For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - बादलों और बिजलियों की नेमतें

ग़ज़ल - बादलों और बिजलियों  की नेमतें
 
बोलते चेहरों को सुनता ही रहा ,
वो अदद एक ख्वाब बुनता ही रहा |
 
बादलों और बिजलियों  की नेमतें  ,
बारिशों की बूँद चुनता ही रहा |
 
गीत के मुखड़े पे चर्चा खूब की ,
अंतरे चुपचाप गुनता ही रहा |
 
हर ग़ज़ल मेरी उदासी का किला ,
शेर दीवारों में चुनता ही रहा |

क्या कहूँ जबसे हूँ आया शहर में ,
गाँव की चाहत में घुनता ही रहा |
 
ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह ,
सांस की  तारों से धुनता ही रहा |
 
चाहतों की आग थी जलती रही ,
दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा |
 
                  - अभिनव अरुण
                       { 25082012 }

Views: 483

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 2, 2012 at 2:03pm
परम श्रद्धेय श्री सौरभ जी आपकी टिप्पणी मेरी कलम को और ऊर्जस्वित करेगी ! हार्दिक आभार और साधुवाद |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2012 at 10:11pm

ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह ,
सांस की तारों से धुनता ही रहा |

चाहतों की आग थी जलती रही ,
दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा |

वाह वाह ! बहुत-बहुत बधाई, भाईजी.

Comment by Abhinav Arun on August 27, 2012 at 3:29pm

बहुत आभार आपका श्री योगी जी ग़ज़ल आपको पसंद आई प्रयास सार्थक हुआ !

Comment by Yogi Saraswat on August 27, 2012 at 10:36am
हर ग़ज़ल मेरी उदासी का किला ,
शेर दीवारों में चुनता ही रहा |

क्या कहूँ जबसे हूँ आया शहर में ,
गाँव की चाहत में घुनता ही रहा |
बहुत खूब , सुन्दर अल्फाजों से सजी हुई बढ़िया ग़ज़ल , अभिनव जी ! बधाई
Comment by Abhinav Arun on August 26, 2012 at 10:00pm
 बहुत बहुत आभार आदरणीया रेखा जी ,आदरणीया सीमा  जी ,श्री विन्धेश्वरी जी ,श्री संदीप जी और श्री सुजान जी . आपका उत्साह वर्धन मेरी प्रेरणा है |
Comment by Rekha Joshi on August 25, 2012 at 10:25pm

चाहतों की आग थी जलती रही ,

दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा |,अरुण जी खूबसूरत ग़ज़ल ,हार्दिक बधाई 
Comment by seema agrawal on August 25, 2012 at 8:27pm

ऐसा बहुत ही कम हो पाता  है कि  किसी गज़ल का हर शेर कमाल का हो पाए पर अभिनव जी आपकी इस गज़ल में यदि छांटने लगूंगी तो शायद मुमकिन नहीं हो सकेगा .......जिस शेर को पढती हूँ बस वाह ही होती है बस ज्यादा तारीफ करने के लिए यही कह सकती हूँ

ऐसी गज़ले और लिखिए 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 7:26pm
चाहतों की आग थी जलती रही।
दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा।

सच है आदरणीय अभिनव जी हर व्यक्ति अपनी इच्छा रुपी अग्नि में ही जलता है।वास्तव में पूरी गजल हर शब्द प्रशंसनीय है।सादर बधाई।
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 25, 2012 at 7:12pm
आदरणीय अभिनव भईया..
क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने! दिल आनंदित हो उठा! विशेष तौर पर -
ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह ,
सांस की तारों से धुनता ही रहा; वाह , बहुत ख़ूब..!!
Comment by सूबे सिंह सुजान on August 25, 2012 at 5:05pm

वाह दिल से दाद कबूल करें............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"वाह वाह वाह... क्या ही खूब शृंगार का रसास्वाद कराया है। बहुत बढ़िया दोहे हुए है। आखिरी दोहे ने तो…"
4 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Ashok Kumar Raktale's blog post कैसे खैर मनाएँ
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी, बहुत शानदार गीत हुआ है। तल्ला और कल्ला ने मुग्ध कर दिया। जो पेड़ों को काटे…"
9 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"आपकी ज़िंदगी ओबीओ  मेरी भी आशिकी ओबीओ  इस समर में फले कुछ समर ऐ समर ये खुशी…"
18 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं। सादर।"
32 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई। आख़री दोहे में  गोल गोल ये रोटियां,…"
35 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय सुशील सरना जी, मयखाने से बढ़िया दोहे लेकर आए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।"
41 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा छंद की प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। इस दोहे…"
44 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"वक्त / समय बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ ।। आदरणीय सुशील सरना…"
48 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सुशील सरना जी, मंहगाई पर व्यंग्य करता बढ़िया कुंडलियां छंद हुआ है। हार्दिक बधाई स्वीकार…"
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई। सादर"
55 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। क्या कुंडलियां छंद में दो दोहे…"
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी हार्दिक धन्यवाद आपका।सादर।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service