया यह मोरि सुनो बहना
'छुटकी' नहि तोर सहाय भयो
अब धाय उठो उठ धाय चलो
---------
सखियाँ सब खेलन चाह रही
खटिया पर मात कराह रही
यह बात सुनौ नहि देर करौ
अब धाय उठो उठ धाय चलौ
------
बस एक सवाल बसै मन मे
क्यस भूल भयी यह जीवन मे
भगवान कहाँ हम चूक गये
नहि धाय उठे नहि धाय चले
-------

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by manoj shukla on April 15, 2013 at 10:17pm
आदर्णीया कुमारी जी तथा आदर्णीय अशोक जी....आप सभी का हार्दिक आभार...एक नये कवि को आप का स्नेह और आशीष मिलता रहे तो आगे और अच्छा प्रयास करेंगे
Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 9:58pm

आदरणीय मनोज जी सादर, बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है तोटक छंद पर. बहुत बधाई स्वीकारें. लिखते सीखते त्रुटियाँ भी ठीक हो ही जायेंगी. आदरेया राजेश कुमारी जी के कहे से मैं भी सहमत हूँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 10:22am

वह भाय निहारत है बहना-----इसमें भ्रात कर सकते हैं 

मनोज शुक्ल जी दिल को छू गई ये रचना सबसे बिर वक़्त होता है   अपना जुदा होता है एक बाप की मनोदशा का बहुत खूब चित्रण किया है आपने छंद के माध्यम से हार्दिक बधाई 

Comment by manoj shukla on April 15, 2013 at 5:50am
हार्दिक आभार भाई निगम जी...धन्यवाद
Comment by manoj shukla on April 15, 2013 at 5:47am
आदर्णीया.....कौशिक जी....सादर आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on April 14, 2013 at 11:40pm

पिता की पीड़ा को मार्मिक शब्दों में सुंदरता से समाहित किया है. बधाई...

Comment by shalini kaushik on April 14, 2013 at 9:00pm

.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू  गयी  आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें

Comment by manoj shukla on April 14, 2013 at 7:49pm
आदर्णीय....पाठक जी, त्रिपाठी जी , केवल प्रसाद जी , कुशवाहा जी , पटेल जी ,...आप सभी सहयोगियों का सादर आभार..... भाई त्रिपाठी जी और पटेल जी, मेरी रचना मे जो कमी है उसे बताने के लिए आपका हार्दिक आभार ....सुधारने का प्रयास करेंगे
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 6:51pm

सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई, काव्य के जानकार के सुझावों पर गौर करना उचित होगा भाई श्री मनोज शुक्ल जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 6:06pm

आदरणीय मनोज जी इस भाव पूर्ण रचना हेतु बधाई स्वीकारें 

तत शिल्प की दृष्टि से आदरणीय विनय भाई से सहमत हूँ 

एक बात और छंद छंद होता है 

और मुक्तक मुक्तक 

छंद आधारित मुक्तक कहे जा सकते हैं 

किन्तु फिर उसे मुक्तक ही कहा जायेगा 

न की छंद 

छंद की दृष्टि से आपकी रचना में बहुत कमियाँ हैं 

जिन्हें भाई साहब ने बखूबी इंगित किया है 

सादर 

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