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नब्ज :लघुकथा: हरि प्रकाश दुबे

“वह दौड़ कर अपने बड़े भाई के गले से लग गया और बोला, भईया कितने दिनों बाद मिल रहा हूँ आपसे, बता नहीं सकता कितनी ख़ुशी हो रही है मुझे, बस इस महानगर में अपना ही घर खोजने में जरा सी दिक्कत हुई..हा हा ।“

“हाँ –हाँ ठीक है छोटे, और बताओ कैसे आना हुआ, सब ठीक तो है ना, और माँ-पिताजी कैसे हैं, एक-आध दिन तो रुकोगे ना?”

भाई की नीरसता को देखकर वह कुछ देर के लिए उलझन में पड़ गया पर मुस्कराते हुए बोला नहीं भईया आज ही निकल जाऊँगा, शाम की गाड़ी है, मैं तो बस आपको चाचा की लड़की की शादी का निमंत्रण देने आया था, और माँ-पिताजी ने आप सबको आने के लिए कहा है आखिर कब से आप गाँव नहीं आये हैं, इसी बहाने सभी रिश्तेदारों से भी मिलना हो जाएगा ।

“मैं नहीं आ पाऊंगा, अरे कौन से रिश्तेदार और कौन सा गाँव, जब मुझे जरूरत थी तो कहां थे सब? अपने जीवन की उलझने अपने आप सुलझाई हैं मैंने, तब कहीं इस मुकाम तक पहुंचा हूँ, और ये ले ‘एक हजार एक रूपये’, मेरे नाम से नेवता लिखवा देना, किसी का कोई अहसान नहीं है मुझ पर, और हाँ ! अभी जरा काम से निकल रहा हूँ, शाम तक आ जाऊंगा तुझे स्टेशन तक छोड़ दूंगा, किराया-भाड़ा है ना या मैं दूं ।“

“नहीं भईया, किराया-भाड़ा है हमारे पास, बस एक बात और कहना चाह रहे थे।“

“हाँ बोल ।“

“अगर आप सोचतें हैं की आपके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए आपको किसी का भी आभारी होना पड़े, तो कृपया एक बार अपनी नब्ज की जांच कर लीजियेगा ।“

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Amit Tripathi Azaad on February 11, 2016 at 10:53am

आदरणीय हरी प्रकाश जी "नब्ज़ " याद  दिलाकर आपने नब्ज़ में लहू की सरगर्मी तेज़ कर दी आपको हार्दिक बधाई |

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 11, 2016 at 8:54am
वाह्ह्ह्।जबरदस्त पंच!हार्दिक बधाई आदरणीय दूबे जी।
Comment by Nita Kasar on February 10, 2016 at 6:53pm
बड़े भाई की कमज़ोर नब्ज़ पर हाथ रखा है छोटे भाई ने।जब दौलत शोहरत मिल जाती है कुछ लोग कृतघ्न हो जाते है सारथक संदेशपूर्ण कथा के लिये बधाई आद०हरी प्रकाश दुबे जी ।
Comment by pratibha pande on February 9, 2016 at 10:21pm
बहुत गूढ़ मर्म लिए कथा ,मनुष्य के दंभ की पराकाष्ठा ,जब वो जीवन दाता के प्रति भी स्वयं को आभारी नहीं मानता . शिल्प भी कसावट लिए है हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी ,

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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 9, 2016 at 8:16pm
आदरणीय हरि प्रकाश भाई जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई।
पंचलाइन जबरदस्त है
Comment by TEJ VEER SINGH on February 9, 2016 at 4:29pm

हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश जी!सुन्दर लघुकथा!

Comment by Samar kabeer on February 9, 2016 at 2:35pm
जनाब हरी प्रकाश दुबे जी आदाब,इस शानदार लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें !
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2016 at 1:30pm
कई भाइयों, कई माँ-बाप व बेटों की दुखती रग़ को शाब्दिक करती बढ़िया भाव पूर्ण, कटाक्ष पूर्ण रचना के लिए तहे दिल बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी।
Comment by Rahila on February 9, 2016 at 11:27am
आदरणीय दुबे सर जी!बहुत अच्छी लघुकथा हुई । बहुत बधाई आपको । सादर
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 9, 2016 at 10:57am

सभी के साथ ऐसा होता है, संघर्ष के समय कोई साथ नहीं होता, सफलता मिलने पर साथी मिल ही जाते हैं| लेकिन सफल होने पर मानव-धर्म का पालन करना भी सफलता का एक मार्ग है| सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय हरी प्रकाश जी सर|

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